Friday 8 May 2015

“हमारे आगन मा”

“हमारे आगन मा”

चमचा तेज़ चला हलवाई,देखो खुशी मेरे घर आई,
खुश है पापा-मम्मी,ताऊ-ताई और घर की हर एक भोजाई,
बन्नी के आने पर बहार है आई,सजा है घर हर एक कोना,
और सजी है ,हर एक चौखट और हर एक द्वार,
“हमारे आगन मा”……………………………………...
बन रहे है लड्डू बूंदी के और आम का आचार
“हमारे आगन मा”....................................
यूं तो हमने भी बन्ना को टाइम सिलेक्सन के दिखलाई थी फोटो चार
पर उनको ढेख परख के न आया उनके मन मे कोई विचार
आता-आता भी कैसे विचार,जोड़ी सिया-राम जी सी  जो तैयार
“हमारे आगन मा”....................................
पर बन्ने तू रख ले घांठ बांध कर मेरी एक सीख
झुका ले शीश लेले आशीष,सभी का ये है शुभ आशीष
ये एफ़डी है लाइफटाइम की पर इन्टरेस्ट मिले रोजाना
है दुआ साथ तो तुझे कभी न हांथ पड़े न फैलाना
गाओ –गाओ सभी आज,खुशी का राग 
“हमारे आगन मा”.................................
आई-आई घड़ी शुभ देखो आज 
“हमारे आगन मा”....................................

Thursday 7 May 2015

“मुन्ना भईया” का ठेला

“मुन्ना भईया” का ठेला


मुहल्ले की गलियों में गर्मी हो,बरसात हो चाहे कोई भी मौसम हो,मुन्ना भैया का ठेला मुहल्ले की हमेशा  घंटी बजाता हुआ ज़रूर आता था। घंटी की आवाज़ सुनकर सभी बच्चे अपने-अपने घरों से दौड़ कर बाहर निकल कर मुन्ना भैया के ठेले पर आ जाते,और अपने नन्हें हाथों मे पचास पैसे और एक रुपये के सिक्के मुन्ना भैया की तरफ बड़ाते हुए अपनी भोली और मासूमियत भरी तोतली भाषा में मुन्ना भैया से अपनी फरमाइश कहते और मुन्ना भैया मुसकुराते हुए हर बच्चे की इच्छा को पूरा करते जाते। मुन्ना भैया को अपना ठेला लगाते हुए चालीस साल हो चुके हैं,और आज भी वो लगातार अपना ये काम उतने ही दिल से करते है, मुन्ना भैया ठेले पर गर्मी में बच्चों के लिए स्पेशल वाली खोबे की कुल्फी लेकर आते थे,जो उन बच्चों को नुकसान भी ना करे। और बच्चों की फरमाइश पर भेल और फुल्की भी लेकर आते थे,इतने साल हो गए उन्हे ये काम करते हुए,और इसी काम से होने वाली आय से ही उन्होने अपने परिवार का खर्च चलाया। आज समय का पहिया अपनी चाल से चलते हुए इतना वक़्त पूरा कर चुका है,मंहगाई ने अपने पैर खूब पसारे लेकिन इसका असर मुन्ना भैया ने अपने प्यारे ठेले पर बच्चों के सामान और उनके दाम पर नहीं आने दिया। आज सिर्फ मामूली दामों में बदलाव कर मुन्ना भैया लगातार बच्चों की फरमाइश पूरी कर रहे हैं,साथ ही अपने ठेले पर मिलने वाले सामान की क्वालिटी का भी ध्यान रखा,जहां एक तरफ बाकी व्यापार करने वालों ने ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए कुल्फी और आइसक्रीम में कई केमिकल्स का उपयोग करने लगे,और चाट में भी साफ सफाई का ध्यान नहीं रखते, वही दूसरी ओर मुन्ना भईया अपने ठेले पर मुनाफा कम और बच्चों के स्वास्थ का खयाल  रखते हुए बिना किसी केमिकल का उपयोग किए और साफ सफाई का पूरा ध्यान रख रहे हैं,उन्हें मुनाफा भले ही कम हो लेकिन वो कभी अपने सिद्धांतों से समझोता नहीं कर रहे हैं ,इसी वजह से आज भी लोग उन्हे कोई आम ठेले वाला या व्यापारी कहकर नहीं बल्कि पूरे मान-सम्मान के साथ “मुन्ना भईया”कहकर बुलाते हैं।