Sunday 30 August 2020

“बुद्धि है,पर फिर भी है अपंग- ‘बौद्धिक विकलांगता’,'COPY CAT' PSYCHOLOGY”

“बुद्धि है,पर फिर भी है अपंग- ‘बौद्धिक विकलांगता’,'COPY CAT' PSYCHOLOGY”

बचपन में हम अक्सर किसी की कॉपी से नकल करने की कोशिशें किया करते थे,चाहे वो exam में answer copy करना हो,या अपने दैनिक जीवन में कुछ बातें,जैसे अमूमन किसी की कोई आदतें, किसी hero या heroin की स्टाइल,किसी का चलने का तरीका,तो किसी का बैठने का,तो कभी बात करने का तरीका,हम सभी के बचपन पर किसी न किसी के व्यक्तित्व का असर जरूर पड़ा था।आज भी हर किसी के बचपन पर असर पड़ रहा है,चाहे वो किसी फिल्मी हस्ती का हो या किसी अपने का,किसी पड़ोस के भैया-दीदी का हो या हमारे किसी आदर्श का,हम माने या न माने हम प्रभावित तो जरूर होते है,आसपास का वातावरण,लोग,होने वाली गतिविधियां हमारे मन मस्तिष्क पर असर तो करती है,ये असर अगर सकारात्मक विचारों का है,तो ये हमारे व्यक्तित्व और विचारों के पौधे में खाद और पानी का काम कर,उसे फलने-फूलने में मदद करता है,लेकिन अगर असर कुछ उलट हो गया,तो बहुत बड़ा विस्फोट कर जाता है,और जीवन में व्यक्तित्व रूपी नैया का कोई खिवैया नहीं रहता,न ही कोई पतवार उसे किनारे लगने में मददगार साबित हो सकती है।

ये तो हुई वो दो स्तिथियाँ,जो की आर-पार के परिणाम को परिभाषित या life रूपी चित्रकथा के the endको दिखा रही थी,की या तो ending happy होगी या sad।लेकिन दोस्तों हमेशा फिल्म किसी निष्कर्ष पर ही खत्म हो ऐसा जरूरी नही होता,कुछ कहानियां सिर्फ एक neutral condition को भी दर्शाती है,जहां ये लगता है,या यूं कहूँ की समझ ही नही आता,की चल क्या रहा है ? या चलना कहाँ है?,जाना कहाँ है? या करें क्या?,अँग्रेजी में इसे confusion” मतलब भ्रमकी स्थिति कहते है,और यह भ्रम की अवस्था तब और भी ज्यादा पेचीदा हो जाती है,जब व्यक्ति को ये आभास न हो की वो इसमें कितना धसा हुआ है,और वह वैचारिक रूप से आंखे बंद करके,मतलब विचार शून्य हो,सिर्फ उस मनुष्य के पदचिन्हों का अनुशरण करने में लगा रहे,की ये जो भी कर रहे हैं,कह रहे है,खा रहे,गा रहे है,सब सही है और मुझे भी यही करना है,अपने विवेक और विचारशीलता को किसी बड़े से सन्दूक में रखकर,बाहर से बड़ा-सा अलीगड़ी ताला मारकर,चाबी को किसी ऐसे अंधे कुए में फेंक आया हो,जहां से उसे कोई न निकाल पाये,मतलब अब उस पर किसी और के समझाने का भी असर होना बंद हो गया है,क्योंकि उसने किसी विशेष पदचिन्ह को follow करने की कसम खा ली,बिना इस बात का बोध किए,की जरूरी नही की अगले व्यक्ति जिन conditions में कुछ कर रहा है,वह तुम्हारे लिए सही है या नही,भाईसाहब बात तो तब और भी भयानक दुर्दशा पर पहुँच जाती है,जब उन्हें उस व्यक्ति का जिसे वे विवेकशून्य हो follow कर रहे है,का पादना भी एक कला,एक art नज़र आने लगता है,और उस पाद की दुर्गन्द भी वे भभूत रूप में अपने मन में बसा,उसे सुगंद के रूप में महसूस करने की आदत के आदि हो जाते है।

ये पूरी अवस्था न किसी स्वस्थ मस्तिष्क की हो सकती है न ही किसी मृत मस्तिष्क की। क्योंकि ये दोनों तो अपने गंतव्य पर पहुँच चुके हैं,बीच की ये अवस्था बड़ी ही भयावह है,क्योंकि ये वो गाड़ी है,जो की न पूरी तरह अच्छे से चल रही है,न ही पूरी तरह खराब हो सड़क के किनारे खड़ी है,ये तो वो गाड़ी है,जिसमें न accelerator है, gear और ब्रेक की तो बात ही क्या करें हुजूर,ये बस एक निश्चित चाल से सड़क पर दौड़े जा रही है,मंज़िल का पता नही,बस सड़क को follow कर रही है,उसे इस बात का बोध ही नही की,जब ये सड़क खत्म होगी,तो आगे जाना कहाँ है?,क्योंकि मंजिल के बारे में तो कभी उसने सोचा ही नही था,तो साहब ऐसी गाडियाँ,जो बिना मंज़िल जाने अपना सफर शुरू करती है,वो अक्सर खाई में ही गिरती है। तो चाहे बिना कंट्रोल की गाड़ी हो या बिना विचार और विवेक का मनुष्य दोनों ही अपंग है। और ऐसे व्यक्ति की ये अवस्था उसके मानसिक स्वास्थ्य की ओर इशारा करती है की वो बौद्धिक विकलांगता” को मतलब ‘COPY CAT’ PSYCHOLOGY को धारण कर चुका है,(यहाँ मेरे इस शब्द बौद्धिक विकलांगताकहने से किसी बीमार या बीमारी से नही है क्योंकि जो वाकई इस समस्या से ग्रस्त है उन्हें ससम्मान हम specially able” “विशेष योग्यकहते है।) यहाँ बौद्धिक विकलांगतासे ज़िकर तो उन महानुभावों से है,जो पूर्ण रूप से स्वस्थ्य है,तन से,धन से,बुद्धि से,ईश्वर ने उन्हें सब दिया है पर विचारों से,स्वविवेक से अपने आपको शून्य कर रखा है।

इसका मैं आपको ताज़ा घटनाक्रम से बिलकुल सटीक उदाहरण बता सकता हूँ,हमारे परिचित में या यूं कहे की परिवार में एक नौजवान है,जो काफी अच्छा पड़-लिख कर,अच्छी ख़ासी नौकरी कर रहा है,ये तथाकथित पड़े लिखे नौकरी करने वाले नौजवान साहब एक दूसरे व्यक्ति जो की उम्र में इनसे कुछ बड़े थे,के संपर्क में आए और बहुत जल्द उनके प्रभाव में आ गए,और उनसे प्रभावित भी हो गए,ये सब होना कुछ गलत नही था। हम सभी किसी न किसी को आदर्श मानते है,लेकिन आदर्श मानने में और प्रभाव में आने में बहुत फर्क होता है,उनके प्रभाव में आने का असर बहुत जल्द दिखने लगा,अब ये नौजवान जो पहले चाय पिया करते थे,अब कॉफी पीने लगे इसीलिए नही की अच्छी लग रही है,बल्कि इसीलिए की वह दूसरा व्यक्ति कॉफी पीता है,तो अच्छी ही होगी,सिर्फ वही सिनेमा देखने लगे जो भाईसाहब को पसंद था,वही खाना और सब्जियाँ खाने लगे,जो भाईसाहब खाते थे,सिर्फ उन्ही  कार्यक्रमों में शिरकत करते,जहां भाईसाहब का जाना होता,चाहे वो पारिवारिक ही क्यो न हो।सिर्फ उन्ही लोगों से बात करते जिनसे भाईसाहब के ताल्लूकात हों,और हद्द तो तब समझ आई जब घर के तुच्छ से whatsapp family group पर किसी की विवाह की वर्षगांठ या जन्मदिवस पर तभी शुभकामनाओं का संदेश देते,जब भाईसाहब संदेश डाल देते और बौद्धिक विकलांगताया विचार शून्य होने का प्रमाण देखिये की सिर्फ उतने ही गिनकर शब्द डालते जितने की भाईसाहब ने अपने संदेश में डाले होते।इस नौजवान हो होली का त्योहार बहुत पसंद था बचपन से और हर वर्ष वो इसे धूमधाम से मनाता था, पर इस साल उसने होली नही मनाई न ही किसी से मिला न ही कोई बधाई दी कारण और कुछ नही सिर्फ ये की बातों बातों में एक दिन भाईसाहब कह गए की होली वोलीसब समय की बरबादी है,सब बेकार की चीजे है,सो इस साल हमारे पूर्णत बौद्धिक विकलांगताको धारण कर चुके नौजवान ने भी होलीपर्व का त्याग कर दिया।

किसी से प्रभावित होना या प्रेरणा लेना गलत नही है पर जब कोई बात बिना किसी तर्क के मान ली जाए और उसका आपके जीवन मे न कोई निर्धारित उद्देश्य हो,न ही औचित्य और फिर भी आप उस बात या क्रिया को अपने routine का हिस्सा बनाए हुये है तो कहीं न कहीं आप ने अंधे कुए में छलांग लगा चुके है और आप इतने तो समझदार हैं ही की समझ सकें की अंधे कुए में छलांग लगाने पर आपका क्या हो सकता है,और खुद के विवेक या बुद्धि से जो फैसले आप नही ले रहे है वो आपके बौद्धिक विकलांगता” ‘COPY CAT’ PSYCHOLOGY भरे दिमाग को और बड़ावा देता और आप अब कहीं न कहीं किसी और के दिमाग,व्यक्तित्व और आचरण की बैसाखी के ऊपर निर्भर हो जाते हैं,ये सिर्फ आपके लिए ही नही आपके आसपास आपसे जुड़े हर शख्स को प्रभावित करता है,तो प्रेरणा लीजिये पर आचरण स्वयं के विवेक से तर्क के आधार पर लीजिये की क्या हर वो बात जो किसी अन्य के जीवन या आचरण के लिए सही है आपके जीवन में भी सही है,उपयोगी है या नही। तो बौद्धिक विकलांगताको नही बौद्धिक आत्मनिर्भरताको अपनाइए और खुश रहिए।

Wednesday 5 August 2020

“सुंदरकाण्ड-एकपथप्रदर्शक रस सरिता” ***रस प्रवाह क्र॰-18***

सुंदरकाण्ड-एक पथ प्रदर्शक रस सरिता

         


                                         ***रस प्रवाह क्र॰-18***       
   प्रसंग: समुद्र पर श्री रामजी का क्रोध और समुद्र की विनती-

काटेहिं पइ कदरी फरइ कोटि जतन कोउ सींच ।

बिनय न मान खगेस सुनु डाटेहिं पइ नव नीच॥58॥

भावार्थ:- (काकभुशुण्डिजी कहते हैं-) हे गरुड़जी! सुनिए, चाहे कोई करोड़ों उपाय करके सींचे, पर केला तो काटने पर ही फलता है। नीच विनय से नहीं मानता, वह डाँटने पर ही झुकता है (रास्ते पर आता है)॥58॥

जब श्री राम द्वारा विनय करने पर भी समुद्र नही माने और रास्ता नही दिया,तब उन्होने गुस्से में आकर अपना धनुष वाण उठाया और समुद्र पर प्रहार करने का निश्चय किया। ऐसा सुनते ही समुद्र तुरंत वहाँ आए  और अपनी इस गलती के लिए माफी मांगी।

सीख:

v  कभी कभी कुछ लोग विनय और मधुर भाषा नही समझते,तो ऐसे लोगों को समझाने के लिए कभी-कभी कठोर भाषा और रास्ता अपनाना पड़ता है,मतलब दुनिया का हर ताला एक ही चाबी से नही खुलता। ताले के अनुसार चाबियाँ बदलनी पड़ती है।

v  जैसे जब तक ढ़ोल को ज़ोर से न पीटा जाए तब तक वह मधुर स्वर उत्पन्न नही कर सकता। उसी प्रकार विनय,मधुरता और प्रार्थना तीनों चीजें व्यक्ति ,स्थान और परिस्थिति देखकर ही प्रयोग में लानी चाहिए।

 

 NOTE:

v  यहाँ लिखा गया हर एक शब्द सिर्फ एक सूक्ष्म वर्णन है “सुंदरकाण्ड” का सम्पूर्ण नही,यह एक कोशिश है,उस अनुभव को सांझा करने की जो “सुंदरकाण्ड” से मैंने महसूस करे।अगर कुछ त्रुटि हो गयी हो तो कृपया कमेंट बॉक्स के माध्यम से जरूर बताए।मैं फिर यह कहना चाहता हूँ,यह धर्म या संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए नहीं है,लेकिन यहां सांझा किया गए “सुंदरकाण्ड” के सबक और उनकी शिक्षा सभी मनुष्यों के लिए उपयोगी हो सकते हैं,चाहे वह किसी भी धर्मजाति या धर्म के हों।

“सुंदरकाण्ड-एकपथप्रदर्शक रस सरिता” ***रस प्रवाह क्र॰-17***

सुंदरकाण्ड-एकपथप्रदर्शक रस सरिता


***रस प्रवाह क्र॰-17*** 

प्रसंग: विभीषण का भगवान्‌ श्री रामजी की शरण के लिए प्रस्थान और शरण प्राप्ति-

कह प्रभु सखा बूझिए काहा। कहइ कपीस सुनहु नरनाहा ॥

जानि न जाइ निसाचर माया। कामरूप केहि कारन आया॥3॥

भावार्थ:- प्रभु श्री रामजी ने कहा- हे मित्र! तुम क्या समझते हो (तुम्हारी क्या राय है)? वानरराज सुग्रीव ने कहा- हे महाराज! सुनिए, राक्षसों की माया जानी नहीं जाती। यह इच्छानुसार रूप बदलने वाला (छली) न जाने किस कारण आया है॥3॥

श्रीराम एक अच्छे नायक के सभी गुणों से परिपूर्ण व्यक्तित्व का सटीक उदाहरण पेश करते हैं,उन्होने सदा दल में सभी के द्वारा दिये गए विचारों को आदर,सम्मान के साथ प्राथमिकता दी,जोकि एक अच्छे टीम लीडर का गुण होना चाहिए। इसका उदाहरण हमें विशेष रूप से उस समय मिलता है,जब रावण का भाई विभीषण उनकी शरण में आता है,तो प्रथम द्रष्टि में राम खुद कोई फैसला न लेकर अपने साथियों से विचार विमर्श लेते है,की दुश्मन का भाई शरण मांगने आया है,क्या किया जाये?जो की अच्छी टीम मीटिंग का उदाहरण है,क्योंकि जब आप टीम के साथियों के साथ विचार विमर्श से लिए जाते है,तो फैसला सबसे सही विचार के आधार पर ही लिया जाता है,साथ ही टीम के सदस्यों को भी अपने महत्व का वोध होता है।

 कह प्रभु सखा बूझिए काहा। 

कहइ कपीस सुनहु नरनाहा॥

भावार्थ:- प्रभु श्री रामजी ने कहा- हे मित्र! तुम क्या समझते हो (तुम्हारी क्या राय है)?

सभी से विचार विमर्श करने के बाद एक अच्छा टीम लीडर सदा वही फैसला लेता है,जो नीतिगत हो और सभी के लिए कल्याणकारी हो,इसका उदाहरण हमें तब देखने मिलता है,जब सुग्रीव द्वारा यह सुझाव देने पर की दुश्मन का भाई है,क्या पता,किस बात का पता लगाने आया है?,क्यों न उसे बांधकर रखा जाए।राम ने उचित रूप से विचार कर कहा किसी सरनागत को,जो सब कुछ छोड़ उनके भरोसे आया हो,उसे सहर्ष शरण में लेना स्वीकार किया।

सरनागत कहुँ जे तजहिं निज अनहित अनुमानि ।

 ते नर पावँर पापमय तिन्हहि बिलोकत हानि ॥43॥

भावार्थ:- (श्री रामजी फिर बोले-) जो मनुष्य अपने अहित का अनुमान करके शरण में आए हुए का त्याग कर देते हैं, वे पामर (क्षुद्र) हैं, पापमय हैं, उन्हें देखने में भी हानि है (पाप लगता है)॥43॥

विभीषण को शरण देना नीतिगत भी था,और राजनैतिक रूप से उचित भी,क्योंकि अंत में वही विभीषण रावण की मृत्यु का राज़ बताने में मददगार साबित हुआ।

सीख:

v  टीम लीडर को सदा टीम के सदस्यों का सम्मान करना चाहिए और फैसले सदा विचार विमर्श करके,उन्हे भरोसे में लेकर ही लेना चाहिए।

v  कभी कोई आपसे उम्मीद लिए मदद या शरण लेने आए तो उस समय उसकी सहायता करनी चाहिए।

 

 NOTE:

v  यहाँ लिखा गया हर एक शब्द सिर्फ एक सूक्ष्म वर्णन है “सुंदरकाण्ड” का सम्पूर्ण नही,यह एक कोशिश है,उस अनुभव को सांझा करने की जो “सुंदरकाण्ड” से मैंने महसूस करे।अगर कुछ त्रुटि हो गयी हो तो कृपया कमेंट बॉक्स के माध्यम से जरूर बताए।मैं फिर यह कहना चाहता हूँ,यह धर्म या संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए नहीं है,लेकिन यहां सांझा किया गए “सुंदरकाण्ड” के सबक और उनकी शिक्षा सभी मनुष्यों के लिए उपयोगी हो सकते हैं,चाहे वह किसी भी धर्मजाति या धर्म के हों।

“सुंदरकाण्ड-एकपथप्रदर्शक रस सरिता” ***रस प्रवाह क्र॰-16***

सुंदरकाण्ड-एकपथप्रदर्शक रस सरिता


   ***रस प्रवाह क्र॰-16***     

प्रसंग : श्री राम का सेना संग समुद्र तट पहुँचना और रावण का अपने मंत्रियों से सलाह लेना-

सचिव बैद गुर तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस ।

राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास॥37॥

भावार्थ :- मंत्री, वैद्य और गुरु- ये तीन यदि (अप्रसन्नता के) भय या (लाभ की) आशा से (हित की बात न कहकर) प्रिय बोलते हैं (ठकुर सुहाती कहने लगते हैं), तो (क्रमशः) राज्य, शरीर और धर्म- इन तीन का शीघ्र ही नाश हो जाता है॥37॥

श्री हनुमान से संदेश प्राप्त करने के बाद,श्रीराम वानर सेना सहित समुद्र के दूसरी ओर पहुँच जाते हैं।इस समाचार को प्राप्त करते हुए रावण अपनी सभा बुलाता है और अपने सभासदों और मंत्रियों से सुझाव मांगता है,कि अब क्या किया जाना चाहिए। वे इस बात पर हंसते हैं और रावण की प्रशंसा करते हैं,कि आपको चिंता करने कि क्या जरूरत है और उसके अहंकार को संतुष्ट करते हैं।

सीख: यह प्रसंग मानव जीवन के लिए बहुत महत्व रखता है,जिसे हर व्यक्ति को ध्यान से समझ लेना चाहिए-

v  हमेशा अपने आसपास के लोगों से सलाह लेते वक़्त सतर्क रहें। अनुकूलन मतलब आपको प्रिय लगने वाली बातें आपको विकास के पथ पर नहीं ले जाएगीं। विशेष रूप से तीन लोग : चिकित्सक,शिक्षक और सहायक या सचिव, यदि ये तीनों आपको सच्ची जानकारी और प्रतिक्रिया नहीं देते हैं और केवल आपको खुश करने की कोशिश करते हैं,तो आपका पतन सुनिश्चित है।

v  हमेशा अपने आसपास उन लोगों को रखें जो आपको सच्ची प्रतिक्रिया दें,झूठी प्रशंसा कानों को खुश कर सकती हैं, लेकिन यह निश्चित रूप से आपके विकास में मदद नहीं करेगी।

 NOTE:

v  यहाँ लिखा गया हर एक शब्द सिर्फ एक सूक्ष्म वर्णन है “सुंदरकाण्ड” का सम्पूर्ण नही,यह एक कोशिश है,उस अनुभव को सांझा करने की जो “सुंदरकाण्ड” से मैंने महसूस करे।अगर कुछ त्रुटि हो गयी हो तो कृपया कमेंट बॉक्स के माध्यम से जरूर बताए।मैं फिर यह कहना चाहता हूँ,यह धर्म या संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए नहीं है,लेकिन यहां सांझा किया गए “सुंदरकाण्ड” के सबक और उनकी शिक्षा सभी मनुष्यों के लिए उपयोगी हो सकते हैं,चाहे वह किसी भी धर्मजाति या धर्म के हों।