Tuesday 28 April 2020

थका हूँ पर हारा नही........


थका हूँ पर हारा नही...

थका हूँ इस सफर में,पर हारा नही,
ठहरा हूँ ज़रा सा,ज़िंदगी की राह में पर थमा नही,
सपने है मेरे ये,और इन पर किसी का पहरा नही,
थका हूँ इस सफर में,पर हारा नही………………
चेहरे हज़ार लिए,इस बाज़ार में लोग बहुत फिरते है,
कीमत तय कर सके,तिजारत कर सके कोई,
मैं वो कोई आम और मामूली चेहरा नही,
थका हूँ इस सफर में,पर हारा नही………………
ठोकरे खाकर सीखीं है,रवायतें जहान की,
ये दिल की मंडी है जनाब,
यहाँ हम जैसा सौदागर,कोई दूजा नही,
थका हूँ इस सफर में,पर हारा नही………………
मैं वो नशा हूँ साक़ी,जिसे पीकर लोग बहक जाते हैं,
पर खुद लड़खड़ा जाऊँ,मैं वो सस्ती शराब नही,
थका हूँ इस सफर में,पर हारा नही………………
हालातों के बिस्तर पर,करबंटे लेता ये वक़्त,
बदलता रहा है,और फिर बदल जाएगा,
पर न बदला है न बदलेगा,
वो जो है,वो ख़्वाब है,और इरादे हैं मेरे,
जो बदल जाए,वो कोई इंसान जैसे तो नही,
थका हूँ इस सफर में,पर हारा नही………………
लहरों पर इठलाती-बलखाती,शर्माती-घबराती,
ये कश्ती-सी ज़िंदगी,
सोचते है लोग की बस,अब डूब जाएगी,
पर ये कश्ती,मेरे मज़बूत इरादों की है साहब,
जो आसानी से डूब जाये,ये कश्ती वो कागज़ की नही,
थका हूँ इस सफर में,पर हारा नही
ठहरा हूँ ज़रा सा,ज़िंदगी की राह में पर थमा नही।
A page from “Sanyog’s Diary”

Monday 27 April 2020

“सुंदरकाण्ड-एक पथप्रदर्शक रस सरिता” ***रस प्रवाह क्र॰-4***


सुंदरकाण्ड-एक पथप्रदर्शक रस सरिता

***रस प्रवाह क्र॰-4***

प्रसंग: लंका पहुंचने के बाद श्री हनुमान एक पर्वत पर रुकते हैं। वह लंका को ध्यान से देखते है,और विश्लेषण करते है।और यह फैसला लेते है,की वह रात में और बहुत छोटे रूप में लंका में प्रवेश करेंगे।

गिरि पर चढ़ि लंका तेहिं देखी । कहि न जाइ अति दुर्ग बिसेषी॥5॥

भावार्थ : पर्वत पर चढ़कर उन्होंने लंका देखी। बहुत ही बड़ा किला है, कुछ कहा नहीं जाता॥5

पुर रखवारे देखि बहु कपि मन कीन्ह बिचार ।
अति लघु रूप धरों निसि नगर करौं पइसार॥3॥

भावार्थ : नगर के बहुसंख्यक रखवालों को देखकर हनुमान्‌जी ने मन में विचार किया कि अत्यंत छोटा रूप धरूँ और रात के समय नगर में प्रवेश करूँ॥3॥

सीख:
v  सुंदरकाण्ड का यह सारा प्रसंग हमें बहुत ही महत्वपूर्ण सीख देता है,की किसी भी समस्या को देखकर घबराएँ न बल्कि हमेशा अपनी समस्या को समझें और उसका अवलोकन करें। समस्या अपने साथ उसका हल भी लेकर आती है,उसका अच्छे से अवलोकन करें और फिर उसके निराकरण के लिए एक योजना बनाएं। निश्चिय ही उस समस्या का हल निकल ही जाएगा।
 NOTE:


  v  यहाँ लिखा गया हर एक शब्द सिर्फ एक सूक्ष्म वर्णन है “सुंदरकाण्ड” का सम्पूर्ण नही,यह एक कोशिश है,उस अनुभव को सांझा करने की जो “सुंदरकाण्ड” से मैंने महसूस करे।अगर कुछ त्रुटि हो गयी हो तो कृपया कमेंट बॉक्स के माध्यम से जरूर बताए।मैं फिर यह कहना चाहता हूँ,यह धर्म या संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए नहीं है,लेकिन यहां सांझा किया गए “सुंदरकाण्ड” के सबक और उनकी शिक्षा सभी मनुष्यों के लिए उपयोगी हो सकते हैं,चाहे वह किसी भी धर्मजाति या धर्म के हों।

Saturday 25 April 2020

“सुंदरकाण्ड-एक पथप्रदर्शक रस सरिता” रस प्रवाह क्र॰-3


“सुंदरकाण्ड-एक पथप्रदर्शक रस सरिता”

***रस प्रवाह क्र॰-3***


प्रसंग: सुरसा द्वारा उनका रास्ता रोका जाना-

सीख: 
हनुमान जी जब लंका खोजे के लिए निकले,तो पहला सामना उनका सुरसा से हुआ,उन्होने कहा मुझे जाने दो तो सुरसा ने कहा मैं तुम्हें खाऊँगी। उन्होने प्रार्थना की हे! माता अभी जाने दो,सीता माँ का समाचार लाने दो,उसके बाद जरूर खा लेना। तो सुरसा ने कहा नही,तो कहा तो फिर ठीक है जल्दी खाओ,समय नही है,बहुत काम करना है।सुरसा ने जैसे ही अपना मुंह खोला तो उन्होने अपना आकार बड़ा कर लिया,जैसे-जैसे सुरसा मुख का विस्तार बढ़ाती थी,हनुमान्‌जी उसका दूना रूप दिखलाते थे।ऐसा करते-करते उसने सौ योजन (चार सौ कोस का) मुख किया। तब हनुमान्‌जी ने बहुत ही छोटा रूप धारण कर लिया। और उसके मुख में घुसकर तुरंत फिर बाहर निकल आए,जिससे सुरसा की आन बनी रही और हनुमानजी का भी काम बन गया। ये कथा सबको पता है,पर इससे सीखने वाली बात है,की जब ताकत दिखानी थी तो बड़े हो गए और जब बुद्धि दिखानी थी तो छोटे हो गए कहने का मतलब यह है-

v केवल शारीरिक शक्ति ही हर समय आपकी मदद नही कर सकती,बुद्धिमत्ता भी एहम आवश्यकता है,जो महत्वपूर्ण है। और हमें यह पता होना चाहिए कि ताकत और शक्ति का प्रभावी ढंग से उपयोग कब,कहाँ और कैसे करें।

v अनावश्यक शक्ति प्रदर्शन नही करना चाहिए,जरूरत पड़ने पर ही शक्तियों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए।

v अपने शब्दों का सम्मान करें और उनके प्रति सच्चे और ईमानदार रहें।

NOTE:
v  यहाँ लिखा गया हर एक शब्द सिर्फ एक सूक्ष्म वर्णन है “सुंदरकाण्ड” का सम्पूर्ण नही,यह एक कोशिश है,उस अनुभव को सांझा करने की जो “सुंदरकाण्ड” से मैंने महसूस करे।अगर कुछ त्रुटि हो गयी हो तो कृपया कमेंट बॉक्स के माध्यम से जरूर बताए।मैं फिर यह कहना चाहता हूँ,यह धर्म या संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए नहीं है,लेकिन यहां सांझा किया गए “सुंदरकाण्ड” के सबक और उनकी शिक्षा सभी मनुष्यों के लिए उपयोगी हो सकते हैं,चाहे वह किसी भी धर्मजाति या धर्म के हों।


Thursday 23 April 2020

“सुंदरकाण्ड-एक पथप्रदर्शक रस सरिता”


“सुंदरकाण्ड-एक पथप्रदर्शक रस सरिता”

***रस प्रवाह क्र॰-2***

प्रसंग: मैनाक पर्वत श्री हनुमान जी को लंका की यात्रा के दौरान आराम करने के लिए मदद प्रदान करते है। लेकिन हनुमान जी विनम्रता से मदद के लिए मना कर देते है।

जलनिधि रघुपति दूत बिचारी । तैं मैनाक होहि श्रम हारी॥5।।

भावार्थ : समुद्र ने उन्हें श्री रघुनाथजी का दूत समझकर मैनाक पर्वत से कहा कि हे मैनाक! तू इनकी थकावट दूर करने वाला हो (अर्थात्‌ अपने ऊपर इन्हें विश्राम दे)॥5॥

हनूमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम ।
 राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम॥1॥

भावार्थ : हनुमान्‌जी ने उसे हाथ से छू दिया, फिर प्रणाम करके कहा- भाई! श्री रामचंद्रजी का काम किए बिना मुझे विश्राम कहाँ?॥1॥
सीख: 

सुंदरकाण्ड एक भक्त हनुमान की स्वामी भक्ति को सार्थक सिद्ध करती हुई कथा है,जिसमें एक भक्त अपने स्वामी के कार्य सिद्धि की महत्वता को सर्वोपरि रखता है,और यह मानकर लक्ष्य की ओर आगे बड़ता है,की जब तक लक्ष्य की प्राप्ति नही हो जाती,तब तक ना वो आराम करेंगे,न कुछ खाएँगे,न पियेंगे।यह उनका कार्य और अपने स्वामी के प्रति समर्पण और ईमानदारी को दर्शाता है।

v  किसी भी क्षेत्र में जब भी आप कोई कार्य करें,उस कार्य को पूर्ण समर्पण के साथ करना चाहिए।तभी लक्ष्य की प्राप्ति हो पाती है,अगर आप अपने लक्ष्य को पाने के प्रति ईमानदार है,तो लक्ष्य आपको जरूर मिलता है,अपने लक्ष्य के प्रति ध्यान केंद्रित रखें,और यह निश्चय करें कि जब तक आप अपने लक्ष्य तक नहीं पहुँचते,तब तक हार नहीं मानेंगे। कभी-कभी अपने लक्ष्यों को छोड़ने और उनसे डिगाने के लिए सफलता की राह में कुछ प्रलोभन आ सकते है,लेकिन उन लोभों में नहीं पड़ना चाहिए।

v  दूसरी सीख हमें यह मिलती है की हमेशा विनम्र रहें जब आपको किसी के द्वारा दी जाने वाली मदद को न कहना हो। आपको उनके प्रस्ताव को ठुकराते वक़्त या उन्हे न कहते वक़्त उनकी भवना को आहत नहीं करना चाहिए।

NOTE:
यहाँ लिखा गया हर एक शब्द सिर्फ एक सूक्ष्म वर्णन है सुंदरकाण्ड का सम्पूर्ण नही,यह एक कोशिश है,उस अनुभव को सांझा करने की जो सुंदरकाण्ड से मैंने महसूस करे।अगर कुछ त्रुटि हो गयी हो तो कृपया कमेंट बॉक्स के माध्यम से जरूर बताए।मैं फिर यह कहना चाहता हूँ,यह धर्म या संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए नहीं है,लेकिन यहां सांझा किया गए सुंदरकाण्ड के सबक और उनकी शिक्षा सभी मनुष्यों के लिए उपयोगी हो सकते हैं,चाहे वह किसी भी धर्मजाति या धर्म के हों।


Tuesday 21 April 2020

“सुंदरकाण्ड-एक पथप्रदर्शक रस सरिता”


“सुंदरकाण्ड-एक पथप्रदर्शक रस सरिता”
सुंदरकांड” ‘श्री रामचरितमानसका पंचम सोपान है। रामचरितमानस महर्षि वाल्मिकी द्वारा रचित रामायणपर आधारित महाकाव्य है।महर्षि वाल्मिकी ने रामायण संस्कृत में लिखी थी,पर आमजन तक सीधे उसकी पंहुच नहीं थी,लेकिन गोस्वामी तुलसीदास जी ने तत्कालीन आम बोलचाल की भाषा अवधी में इसकी रचना की और रामायण को घर-घर तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई। लोगों की ज़बान पर श्री रामचरितमानस चढ़ने का एक कारण यह भी था,कि आम बोलचाल की भाषा में होने के साथ-साथ इसमें गायन है,एक लय है,एक गति है।वैसे तो रामचरितमानस में तुलसीदास ने प्रभु श्रीराम के जीवन चरित का वर्णन किया है,और पूरे मानस के नायक मर्यादापुरुषोत्तम भगवान श्रीराम ही हैं। लेकिन “सुंदरकांड” में रामदूत,पवनपुत्र हनुमान का यशोगान किया गया है। इसलिये “सुंदरकांड” के नायक श्रीहनुमान हैं।
हनुमान जी सफलता के देवता माने जाते है,और “सुंदरकांड” को याद किया जाता है सफलता के लिए। सुंदरकाण्ड श्रीरामचरितमानस के 5वे अध्याय में आता है,इसके बारे में लोग अक्सर चर्चा करते है,कि इस अध्याय का नाम सुंदरकाण्ड ही क्यों रखा गया। श्रीरामचरितमानस में 7 कांड हैं और सुंदरकाण्ड” के अतिरिक्त सभी स्थानों के नाम या स्थितियों के आधार पे रखे गए है। जब हनुमान जी सीता जी की खोज में लंका गए थे,लंका त्रिकुटाचल पर्वत पर बसी हुई है, त्रिकुटाचल पर्वत यानी यहां 3 पर्वत वाला स्थान,पहला सुबेल पर्वत जहां के मैदान में पूरा युद्ध हुआ था,दूसरा है निल पर्वतहां दैत्यों के घर बसे हुए थे और तीसरा सुंदर पर्वतहां पर अशोक वाटिका निर्मित है और इसी अशोक वाटिका में हनुमान जी और सीता माता जी की भेंट हुई थी।इस कांड की सबसे प्रमुख घटना यही थी,इसलिए इसका नाम सुंदरकाण्ड रखा गया।
सम्पूर्ण श्रीरामचरितमानस भगवान् के गुणों की पूर्णता को दर्शाती है,लेकिन सुंदरकाण्ड एक ऐसा अध्याय है,जो श्रीराम के भक्त हनुमान की विजय का अध्याय है।मनोवैज्ञानिक नजीरिये से अगर हम आंकलन करें,तो यह आत्मविश्वास को बढ़ाने वाला अध्याय है। सुंदरकाण्ड का पाठ भक्त के आत्मविश्वास और इच्छाशक्ति को बढ़ाता है। इस अध्याय का पाठ करने से आत्मबल में बढ़ोतरी होती है,और किसी भी कार्य को पूर्ण करने के लिए आत्मविश्वामिलता है।हनुमान जी एक वानर थे,जो समुन्द्र को लांघ कर लंका पहुँच गए,वहाँ सीता माता की खोज की और लंका को जलाया और सीता जी का संदेश लेकश्रीराम जी के पास गए,ये एक भक्त की जीत का अध्याय हैं।जो अपनी इच्छाशक्ति के बल पर इतना बड़ा चमत्कार कर सकता हैं।सुंदरकाण्ड में हमारी जीवन की सफलता के लिए बहुत सारे महत्वपूर्ण सूत्र दिए गए है। “सुंदरकाण्ड में 2 छंद,3 श्लोक,60 दोहे और 526 चौपाइयां है, सुंदर शब्द इस कांड में 24 चौपाइयों में आया है।
सुंदरकाण्ड रामचरितमानस का एक ऐसा अध्याय है,जो जीवन को जीने के और उसे देखने के,एक अलग ही नजरिए को दिखाता है,कुछ मुख्य पात्र या कहें तो लोग,एक त्रिलोकीनाथ श्रीराम जो मानव कल्याण के लिए धरती पर आए और वनवासी हुये,साथ में भाई लक्ष्मण जो अपने बड़े भाई की आज्ञा को ही सर्वोपरि मानता है,एक पत्नी सीता जो मानव कल्याण के एक बहुत ही महत्वपूर्ण घटनाक्रम को पूर्ण करने के लिए अपने पति से दूर अंजानों के बीच अप्रहत रही। एक वानर रूपी भक्त हनुमान जिसके अस्तित्व का मूल उद्देश्य अपने प्रभु की सेवा रहा। और एक अहंकारी राजा रावण जिसकी अहंकार की तुष्टि की कामना ने सारे वंश को समूल नाश कर दिया। यही कुछ वो मूल किरदार रहे,जिनके आसपास इस सुंदरकाण्ड की घटनाओं का ताना-बाना बुना गया।पर कहीं न कहीं ये कहानी या कहूँ तो सुंदरकाण्ड,मूल रूप से राम भक्त “हनुमान” की सार्थक भक्ति यात्रा के आरंभ को व्यक्त करती है,की कैसे एक वानर रूपी जीव अपने सरल भाव से ईश्वर का,इस संसार में सबसे बड़ा भक्त बन सकता है।कहते है,सभी भक्तों को अपने इष्ट या ईश्वर से लगाव और प्रेम होता है,पर वह भक्त जिसके ईश्वर को अपने भक्त से प्रेम और जुड़ाव का नाता बन जाये,वह तो अनुपम और अद्वितीय भक्त बन जाता है,ऐसा रिश्ता बना श्रीराम और उनके भक्त श्री हनुमान के बीच। ये सुंदरकाण्ड सिर्फ श्रीरामचरितमानस का एक अंग या अध्याय नही है,ये अध्याय जीवन के कई सारे लक्ष्यों,उद्देश्यों और उन तक पहुँचने के मार्ग को भी परिभाषित करता है,इसकी चौपाइयाँ,छंद और दोहे अपने अर्थ सिर्फ इस कथा के रूप में नही दर्शाते,वरन इस मानव संसार के कई सारे दैनिक प्रश्नावलियों के  सारगर्भित उत्तरों का गहरा प्रभाव लिए इस पवित्र ग्रंथ में समाहित है।
सुंदरकाण्ड कई सारे प्रबंधन,राजनैतिक,मनोवैज्ञानिक,दार्शनिक और सामाजिक क्षेत्रों के विषयों का परिपूर्ण सार है,जिनका उदाहरण हमें इस ग्रंथ की चौपाई छंद और दोहों के सार से प्राप्त होता है,श्रीराम का व्यक्तित्व अपने आप में ही सम्पूर्ण है,उन्होनें अपने कार्यों,क्रियाआओं और लीलाओं से उदाहरणों की श्रंखला का निर्माण किया है।  “सुंदरकाण्ड उस लंकेश्वर के समूल नाश का वो केंद्र बना,जिसके इर्दगिर्द घटी घटनाओं ने महाप्रखण्ड विद्वान ज्ञानी,ध्यानी किन्तु अभिमानी,कुटिल,दुराचारी लंकेश के वध की कहानी की आधार शिला रखी।
सुंदरकाण्ड में श्रीराम मैनेजमेंट अर्थात प्रबंधन के कई सरल उदाहरणों को क्रियान्वित करते हुये मिलते है,जो की यह दर्शाता है की “दल का सही गठन और प्रबंधन” कितना महत्वपूर्ण है,जैसे उन्होने वंचित सुग्रीव,जिसे कभी उसके भाई ने राज्य से निकाल दिया,सब कुछ छीन लिया,उस व्यक्ति से मित्रता की,उसे अपने जीवन के सबसे महत्वपूर्ण कार्य के निष्पादन में एहम किरदार दिया,क्योंकि वो मर्यादित था,अपने मित्र के प्रति,उसकी मित्रता के प्रति,उसका समर्पण अतुलनीय था। अपनी सेना के हर एक व्यक्ति के गुणों को आदर और सम्मान के साथ,सही समय पर,सही जगह पर,उसका सही उपयोग किया,चाहे वो सेतु निर्माण के लिए नल-नील दोनों भाइयों की निर्माण शैली का गुण ही क्यों न रहा हो,राम स्वयं सम्पूर्ण थे,किंतू कभी उन्होने इस बात का प्रदर्शन,अपने साथी जनों को नीचा दिखाने में नहीं किया।
यहाँ सुंदरकाण्डके कुछ प्रसंगो पर नज़र डालते हैं,जिनसे हमारे जीवन को जीने,उसमें उत्पन्न होने वाली समस्याओं के हल बहुत ही सरल और तर्क संगत रूप में हमें सुंदरकाण्ड से प्राप्त होते है-

प्रसंग: जामवंत ने हनुमान जी को उनकी शक्तियों का अहसास कराया जिसे वह भूल गए थे।

जामवंत के बचन सुहाए । सुनि हनुमंत हृदय अति भाए ॥

तब लगि मोहि परिखेहु तुम्ह भाई।सहि दुख कंद मूल फल खाई॥1॥

भावार्थ : जामवंत के सुंदर वचन सुनकर हनुमान्‌जी के हृदय को बहुत ही भाए। (वे बोले-) हे भाई! तुम लोग दुःख सहकर, कन्द-मूल-फल खाकर तब तक मेरी राह देखना॥1॥
सीख:
v  हम सभी के अंदर कुछ छिपे हुए गुण हैं,बस जरूरत है,उन्हें पहचानने की,और सही जगह पर उपयोग करने की।
v  हर किसी के पास जामवंत की तरह एक मित्र होना चाहिए और हमें उन्हें महत्व देना चाहिए,क्योंकि वे हमें हमारी छिपी क्षमता को पहचानने और उन्हें बढ़ाने में मदद करते हैं।
v  तीसरी यह की किसी भी कार्य को करने से पहले,उसके बारे में हमें सकारात्मक विचार और खुशी का भाव रखना चाहिये,जिससे उस कार्य के सफल होने का प्रतिशत बड़ जाता है,और लक्ष्य तक का रास्ता और बाधाएँ हमें सुखद और आसान लगने लगती है।


NOTE:
यहाँ लिखा गया हर एक शब्द सिर्फ एक सूक्ष्म वर्णन है सुंदरकाण्ड का सम्पूर्ण नही,यह एक कोशिश है,उस अनुभव को सांझा करने की जो सुंदरकाण्ड से मैंने महसूस करे।अगर कुछ त्रुटि हो गयी हो तो कृपया कमेंट बॉक्स के माध्यम से जरूर बताए।मैं फिर यह कहना चाहता हूँ,यह धर्म या संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए नहीं है,लेकिन यहां सांझा किया गए सुंदरकाण्ड के सबक और उनकी शिक्षा सभी मनुष्यों के लिए उपयोगी हो सकते हैं,चाहे वह किसी भी धर्म, जाति या धर्म के हों।