Tuesday 29 August 2017

"सीमा - इसके आगे ज़िन्दगी है।"

            "सीमा - इसके आगे ज़िन्दगी है।"

हर एक महिला की शख्सियत में संघर्ष कर सफलता हासिल करने का गुण प्राकृतिक रूप से उपस्थित होता है,बस जरूरत है तो उस जज़्बे को पहचानने की,आइए मिलते ऐसी ही एक महिला से जिसने अपने इसी जज़्बे के दम पर लड़ाई लड़ी और शान से जीती भी,जिसकी कहानी शायद किसी भी औरत की हो सकती है।सीमा जिसके नाम का अर्थ ही "हद और मर्यादा" होता है ने सदा परिवार, कुटुम्ब की मान मर्यादा में रहकर जीवन जिया,लेकिन जब कभी अपनों पर मुसीबत आयी तो कभी उस सीमा को तोड़कर उनके लिए खड़े होने से भी नहीं चूकि।एक मध्यम वर्गीय परिवार में जन्मी चार भाई-बहनों में सबसे बड़ी और सभी की चहेती लाड़ली,परिवार में यूं तो कोई कमी नही थी,पर जरूरत से ज्यादा भी कोई चीज नही थी। बस मध्यम वर्ग की जो काम चलाने की परिभाषा होती है,उस के अनुसार जरूरत के हिसाब से काम होते थे।जैसे-जैसे वक़्त बीता उम्र के हिसाब से सीमा भी बड़ी हुई।ये कह देना की सीमा पढ़ाई में बहुत तेज थी,कहीं न कहीं बेईमानी होगी पर वो औसत थी।मगर उसमें बचपन से ही कभी परिस्थितियों के सामने घुटने न टेकने का जज़्बा था जो उसे कहीं न कहीं औरों से अलग पहचान देता और खास बनाता था,और किसी आम लड़की की तरह उसकी भी जिंदगी थी।छोटी-छोटी इक्षाएँ थी,और परिवार के छोटे -मोटे सुख-दुख के साथ जिंदगी के इंद्रधनुषी रंगों की खुशियां थी। जब पढ़ाई पूरी हुई तो ज़िन्दगी की हसीन किताब में एक नायाब पन्ना जुड़ा जिसमें सीमा की ज़िंदगी में नया जीवन साथी आया,उनकी शादी हुई और एक प्रतिष्ठित परिवार की बहू बनकर वो ससुराल आ गयी। जिंदगी बहुत खुशनुमा माहौल में चल रही थी । एक छोटा सा घर था,प्यार करने वाला पति और एक अच्छा परिवार और क्या चाहिए जीवन में।सीमा थी तो पड़ी लिखी इसलिए वक़्त और हालात को देखते हुए उसे अपने पति का साथ देने के लिए नौकरी करने का फैसला किया,जो शुरूआत में परिवार के कुछ लोगों को चुभा पर पति का साथ दिल से मिला।सीमा शुरुआत से ही एक मजबूत इक्षाशक्ति वाली लड़की थी उसने हालात के सामने कभी हार न मानना ही सीखा था इसीलिए उसने एक छोटे से कॉलेज में पढ़ाने का कार्य स्वीकार किया और नए सफर में आगे चल दी। इसी दौरान अपनी आय और शिक्षा को मजबूती देने के लिए पीएचडी करने का फैसला किया पर शायद ये आसान नही था,क्योंकि अब सीमा की ज़िंदगी में सिर्फ उसके पति नही थे।बल्कि अब वो दो से तीन हो चुके थे,उसके आंगन में एक नन्हा बालक आ चुका था। जिसकी देखभाल करने के साथ पीएचडी का रिसर्च कार्य करना आसान नही था पर उसके कुछ कर दिखाने के चट्टानी ईरादे ने इस काम में भी उसे सफलता दिलाई। अपने अथक परिश्रम और प्रयास से इस दंपति ने जीवन की सारी खुशियाँ अपने घर आँगन में सजा ली थी।जीवन के हर उतार चढ़ाव को पार कर एक सफल जीवन जी रहे थे। अपने बेटे की परवरिश की खातिर सीमा ने अपने कॉलेज के प्राचार्य पद से इस्तीफा दे दिया था।ताकि वो अपना पूरा वक़्त अपने बेटे को दे सके। ठीक भी था जीवन में जो भी पाने की अभिलाषा वो सब अपने संघर्ष और तपस्या से पा लिया था, सब कुछ था,वो घर पर रहकर अपना पूरा समय बेटे और पति को दे रही थी,और यही वो अब दिल से चाहती भी थी।पर कहते हैं ना सब कुछ आपकी प्लानिंग के हिसाब से नही होता है,अगर ऐसा हो जाये तो जीवन के रंगमंच पर नाटक ही खत्म हो जाये,जिसे लोग हैप्पी एंडिंग समझ रहे थे उसका अभी इंटरवल के बाद का शो बाकी था। इनकी खुशियों को जैसे नज़र लग गई,अचानक एक दिन पता चला कि सीमा को सेकंड स्टेज कैंसर हो गया है।सीमा के पैरों से जैसे ज़मीन खिसक गई,लगा जैसे सब कुछ खत्म हो गया,इतने साल जिस जीवन को संवारने के लिए मेहनत की,आज जब सुख लेने का वक़्त आया तो जैसे लगा कि वक़्त ने ठग लिया और सब कुछ चोरी हो गया। समझ नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए। वह चाह कर भी अपने आंसू अपने बेटे के सामने नही निकाल पा रही थी और उसका बेटा घर में पसरे सन्नाटे को समझने का प्रयास कर रहा था।दो दिन तक लगातार सोचने के बाद सीमा ने एक बार फिर लड़ने की ठानी हमेशा दूसरों के भले के लिए लड़ने वाली सीमा इस बार खुद के लिए लड़ने को खड़ी हुई,एक ऐसी लड़ाई जिसमें सब कुछ दाव पर लगा था और ये एक ब्लाइंड गेम था जिसके पत्ते सामने होते हुए भी नही खुले थे।
उसने अपने पति के साथ जाकर डॉक्टर से सलाह ली,और कैंसर का इलाज लेना शुरू किया ,इलाज़ के दौरान कीमों थैरपी के दर्द को बर्दाश्त करना बहुत मुश्किल हो रहा था,सिर से झड़ते बालों का अनुभव बेहद मानसिक दुख देता था।पर अपने आने वाले सुखद काल की आस जिसमें अपने बेटे को बड़ा होते देखना शामिल था,इसे सहन करने की शक्ति दे रहा था।अपनी इसी इक्षाशक्ति के बल पर आज सीमा कैंसर को हरा चुकी है और अपना जीवन सामान्य रूप से जी रही हैं।
अब सीमा अपने हर सेकण्ड को कुछ इस तरह जीती है,जैसी बस इसी पल में जिंदगी है और हर लम्हा उन्हें पूरी ज़िंदगी भर की खुशियों का एहसास दे जाता है। इस बात को आज पूरे दो साल बीत रहे है। सीमा कभी अपने इस कड़वे एहसास को नही भूलना चाहती है क्योंकि इसी कड़वे एहसास ने ही उसे जीवन के हर पल को फिर से जीने की प्रेरणा दी है।गर्व होता है,ऐसी महिला को देखकर जिसने ज़िन्दगी के इम्तिहानों से कभी शिकायतें नहीं की बल्कि हर बार उनसे एक कदम आगे जाकर सफलता की नई इबारत लिखी। इसीलिए तो कहते हैं कि "हुज़ूर ज़िन्दगी से शिकायतें नही बल्कि जो मिला है उसके लिए शुक्रिया करना चाहिए और उन्हीं लम्हों को दिल से जीकर खुशियों को कई गुना बड़ा लेना चाहिए।"