Sunday 5 November 2017

हिल नही सकता एक भी पत्ता,

हो रामा.......
हिल नही सकता एक भी पत्ता,बिन मर्ज़ी संसार में
डोर है हांथों में तेरे ,हैम सबकी इस संसार में,
पर लगा दे मेरी नैय्या, बीच पड़ी मझदार में,
हिल नही सकता एक भी पत्ता,बिन मर्ज़ी संसार में.....
जैसे तारा  अहिल्या मैया को,वैसे हम को भी तारो मेरे प्रभु राम जी
रिश्ते नाते है ये दिखावे,घिरे पड़े मोह माया जाल से,
सबको तारा अब हमको भी तारो,पीर बड़ी संसार में
हिल नही सकता एक भी पत्ता,बिन मर्ज़ी संसार में.....
शबरी के खाये तुमने जूठे
शबरी के खाये तुमने जूठे
बेर जैसे प्यार में,
देखत रह गए चोंक के सबरे सेठ इस संसार में
हिल नही सकता एक भी पत्ता,बिन मर्ज़ी संसार में.....
नज़रे इनायत की बारिश कब होगी हम पर
नज़रे इनायत की बारिश कब होगी हम पर
कब से बैठे इस इंतज़ार में
हिल नही सकता एक भी पत्ता,बिन मर्ज़ी संसार में.....

Thursday 28 September 2017

अभी और भी है।.....

अभी और भी है।.....
संघर्ष अभी और भी है।
जीती है आधी दुनिया,जीतने को बाक़ी आधी दुनिया और भी है।
संघर्ष अभी और भी है।............
मिली है मन्ज़िले सिर्फ अभी चंद,सफर अभी और भी है।
संघर्ष अभी और भी है।............
तू रुक मत थक मत,पार करने को पड़ाव अभी और भी है
संघर्ष अभी और भी है।.......
माना रास्ते में अड़चनें रूकावटे मुश्किलें है बहुत,
पर तेरे होंसलों प्रयासों के आगे इनका कोई ज़ोर नहीं है।
संघर्ष अभी और भी है।.......
सफर लंबा है इस ज़िंदगानी का,सब अपने हैं यहाँ,
गम कर साथी कई मिलेंगें बिछड़ेंगे यहाँ,
पर मिलना-बिछड़ना तो रवायात है ज़िन्दगी की,
कहाँ कोई अपना अपने सिवा कहाँ हुआ यहां,
बस यादों के घरोंदों में कुछ किस्से-कहानियां और भी हैं,
तू रुक मत थक मत,पार करने को पड़ाव अभी और भी है।
मिली है मन्ज़िले सिर्फ अभी चंद.
सफर अभी और भी है।

संघर्ष अभी और भी है।

Tuesday 29 August 2017

"सीमा - इसके आगे ज़िन्दगी है।"

            "सीमा - इसके आगे ज़िन्दगी है।"

हर एक महिला की शख्सियत में संघर्ष कर सफलता हासिल करने का गुण प्राकृतिक रूप से उपस्थित होता है,बस जरूरत है तो उस जज़्बे को पहचानने की,आइए मिलते ऐसी ही एक महिला से जिसने अपने इसी जज़्बे के दम पर लड़ाई लड़ी और शान से जीती भी,जिसकी कहानी शायद किसी भी औरत की हो सकती है।सीमा जिसके नाम का अर्थ ही "हद और मर्यादा" होता है ने सदा परिवार, कुटुम्ब की मान मर्यादा में रहकर जीवन जिया,लेकिन जब कभी अपनों पर मुसीबत आयी तो कभी उस सीमा को तोड़कर उनके लिए खड़े होने से भी नहीं चूकि।एक मध्यम वर्गीय परिवार में जन्मी चार भाई-बहनों में सबसे बड़ी और सभी की चहेती लाड़ली,परिवार में यूं तो कोई कमी नही थी,पर जरूरत से ज्यादा भी कोई चीज नही थी। बस मध्यम वर्ग की जो काम चलाने की परिभाषा होती है,उस के अनुसार जरूरत के हिसाब से काम होते थे।जैसे-जैसे वक़्त बीता उम्र के हिसाब से सीमा भी बड़ी हुई।ये कह देना की सीमा पढ़ाई में बहुत तेज थी,कहीं न कहीं बेईमानी होगी पर वो औसत थी।मगर उसमें बचपन से ही कभी परिस्थितियों के सामने घुटने न टेकने का जज़्बा था जो उसे कहीं न कहीं औरों से अलग पहचान देता और खास बनाता था,और किसी आम लड़की की तरह उसकी भी जिंदगी थी।छोटी-छोटी इक्षाएँ थी,और परिवार के छोटे -मोटे सुख-दुख के साथ जिंदगी के इंद्रधनुषी रंगों की खुशियां थी। जब पढ़ाई पूरी हुई तो ज़िन्दगी की हसीन किताब में एक नायाब पन्ना जुड़ा जिसमें सीमा की ज़िंदगी में नया जीवन साथी आया,उनकी शादी हुई और एक प्रतिष्ठित परिवार की बहू बनकर वो ससुराल आ गयी। जिंदगी बहुत खुशनुमा माहौल में चल रही थी । एक छोटा सा घर था,प्यार करने वाला पति और एक अच्छा परिवार और क्या चाहिए जीवन में।सीमा थी तो पड़ी लिखी इसलिए वक़्त और हालात को देखते हुए उसे अपने पति का साथ देने के लिए नौकरी करने का फैसला किया,जो शुरूआत में परिवार के कुछ लोगों को चुभा पर पति का साथ दिल से मिला।सीमा शुरुआत से ही एक मजबूत इक्षाशक्ति वाली लड़की थी उसने हालात के सामने कभी हार न मानना ही सीखा था इसीलिए उसने एक छोटे से कॉलेज में पढ़ाने का कार्य स्वीकार किया और नए सफर में आगे चल दी। इसी दौरान अपनी आय और शिक्षा को मजबूती देने के लिए पीएचडी करने का फैसला किया पर शायद ये आसान नही था,क्योंकि अब सीमा की ज़िंदगी में सिर्फ उसके पति नही थे।बल्कि अब वो दो से तीन हो चुके थे,उसके आंगन में एक नन्हा बालक आ चुका था। जिसकी देखभाल करने के साथ पीएचडी का रिसर्च कार्य करना आसान नही था पर उसके कुछ कर दिखाने के चट्टानी ईरादे ने इस काम में भी उसे सफलता दिलाई। अपने अथक परिश्रम और प्रयास से इस दंपति ने जीवन की सारी खुशियाँ अपने घर आँगन में सजा ली थी।जीवन के हर उतार चढ़ाव को पार कर एक सफल जीवन जी रहे थे। अपने बेटे की परवरिश की खातिर सीमा ने अपने कॉलेज के प्राचार्य पद से इस्तीफा दे दिया था।ताकि वो अपना पूरा वक़्त अपने बेटे को दे सके। ठीक भी था जीवन में जो भी पाने की अभिलाषा वो सब अपने संघर्ष और तपस्या से पा लिया था, सब कुछ था,वो घर पर रहकर अपना पूरा समय बेटे और पति को दे रही थी,और यही वो अब दिल से चाहती भी थी।पर कहते हैं ना सब कुछ आपकी प्लानिंग के हिसाब से नही होता है,अगर ऐसा हो जाये तो जीवन के रंगमंच पर नाटक ही खत्म हो जाये,जिसे लोग हैप्पी एंडिंग समझ रहे थे उसका अभी इंटरवल के बाद का शो बाकी था। इनकी खुशियों को जैसे नज़र लग गई,अचानक एक दिन पता चला कि सीमा को सेकंड स्टेज कैंसर हो गया है।सीमा के पैरों से जैसे ज़मीन खिसक गई,लगा जैसे सब कुछ खत्म हो गया,इतने साल जिस जीवन को संवारने के लिए मेहनत की,आज जब सुख लेने का वक़्त आया तो जैसे लगा कि वक़्त ने ठग लिया और सब कुछ चोरी हो गया। समझ नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए। वह चाह कर भी अपने आंसू अपने बेटे के सामने नही निकाल पा रही थी और उसका बेटा घर में पसरे सन्नाटे को समझने का प्रयास कर रहा था।दो दिन तक लगातार सोचने के बाद सीमा ने एक बार फिर लड़ने की ठानी हमेशा दूसरों के भले के लिए लड़ने वाली सीमा इस बार खुद के लिए लड़ने को खड़ी हुई,एक ऐसी लड़ाई जिसमें सब कुछ दाव पर लगा था और ये एक ब्लाइंड गेम था जिसके पत्ते सामने होते हुए भी नही खुले थे।
उसने अपने पति के साथ जाकर डॉक्टर से सलाह ली,और कैंसर का इलाज लेना शुरू किया ,इलाज़ के दौरान कीमों थैरपी के दर्द को बर्दाश्त करना बहुत मुश्किल हो रहा था,सिर से झड़ते बालों का अनुभव बेहद मानसिक दुख देता था।पर अपने आने वाले सुखद काल की आस जिसमें अपने बेटे को बड़ा होते देखना शामिल था,इसे सहन करने की शक्ति दे रहा था।अपनी इसी इक्षाशक्ति के बल पर आज सीमा कैंसर को हरा चुकी है और अपना जीवन सामान्य रूप से जी रही हैं।
अब सीमा अपने हर सेकण्ड को कुछ इस तरह जीती है,जैसी बस इसी पल में जिंदगी है और हर लम्हा उन्हें पूरी ज़िंदगी भर की खुशियों का एहसास दे जाता है। इस बात को आज पूरे दो साल बीत रहे है। सीमा कभी अपने इस कड़वे एहसास को नही भूलना चाहती है क्योंकि इसी कड़वे एहसास ने ही उसे जीवन के हर पल को फिर से जीने की प्रेरणा दी है।गर्व होता है,ऐसी महिला को देखकर जिसने ज़िन्दगी के इम्तिहानों से कभी शिकायतें नहीं की बल्कि हर बार उनसे एक कदम आगे जाकर सफलता की नई इबारत लिखी। इसीलिए तो कहते हैं कि "हुज़ूर ज़िन्दगी से शिकायतें नही बल्कि जो मिला है उसके लिए शुक्रिया करना चाहिए और उन्हीं लम्हों को दिल से जीकर खुशियों को कई गुना बड़ा लेना चाहिए।"

Friday 2 June 2017

जाने कहाँ गए वो दिन ???

जाने कहाँ गए वो दिन ???
‌आखिरी बार कब आपने अपने घर की  या मुहल्ले की गली में बच्चों को गिल्ली डंडा,कंचे, पिट्टू या लंगड़ी जैसे खेल खेलते हुए देखा था,शायद आप भी ये ना बात पाएं क्योंकि आज बच्चों के हांथों में पतंग की डोर और गिररी नही स्मार्ट फ़ोन्स होते है ।आज बच्चे अपने दोस्तों को बुलाने के लिए उनके घर जाकर आवाज़ नही लगाते। वो आज कल के तथाकथित "टेक्नोलॉजी युग के बच्चे " कहलाते हैं और अपने दोस्तों को बुलाने के लिए स्मार्ट फ़ोन्स के ज़रिए व्हाट्सएप्प पर मैसेज करते हैं । अब लूडो, सांप सीडी के खेल भी मोबाइल पर अनजान लोगों के साथ ऑनलाइन खेले जाते हैं।आज  माँ-बाप इस बात को लेकर खुश होते हैं,कि उनका बच्चा प्लेस्टोर से कौन सा  लेटेस्ट वर्ज़न का गेम खुद डाउनलोड कर लेता है और कितनी जल्दी मोबाइल या गैजट्स चलाना सीख रहा है । बल्कि इस बात के उनका बच्चा कितनी जल्दी बोलना या चलना सीख रहा है।कितना हस्ययस्पद लगता है,ये देखकर की माता पिता ये देखने में ज्यादा रुचि लेते हैं कि उनका बच्चा ऑनलाइन गेम में साईकल चलाना सीख गया जो कि वास्तविकता से बहुत दूर है । बचपन की चंचलता न जाने कहाँ गुम होती जा रही है । गर्मी की छुट्टियों में अपने दोस्तों के साथ घण्टों खेलना ,सूरज डूबने के बाद भी लगातार क्रिकेट जारी रखना ,वो छुपन-छुपाई के कोने आज अपने बचपन के साथी के बिना सूने लगते हैं,वो लंगड़ी के चौखाने नन्हे कदमों का इंतज़ार करते हैं,वो पतंग की डोर किन्ही नन्हे हांथों का इंतज़ार कर रही है कोई आये उन्हें थामे और आज फिर पतंग आसमाँ में मस्ती से उड़ सके, पिट्टू की गेंद और उसके पत्थर अपने गिरने और बनने का इंतज़ार कर रहे हैं।राजा,मंत्री,चोर, सिपाही की पर्चियां आज बंद पड़ी है और अपने खुलने  का इंतज़ार कर रही है। ये सब किसी कोने में शायद पड़े हैं और इंतज़ार कर रहे हैं,शायद आज फिर कोई बचपन की कोपल,कोई नन्हे कदम इनकी ओर बड़े और फिर गुलज़ार कर दें उस बगीचे को,जिसका हर एक पेड़ इनके बिना सूखा और बेजान पड़ा है। पर इस सबका जिम्मेदार कौन है ,शायद आज कल के माता पिता ही कहीं न कहीं इसके लिए कुसूरवार हैं ,आज जरूरत है,माता पिता द्वारा एक सकारात्मक कदम बढ़ाने की ,अपने बच्चों को सकारात्मक ऊर्जावान और मासूमियत से भरा बचपन जीने की ओर अग्रसर करने की जिसमें असलियत हो,न कि किसी काल्पनिक दुनिया की कृतिम कृति के धोखे की । यहां मैं ये नही कहता कि बच्चों को टेक्नोलॉजी से दूर रखा जाए ,पर जैसे हर ऋतु का अपना एक समय निश्चित होता है बारिश का असली मज़ा गर्मियों की कड़ी धूप सहने के बाद ही आता है । उसी तरह अपने बच्चों को उस समय गैजेट और स्मार्ट की उपलब्धता करानी चाहिए जब  वो इसकी उपयोगिता की परिभाषा से भलीभांति परिचित हों । समय से पहले तो यदि आम भी पेड़ से तोड़ लिया जाए तो खट्टा लगता है,तो कैसे माता पिता सिर्फ अपने  सामाजिक सरोकार की संतुष्टि के लिए शिक्षित होते हुए भी घोर अज्ञानता का परिचय देते है। समय से पहले बच्चों से उनका निश्छल बचपन न छीने ,उन्हें समय के साथ उड़ने का एक मौका तो दीजिये ,फिर देखिये उनकी असीमित उड़ान को , ठीक उसी तरह जो कभी आपके मां बाप ने आपको दी थी ।और हां कभी अपने बच्चों के साथ खेलिये और समय दीजिये यकीन मानिए आपको भी बहुत अच्छा लगेगा और आप भी अपने बचपन के  दिनों को याद कर पाएंगे।
‌मज़ा आएगा...........

Wednesday 31 May 2017

"आखिर क्यों नहीं???"
                                   

आज 31 मई 2017 को विश्व तम्बाखू निषेध दिवस मनाया गया। जगह जगह कार्यक्रम भी आयोजित हुए होंगे,रैली या मार्च भी शायद आयोजित हुए होंगे । पर क्या वास्तविक रूप में हम इस बात को लेकर गंभीर हैं कि हमारे समाज में तम्बाखू को बाकई पूरी तरह से बंद हो जाना चाहिए?अगर आप इस लेख को पढ़ते समय अपना सिर हाँ में हिला रहे हैं तो क्यों अब तक ये बंद नही हुआ? क्या आप और मैं इतने कमज़ोर हैं कि एक छोटा सा प्रयास नही कर पा रहे,इस गंदगी को अपने आस-पास से खत्म कर सकें । अब आप शायद दूसरों को या सरकार को इसका जिम्मेदार ठहराएंगे। और शायद आप सही भी हो सकते हैं,क्योंकि घर के बाहर अगर सड़क पर अगर कचरा हो तो शायद ये एक बार सरकार और नगर निगम की जिम्मेदारी हो सकती है कि उसे साफ करवाया जाए क्योंकि आप टैक्स देते हैं । पर यदि गन्दगी आपके घर के अंदर हो तो उसे साफ करने की जिम्मेदारी किसकी होगी ,मतलब तम्बाखू उत्पाद जैसे सिगरेट, गुटखा आदि का सेवन करने वाले कोई बाहरी दुनिया के लोग नहीं है, ध्यान से आंखे खोलकर देखिये वो आपके व हमारे घर के ही लोग है ,शायद आपका बेटा, किसी का भाई, पति,पिता,या कोई भी हो सकता है। और अगर ये सच है तो इसका बात का आप विरोध क्यों नही करते क्यों हम मूक दर्शक बनकर इस बात को नज़रअंदाज़ करते रहते हैं । और इस बात को और बढ़ावा देते हैं और इस गलती के लिए सरकार और सिस्टम को कुसूरवार ठहराते रहते हैं ।क्यों कोई माँ अपने बच्चे को तंबाखू पदार्थों का सेवन करने से नही रोकती ,क्यों कोई पत्नी अपने पति को इस बात पर नही टोकती,क्यों कोई पिता अपने  बच्चों के सामने सिगरेट या गुटखा खाने से परहेज़ नहीं करता।
सोचने की जरूरत है, और बस एक सकारात्मक कदम  बढ़ाने की जरुरत है ।आपका एक छोटा सा प्रयास आपके घर के सदस्यों का जीवन काल भी बढ़ाएगा और समाज से इस गंदी आदत को शायद जड़मूल से खत्म कर दे।
"तो क्या शुरुआत आज से न की जाए-जरुर करें"
                                "संयोग डायरी" 

Thursday 2 February 2017

बजट श्रीमतीजी का ......................


 बजट श्रीमतीजी का....................

आज बजट पेश होने वाला था,हमारी श्रीमती जी ने चेह्कते हुए बोला कि आज बजट पेश होने वाला है तो क्यों न हम दोनों साथ में बैठकर देखेंहमने कहा हमें क्या ख़ास मिलेगा? तो उन्होंने बड़ी ही चतुरता से कहा,कि बजट की घोषणाओं में जो भी राहत मिलेगी तो फ़ायदा आपको भी मिलेगा और अगर किसी चीज़ की कीमतें कम ज्यादा हुई तो हमारी तरफ से भी आपको फ़ायदा मिलेगा तो हम भी उनकी रस भरी बातों में आकर वहां उनके साथ टीवी के सामने बैठ गए।
ज्यों ही सरकार ने बजट पेश किया,वैसे ही श्रीमती जी ने घर में अपना बजट पेश कर दिया,जैसे जैसे वित्तमंत्री घोषणाएं करते जा रहे थे,श्रीमती जी की भी घोषणाएं होने लगी,बजट में सौन्दर्य उत्पादों को महंगा किया गया तो श्रीमती जी ने पहला अध्यादेश पारित कर दिया कि घर में सजने सवरने की चीज़ें कम की जाएँ इन पर भी खर्च कम किया जायेगा,हमें ये सुनकर बेहद्द ख़ुशी हुई आशा की एक किरण दिखाई दी कि शायद ये बजट  हमारे लिए ख़ुशी लेकर आयेगा,पर ज्यादा देर ये ख़ुशी रह नहीं पाई क्योंकि सबसे पहले श्रीमती जी ने हमारी ही ऐसी-तैसी कर दी।  आदेश आया की अब से शेव करने के लिए शेविंग क्रीम का उपयोग नहीं किया जायेगा,सिर्फ पानी का उपयोग कर शेव किया जाये,क्योंकि पुरषों की स्किन को क्रीम की ज़रूरत कम होती है तो उपयोग भी कम ही होना चाहिए इसीलिए अलग से पुरषों वाली क्रीम और बॉडी लोशन पर खर्च बंद किया,इन सब पर पहला और सिर्फ अधिकार हम महिलाओं  का हैये सब सुनकर हमने कहा अब बस भी कीजिये आगे का बजट भाषण भी तो देखने दीजिये
          सरकार के वित्त मंत्री ने आगे का बजट पड़ना शुरू किया अगली बेहद अच्छी घोषणा थी कि जिसे सुनकर हम बहुत खुश हुए , घोषणा थी की अब टैक्स देने की वार्षिक आय की सीमा बड़ा दी गयी है और टैक्स की दरों में भी कमी आ गयी है तो फिर क्या था,श्रीमती जी ने फटाफट कैलकुलेटर चलाया और नए रियायती दरों के अनुसार हमारी सैलरी पर लगने वाला टैक्स कैलकुलेट कर दिया और एक कुशल चार्टेड अकाउंटेंट की तरह हमें इस बात से अवगत कराया की अब से हमारी टैक्स बचत लगभग 5000 से 7000 रूपये तक की होगी हमें ये देखकर ख़ुशी हुई की हमारी श्रीमतीजी को हमारा कितना ख़याल है पर ये हमारी भूल थी अभी एटम बम गिरना बाकी था,जो अब हमारे ऊपर गिरा और श्रीमती जी जो की हमारे घर की गृह मंत्री/वित्तमंत्री थी की ओर से नया अध्यादेश लागू करने की घोषणा की गयी जो सिर्फ हम पर लागू होना था जिसमें साफ़ समझाया कम धमकाया गया की इन बचत के पैसों की ओर मेरी गलती से भी नज़र न जाये ,ये पैसा उनके मायके फण्ड में जायेगा क्योंकि हमारे ससुराल में किसी दूर के रिश्तेदार के यहाँ शादी है तो हमारी श्रीमतीजी जी को बनारसी साड़ी पहननी है और नेकलेस भी चाहिए ताकि शादी में वो सभी को दिखाकर जला सकें ,हमें तो बस एक ही आशा की किरण दिखाई दी थी,की शायद बजट की इस रियायत भरी घोषणा के साथ हमें हमारे गृह मंत्री से कुछ राहत मिलेगी पर उन्होंने सारी आशाओं पर पानी फेर दियाइतना सब होने के बाद हमसे आगे का बजट नहीं सुना जायेगा,दिल में घबराहट होने लगी की अगर पहली दो घोषणाएं इतना भूचाल ला सकती है,तो पता नहीं आगे की घोषणाएं क्या रंग दिखाएंगी।
ज्यों ही हम रणभूमि छोड़ कर जाने लगे तो श्रीमती जी ने चेतावनी के रूप में पुछा कहाँ जा रहे हैं आप ?अभी तो बजट भाषण बाकि है तो हमनें कहा की थोड़ी देर में आते है तो उन्होंने कहा आगे  पेट्रोल की कीमतों का एलान होने वाला है देंखें इस बार कीमतें बढती हैं या घटती है,खैर फ़र्क तो कुछ नहीं पड़ेगा लोग गाड़ी चलाना तो छोड़ेंगे नहीं,वैसे आप को भी अपनी सेहत का ध्यान रखना चाहिए हम कुछ आश्चर्य चकित हुए की अचानक ये ह्रदय परिवर्तन कैसा,पर ये हमारी भूल थी जो कुछ उतावला होकर हम ये समझ बैठे आगे उन्होंने कहा की गाड़ी का उपयोग कम कीजिये और कल से सब्जी लेने आप पैदल ही जायेंगे ये आखिरी वार था जो हमारे गृहमंत्री ने हम पर किया था और बजट में मिलने वाली सारी रहत को अपने अध्यादेशों के भोझ टेल दबा कर कुचल दिया था
वाह रे बजट!!!

Tuesday 31 January 2017

“अनरय-समाज के काएदे”

अनरय-समाज के काएदे
होली का त्यौहार नज़दीक था,सभी जगह होली की तैयारियां ज़ोरों पर थी,6 साल का विशु अपने घर पर बहुत उत्साह के साथ होली की तैयारियों में जुटा था,क्योंकि उसकी परीक्षा भी पूरी हो चुके थे,वो अपनी माँ के पास गया जो की इस समय रसोई में होली के त्यौहार पर आने वाले मेहमानों के लिए पकवान बना रही थी,उनके पास जाकर अपने लिए नयी पिचकारी और रंगों की फरमाइश करने लगा पर माँ ने ये कहकर उसका जोश ठंडा कर दिया की इस साल वो होली नहीं खेल सकता,इस साल की होली “अनरय” की होली है,क्योंकि कहीं किसी दूर की रिश्तेदारी में किन्ही बुजुर्ग का जिन्हें उन्होंने कभी देखा भी नहीं था 10 महीने पहले स्वर्गवास हो गया था,जब विशु नहीं समझा तो उन्होंने कहा की लोग क्या कहेंगे और समाज के नियम के अनुसार ये दुःख की होली है तो हम नहीं मना सकते,ये सुनकर उदास विशु ने अपने निश्छल मन से अपनी माँ की ओर  देखकर पुछा कि यदि ये दुःख की होली है तो आप रसोई में ये पकवान क्यों बना रही है?अपने बेटे के मुंह से ऐसा सवाल सुनकर वो भी निरुत्तर हो गयी ...........

Saturday 28 January 2017

SECOND INNING HOMEहम है तो क्या गम है ................
उम्र के एक पड़ाव पर जब बुढ़ापा दस्तक देता है,तो शरीर की ताक़त के साथ-साथ,कुछ रिश्ते जैसे कभी-कभी अपनी संतान भी जिनके लिए उम्र भर सोचा,जिनके लिए सारा जीवन जिया और हर काम किया वो भी दूर होने लगते है,कभी हमारे हर दिन की शुरुवात जिनसे और अंत भी जिनके लिए हुआ करता था जिनके लिए हमने समय दिया उनके पास आज हमारे लिए ही समय नहीं बचता और वो हमें ज़िन्दगी में “चुका हुआ” जानकर किसी कोने में छोड़कर आगे बढने लगते हैं
ऐसे में दो रास्ते बचते हैं या “तो मनमार कर और दुखी होकर बाकी की ज़िन्दगी रो-रोकर बिताये” या दूसरा रास्ता “अपनी हिम्मत को बटोर कर दुबारा खड़े हो और ऊपर वाले की दी हुई इस खूबसूरत नेमत “ज़िन्दगी” के बचे हुए पलों को बड़ी खूबसूरती के साथ जियें और जो अरमान और सपने अपने बच्चों की जरूरतों को पूरा करने में आप नहीं जी पाए उन सभी को जी भर कर जियें और पूरा करें”
इस बात की जीती जागती मिसाल हमें मिली “आनंदाश्रम वृद्धाश्रम” में हमारे द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम “एक दिन दादा-दादी के साथ” में मिली हालाँकि इसे “वृद्धाश्रम” कहना मुझे सही नहीं लगता इसका नाम “सेकंड इनिंग हाउस” होना चाहिए क्योंकि यहाँ के सभी सदस्य भले ही अपनी उम्र से बुजुर्ग हो लेकिन अपनी सोच और ऊर्जा से किसी भी युवा से कम नहीं हैइसका जीवंत उदाहरण यहाँ की एक महिला सदस्य है,जिनका आधा चेहरा लकवे से पीड़ित है,उसके बाद भी हमारे साथ बेहद्द ख़ुशी और जोश के साथ भजन गा रही थी यहाँ सभी सदस्य एक दुसरे के साथ एक परिवार की तरह रहते हैं अगर कभी कोई एक गिरता हैं तो उसे सँभालने के लिए दूसरा खड़ा हो जाता है,ये वही सहारा है जो कभी इन लोगों ने अपने परिवार और बच्चों से चाहा था और उन्हें नहीं मिला पर अब ये लोग इन सब बातों से कहीं आगे निकल चुके हैं,और कमर कस कर जोश के साथ तैयार है अपनी जीवन की “सेकंड इनिंग” को जीने के लिए जिसमे अब ये आज़ाद है,अपनी इक्षाओं को पूरा करने के लिए,आज़ाद है फिर अपने सपनों के कैनवास पर नए रंग भरने के लिए

“प्रभव वेलफेयर सोसाइटी” का हर सदस्य यही प्रार्थना करता है,“ आनंदाश्रम” का हर सदस्य अपने घर वापस लौट जाये लेकिन सिर्फ तभी जब उनके अपने बच्चे उन्हें आदर और सम्मान के साथ अपने साथ रखें हम सभी ने कभी ईश्वर को नहीं देखा सभी लोग उसे ढूंढने जाते है देवालयों में जाते हैं,पर ये भूल जाते हैं की ऊपर वाले ने हमें हमारे माता पिता के रूप में साक्षात् ईश्वर हमारे घर में दिए है,ये बहुत अमूल्य संपत्ति हैं इन्हें बड़े सम्मान और प्यार से सहेज कर रखिये ये दोबारा नहीं मिलने वाले

Friday 27 January 2017

सपनों का आसमान.............

सपनों का आसमान..........
तारीख़ 14 जुलाई 2016 दिन गुरुवार समय सुबह के कुछ 8:00 बज रहे थे,हम सभी लोग निश्चित समय पर तय जगह पर पहुँच गए,मौका था “प्रभव वेलफेयर सोसाइटी सागर” के एक और कार्यक्रम का जिसका नाम हमने “नन्हे कलाकार” रखा था,घड़ी की सुई की टिक-टिक की आवाज़ के साथ हम सभी सदस्यों के हाँथ भी तेजी से चल रहे थे तैयारियों को अंतिम रूप देने के लिए,और थोडा डर भी लग रहा था कि ये नन्हे बच्चे प्रतियोगिता के शीर्षक को समझ पाएंगे की नहीं,और कुछ बना भी पायेंगें की नहीं, इन आशंकाओं के बीच ठीक 8 बजकर 10 मिनिट पर सभी बच्चे “सरस्वती शिशु मंदिर पथरिया जाट” गाँव में स्कूल के कमरे में इकट्ठा होना शुरू गए, वो सभी इस आयोजन को लेकर बहुत उत्साहित दिख रहे थे,नन्ही आँखें आत्मविश्वास से भरी हुई थी,जिन्हें देखकर हम सभी को थोडा सुकून आयानियत समय 8 बजकर 15 मिनिट पर कार्यक्रम शुरू हुआ जिसमें हमने उन्हें कलर बॉक्स और ड्राइंग शीट दी और तुरंत ही उन लोगों ने अपने सपनों के कैनवास पर जो भी आकृतियाँ बनायीं थी,उन्हें वहां रंगों से साकार करना शुरू कर दिया चूँकि कार्यक्रम का उद्देश्य इन नन्हे बच्चों को प्रकृति के करीब लाना था इसीलिए इन सभी को “जीवन में पेड़ों का महत्व” पर अपनी रचना बनाने को कहा गया था.

जैसे जैसे समय आगे बढता गया वैसे वैसे हमारी सारी आशंकाएं छु मंतर हो गयी हर नन्हें बच्चे ने इतनी सफाई और दिल से अपनी रचना के आकर को साकार किया कि सही मायने में उन्हें “नन्हे बच्चे” कहना गलत लग रह था वो सच में “नन्हे कलाकार” लग रहे थे सभी ने अपनी अपनी रचनाओं से “जीवन में प्रकृति का महत्व” बताया अंत में जब फैसले की घड़ी आई तो हम सब उन सभी की रचनाओं को देखकर हतप्रभ रह गए,क्योंकि सब एक से बढकर एक थी,कोई किसी से कम नहीं था फिर भी हमें पुरुस्कार तो कुछ ही रचनाओ को देना था सो बेहद मुश्किल से फैसला ले पाए फिर भी सभी “नन्हे कलाकारों” को हमने प्रोत्साहन के तौर पर कुछ उपहार भी दिए ये पल अपने आप में कुछ अलग ही अनुभव दे रहे थे जब हम सभी वहां से बिदा ले रहे थे तो मन में एक अलग ही उत्साह था आज की सुबह ये “नन्हे कलाकार” हम सभी के लिए एक प्रेरणा दूत बन कर आये जिन्होंने सिर्फ एक घंटे के छोटे से समय अंतराल में हमें बहुत कुछ सिखा दिया था. इन पलों को हम सभी ने अपने अपने कैमरों से तस्वीर के रूप में सहेज कर हमेशा के लिए अपने पास रख लिया