Sunday 25 February 2018

"अमरूद का मौसम"

     
"अमरूद का मौसम"
अमरूद का फल किसे पसंद नही ?अगर ये सवाल किसी से भी पूंछो तो शायद ही कोई हो जो न कहे।कहने को तो अमरूद सिर्फ एक फल है । जो नाम के साथ-साथ स्वाद में भी लाजवाब है,पर शायद कभी-कभी एक अमरूद किसी के जीवनभर का बहुत बड़ा पल दे जाता है।ऐसी ही एक घटना याद आती है,जो दो लड़कियों के बीच घटी "ऋतु और शिवानी",दोनों ही शक्षम मध्यम वर्गीय परिवार से थी उम्र में कोई खास अंतर नही था दोनों अच्छी दोस्त थी और साथ ही पड़ोसी भी जो सोने पर सुहागा था।साल के सारे मौसम एक दूसरे ये एक दूसरे की पक्की सहेली थी,सिवाय एक मौसम के,वो था अमरूद का मौसम।बात कुछ यूं थी कि इन दोनों के घर के बीच अमरूद का पेड़ था,जिसपर मौसम आने पर खूब अमरूद आते थे ,इस पेड़ की जड़ शिवानी के घर में थी सो शिवानी खुद को इस पेड़ की मालकिन समझती थी और पूरी गुंडागर्दी के साथ अमरूद के एक-एक फल को अपना मानती थी।ऋतु के घर कोई कमी नही थी,घर में कई बार तो बाजार से टोकनी भरकर अमरूद आते थे,पर कहते है न मन पर किसका ज़ोर है वह कितने भी अच्छे अमरूद खा ले पर जब तक वह शिवानी के घर के पेड़ का अमरूद चख न ले उसे मज़ा नही आता था।बस यही बात इन दोनों के बीच अमरूद के मौसम में दोस्ती पर बर्फ जमा देती थी।कई बार तो नोबत लड़ाई और बोलचाल बंद होने तक पहुँच जाती।परिवार के बड़े समझाते पर ये दोनों न मानती।शिवानी पेड़ के एक एक अमरूद की गिनती रखती और ऋतु भी अपने घर की ओर आने वाली शाखा के अमरूद खाने के लिए कई बार छुपकर इंतज़ार करती,कि कब शिवानी की नज़रों से बचकर वह एक अमरूद खा ले।यह जीत उसके लिए किसी वर्ल्डकप से कम न थी।
ऐसी ही एक दोपहर वह छुपकर छत पर गई उसे पता चला कि शिवानी एक दिन के लिए किसी शादी में गई है, तो खुश होकर उस अमरूद को तोड़ने गई जो छत की सीढ़ियों से लगी डगार पर पक चुका था।शाखा थोड़ी ऊंची थी ऋतु ने काफी कोशिश की पर वो पहुंच नही पा रही थी।वह आपने कदम उछाल उछाल कर उस तक पहुचने की कोशिश कर रही थी। कि अचानक उसका पैर सीढ़ियों से फिसल गया और उसके पैर में मोच आ गई और दर्द से कराह रही थी। कुछ देर के बाद वो पलंग पर थी और आंखों में आंसू लिए रो रही थी। शाम को जब शिवानी घर लौटी तो उसे उसकी माँ से पता चला कि ऋतु का पैर मोच गया है और वह चल भी नही पा रही है। शिवानी को बहुत दुख हुआ वह तुरंत वही अमरूद अपने घर से तोड़कर हाथ में लिये ऋतु के घर गयी और सीधे उसके कमरे में पहुँची जहां ऋतु अभी भी दर्द के मारे उदास लेटी अपने पैर की पट्टी को देख रही थी।तभी शिवानी को देख चौक गई। शिवानी ने आगे बढ़कर अमरूद ऋतु के हांथों में रख दिया और बिना कुछ कहे ही दोनों एक दुसरे की सारे बातें समझ चुकी थीं। कहा तो सिर्फ इतना कि "यह लो तुम्हारे पेड़ का अमरूद"।
कई सालों से जो बर्फ इनकी दोस्ती पर अमरूद के मौसम में जम जाती थी,वह इस साल हमेशा के लिए पिघल चुकी थी,और दोनों सहेलियां अब हसीं मज़ाक़ कर रही थी।
समय बीता साल भी बीता अगले साल फिर "अमरूद का मौसम"आया अमरूद लगे,पर इस साल न शिवानी एक एक अमरूद गिन रही थी,न ऋतु छिपकर अमरूद तोड़ रही थी।क्योंकि अब वो पेड़ और उसके अमरूद दोनों के थे।

Wednesday 14 February 2018

क्या ये खता है मेरी.....

क्या ये खता है मेरी.....

क्या ये खता है मेरी.....
कि नियत मेरी सच्ची है,खुदा पर भरोसा रखता हूँ
क्या ये खता है मेरी.....
कि हर मुकाम को मेहनत और खुदा की रहमत से पाना चाहता हूँ
क्या ये खता है मेरी.....
कि देखे हैं कुछ छोटे छोटे सपने,
और रखता हूँ उन्हें पूरा करने की चाहत
क्या ये खता है मेरी.....
कि काम को सिर्फ काम नही
जुनून मानकर पूरा करता हूँ मैं
क्या ये खता है मेरी.....
कि ना जाने क्यों हर बात में
नफा नुकसान का हिसाब लगाते है लोग
ना हो रहा हो खुद का नफा या
न कर पा रहे हों किसी का नुकसान
तो अच्छे काम के लिए आगे भी नही आते है लोग
क्या ये खता है मेरी.....
बनाते है लोग नेक काम न करने के बहाने
छिपाते हैं कई लोग अपनी नाकाबिलियत और कमियां
करके बहाने कि बहुत व्यस्त हैं,मिलता नही हमें वक़्त है
पर मैंने ठाना है,साथ दे या न दे कोई मेरा,
गर रहमत है खुदा की मुझ पर
तो कर लूंगा हर मुश्किल को पार
मुझे पाना है हर मंज़िल हर मुकाम हर बार
ना थकूंगा न रुकूंगा न मानूंगा हार
अगर है इरादा ये मेरा
तो क्या ये खता है मेरी.....