Friday 29 May 2020

“सुंदरकाण्ड-एक पथप्रदर्शक रस सरिता” ***रस प्रवाह क्र॰-9***

सुंदरकाण्ड-एक पथप्रदर्शक रस सरिता


 ***रस प्रवाह क्र॰-9***
प्रसंग: हनुमानजी द्वारा सीता जी से वटिका के फल खाने की आज्ञा मांगना-

सुनहु मातु मोहि अतिसय भूखा। लागि देखि सुंदर फल रूखा॥

भावार्थ:- हे माता! सुनो, सुंदर फल वाले वृक्षों को देखकर मुझे बड़ी ही भूख लग आई है।

सीताजी से मिलने और भगवान राम के संदेश सुनाने के बाद,श्री हनुमान सीताजी से अनुमति लेते हैं,की उन्हे भूंख लगी है और मन में वाटिका के फल खाने की इच्छा है और फिर अशोक वाटिका में भोजन करने के लिए आगे बढ़ते हैं।

सीख:-

हनुमान जी द्वारा फलों का खाना आमतौर पर एक वानर का निर्मल स्वभाव और क्रत्य लगे,लेकिन यह हमें हमारे दैनिक क्रियाकलापों में एक महत्वपूर्ण कार्य को सदा याद रखने की ओर इशारा करती है।जब आप बहुत व्यस्त होते हैं या आगे कुछ चुनौतीपूर्ण काम और भी करने जा रहे हैं,तब भी जैसे आप अपने दैनिक कामों के लिए समय निकालते हैं,वैसे ही भोजन के लिए भी समय निकालना चाहिए।ये भोजन ही है,जो समय पर लेना एक स्वस्थ शरीर के लिए बहुत ज़रूरी हैं और अन्य कार्यों को प्राथमिकता देने में कभी भी भोजन की अनदेखी नहीं की जानी चाहिए।

NOTE:

 *यहाँ लिखा गया हर एक शब्द सिर्फ एक सूक्ष्म वर्णन है “सुंदरकाण्ड” का सम्पूर्ण नही,यह एक कोशिश है,उस अनुभव को सांझा करने की जो “सुंदरकाण्ड” से मैंने महसूस करे।अगर कुछ त्रुटि हो गयी हो तो कृपया कमेंट बॉक्स के माध्यम से जरूर बताए।मैं फिर यह कहना चाहता हूँ,यह धर्म या संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए नहीं है,लेकिन यहां सांझा किया गए “सुंदरकाण्ड” के सबक और उनकी शिक्षा सभी मनुष्यों के लिए उपयोगी हो सकते हैं,चाहे वह किसी भी धर्मजाति या धर्म के हों।

Saturday 16 May 2020

“सुंदरकाण्ड-एक पथप्रदर्शक रस सरिता”***रस प्रवाह क्र॰-8***


सुंदरकाण्ड-एक पथप्रदर्शक रस सरिता



 ***रस प्रवाह क्र॰-8***
प्रसंग: हनुमान जी का माता सीता को अगूण्ठी देना और श्रीराम का गुणगान सुनाना-

रामचंद्र गुन बरनैं लागा। सुनतहिं सीता कर दुख भागा ॥
 लागीं सुनैं श्रवन मन लाई। आदिहु तें सब कथा सुनाई॥3॥

भावार्थ:-वे श्री रामचंद्रजी के गुणों का वर्णन करने लगे, (जिनके) सुनते ही सीताजी का दुःख भाग गया। वे कान और मन लगाकर उन्हें सुनने लगीं। हनुमान्‌जी ने आदि से लेकर अब तक की सारी कथा कह सुनाई॥3॥

जब श्री हनुमान अशोकवाटिका पहुँचते हैं,और सीता जी को देखते हैं। वह एक पेड़ पर छिपकर बैठ जाते है,और विचार करते हैं की माता सीता से कैसे मिला जाए है,फिर भगवान राम की स्तुति करते है और सीता जी के सामने भगवान राम की अंगूठी गिरा देते है। हनुमान जी द्वारा माता सीता से मिलने के लिए अपनाए गए इस रास्ते पर कई प्रश्न उठ सकते हैं,की वे सर्वशक्तिमान थे,सीधे भी तो माता सीता से मिल सकते थे,फिर यह परोक्ष रूप से क्यों किया। पर चीजों और समस्याओं को सदा एक ही या अपने ही द्रष्टिकोण से नही देखना चाहिए,जब कोई व्यक्ति समस्या में हो,तो किसी भी कार्रवाई को करने के लिए और निष्कर्ष निकालने पर न जाएं। दूसरे व्यक्ति के दृष्टिकोण से भी सोचना चाहिए। सीता जी राक्षसों के बीच इतने लंबे समय तक रह रही थी,अगर श्री हनुमान अचानक सीता जी के सामने प्रकट हो जाते,तो वे शायद उन्हें भी उनमें से एक मानते या भयभीत हो सकती थी और नतीजतन उनकी बात भी ना सुनती शायद।इसीलिए पहले उन्होंने भगवान राम की स्तुति गाकर और शान्ति का वातावरण बनाया। प्रमाण के रूप में भगवान की अंगूठी देकर उनका विश्वास हासिल किया।

सीख- परिस्थितियों का अध्ययन अपने ही नही बल्कि दूसरों के द्रष्टिकोण से भी करना चाहिए और उसके बाद ही किसी कार्यवाही या निष्कर्ष पर आगे बड़ना चाहिए।

NOTE:

  v  यहाँ लिखा गया हर एक शब्द सिर्फ एक सूक्ष्म वर्णन है “सुंदरकाण्ड” का सम्पूर्ण नही,यह एक कोशिश है,उस अनुभव को सांझा करने की जो “सुंदरकाण्ड” से मैंने महसूस करे।अगर कुछ त्रुटि हो गयी हो तो कृपया कमेंट बॉक्स के माध्यम से जरूर बताए।मैं फिर यह कहना चाहता हूँ,यह धर्म या संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए नहीं है,लेकिन यहां सांझा किया गए “सुंदरकाण्ड” के सबक और उनकी शिक्षा सभी मनुष्यों के लिए उपयोगी हो सकते हैं,चाहे वह किसी भी धर्मजाति या धर्म के हों।



Thursday 14 May 2020

“सुंदरकाण्ड-एक पथप्रदर्शक रस सरिता” ***रस प्रवाह क्र॰-7***

सुंदरकाण्ड-एक पथप्रदर्शक रस सरिता

 ***रस प्रवाह क्र॰-7***
प्रसंग: विभीषण का हनुमान जी से अपनी मनः स्थिति बताना-

सुनहु पवनसुत रहनि हमारी। जिमि दसनन्हि महुँ जीभ बिचारी ॥

तात कबहुँ मोहि जानि अनाथा। करिहहिं कृपा भानुकुल नाथा॥1॥

भावार्थ : (विभीषणजी ने कहा-) हे पवनपुत्र! मेरी रहनी सुनो। मैं यहाँ वैसे ही रहता हूँ जैसे दाँतों के बीच में बेचारी जीभ। हे तात! मुझे अनाथ जानकर सूर्यकुल के नाथ श्री रामचंद्रजी क्या कभी मुझ पर कृपा करेंगे?॥1॥

विभीषण बताते हैं,कि वह भगवान राम से प्रेम करते हैं,और उनका अनुशरण करते हैं,भले ही वह राक्षसों के बीच रहते हैं।जैसे एक जीभ नरम और कोमल होती है,हालांकि वह कठोर और मजबूत दांतों से घिरी होती हैवैसे ही वह राक्षसों के बीच रहते हुए भी प्रभु का प्यार और पालन कर रहे है।विभीषण द्वारा कही गयी ये बाते भले ही साधारण और उपमाओं से भरी लगे,लेकिन आम जन समुदाय के जीवन में बहुत अर्थ रखती है,ये हमें सभी समस्याआओं से घिरे रहते हुये भी निर्मल भाव से सद्मार्ग का पालन करने के में मदद करती है।                
और हमें तीन चीज़ें सिखाती है-
v यह आपके कर्म है,जो आपके व्यक्तित्व का निर्माण करते हैं,जो आप हैं,ना की आपकी संगति।
v आपकी संगति आपके व्यक्तित्व पर सिर्फ तभी असर डाल सकती है, जब आप ऐसा होने देते हैं।
v कोई भी आपको गुमराह नहीं कर सकता या आपको गलत रास्ते पर नहीं ले जा सकता जब तक कि आप उन्हें ऐसा करने देने की अनुमति नहीं देते हैं।

   NOTE:
  v  यहाँ लिखा गया हर एक शब्द सिर्फ एक सूक्ष्म वर्णन है “सुंदरकाण्ड” का सम्पूर्ण नही,यह एक कोशिश है,उस अनुभव को सांझा करने की जो “सुंदरकाण्ड” से मैंने महसूस करे।अगर कुछ त्रुटि हो गयी हो तो कृपया कमेंट बॉक्स के माध्यम से जरूर बताए।मैं फिर यह कहना चाहता हूँ,यह धर्म या संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए नहीं है,लेकिन यहां सांझा किया गए “सुंदरकाण्ड” के सबक और उनकी शिक्षा सभी मनुष्यों के लिए उपयोगी हो सकते हैं,चाहे वह किसी भी धर्मजाति या धर्म के हों।

Thursday 7 May 2020

“सुंदरकाण्ड-एक पथप्रदर्शक रस सरिता”***रस प्रवाह क्र॰-6***

सुंदरकाण्ड-एक पथप्रदर्शक रस सरिता



***रस प्रवाह क्र॰-6***
प्रसंग: हनुमानजी का विभीषण से मिलना-

रामायुध अंकित गृह सोभा बरनि न जाइ ।

 नव तुलसिका बृंद तहँ देखि हरष कपिराई॥5॥

भावार्थ : वह महल श्री रामजी के आयुध (धनुष-बाण) के चिह्नों से अंकित था, उसकी शोभा वर्णन नहीं की जा सकती। वहाँ नवीन-नवीन तुलसी के वृक्ष-समूहों को देखकर कपिराज श्री हनुमान्‌जी हर्षित हुए॥5॥

जब लंका में हनुमान जी ने प्रवेश किया और सीता माता की खोज में इधर-उधर भटक रहे थे,तब श्री हनुमान ने एक महल में तुलसी का पवित्र पौधा और श्रीराम के धनुष और बाण के चिन्ह वाला एक छोटा सा मंदिर देखा। इस प्रकार वह विभीषण के घर पहुंचते है,जो बाद में श्री हनुमान की मदद करते है।

सीख: इस पूरे प्रसंग से हमें दो बातें यहाँ सीखने को मिलती है-

v  पहली यह की जब भी किसी कार्य को करने के लिए किसी स्थान पर जाएँ,तब हर एक छोटी से छोटी बात पर ध्यान जरूर दें,क्योंकि क्या पता कौन सी छोटी सी चीज में हमें मंज़िल का रास्ता बता दे।

v  दूसरी बात यह है की जब हनुमान जी विभीषण से पहली बार मिलने लगे,तब सीधे-सीधे नही मिले,पहले ब्राह्मण रूप लिया और जब हर तरीके से भरोसा हो गया,की यह व्यक्ति उपयुक्त है,तभी अपना असली परिचय दिया।कहने का अर्थ है कि कार्य के निष्पादन के दौरान आँख बंद कर भरोसा न करे,हर एक चीज को तर्क की कसौटी पर कसें। अर्थात हमेशा तार्किक द्रष्टिकोण अपनाएं।
       NOTE:
  v  यहाँ लिखा गया हर एक शब्द सिर्फ एक सूक्ष्म वर्णन है “सुंदरकाण्ड” का सम्पूर्ण नही,यह एक कोशिश है,उस अनुभव को सांझा करने की जो “सुंदरकाण्ड” से मैंने महसूस करे।अगर कुछ त्रुटि हो गयी हो तो कृपया कमेंट बॉक्स के माध्यम से जरूर बताए।मैं फिर यह कहना चाहता हूँ,यह धर्म या संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए नहीं है,लेकिन यहां सांझा किया गए “सुंदरकाण्ड” के सबक और उनकी शिक्षा सभी मनुष्यों के लिए उपयोगी हो सकते हैं,चाहे वह किसी भी धर्मजाति या धर्म के हों।

Monday 4 May 2020

“मानसिक उपवास”-आपके अपने मन के लिए


मानसिक उपवास”-आपके अपने मन के लिए



कहते हैं एक स्वस्थ शरीर को बनाने में आहार का बहुत बड़ा योगदान होता है,और उसके साथ-साथ यह भी कहा गया है,की हमें इस body mechanism को सही चलाने के लिए,कभी-कभी आराम भी देना चाहिए,इसीलिए कई experts सलाह देते है,कि कम से कम 15 दिन में एक बार हर किसी को अपने पेट और पाचंतन्त्र को आराम देना चाहिए,मतलब एक बार उपवास जरूर रखना चाहिए। ठीक उसी तरह जैसे किसी engine को लगातार काम में लेने से वह गरम होकर खराब भी हो सकता है,इसीलिए कभी-कभी उसे थोड़ी देर के लिए बंद भी कर देना चाहिए। दुनिया में हर सिस्टम कुछ time का shutdown period चाहता है। ये बातें कोई नयी नही है,जो आज यहाँ मैं  लिख रहा हूँ,पर इस lockdown period ने मुझे एक बहुत ही important system को भी shutdown period की कितनी जरूरत होती है,इसके बारे में एहसास कराया। एहसास इसीलिए कह रहा हूँ,क्योंकि शायद मैं  खुद भी उस system पर ज्यातती करते हुये,super extra-efficiency से काम निकलवा रहा हूँ,न एक पल का आराम,ना कोई अल्पविराम,मेरा वो system भी अब गरम हो रहा है, और कभी-कभी malfunctioning करने लगता है। और इस सब उठा पटक ने मुझे उस system को आराम देने की तरफ ध्यान दिलाया। लेकिन आराम दूँ कैसे ? क्योंकि अगर उसने काम करना बंद कर दिया,तो मैं कैसे चलूँगा,क्या बोलूँगा,क्या समझूँगा,क्या जानूँगा ? यह सब सवाल भी साथ खड़े हो गए। इसके आगे की मैं कुछ और कहूँ,बता तो दूँ,वो ऐसा कौन-सा सिस्टम है ? जिसके बिना मैं,मैं ही क्यों हर कोई,चाहे आप हो या आपका दोस्त या आपका दुश्मन ही क्यों न हो,काम नही कर सकते। वो important system है,हमारा “मन”,यही है वो जो हर signal का generating unit है,आज मेरा मन ये खाने का हो रहा है, आज ये गाना गाने का मन है,सुनने का मन है, कहीं जाने का मन है, मिलने का मन है, देखने का मन है,करने का मन है,सब कुछ जो हम करते है,या करना चाहते हैं,वो मन” के signal पर ही तो depend करते है। दरअसल body या शरीर कैसा respond करेगा वो हमारे मन के positive और negative signal पर ही depend करता है,जैसे किसी काम,जगह या व्यक्ति को लेकर मन ने positive signal दिया तो इसका मतलब हम कहते है,खुश होकर की ये करने का मन है या ये मेरे मन का काम है,और इसका उलट यदि मन ने negative सिग्नल दिया,तो हमारा sentence change हो जाता है;ये करने का मन नही है या ये मेरे मन का काम नही है। ये सब calculation करने के बाद लगा की मन” को यदि shutdown mode में नही ले जा सकते,तो आराम कैसे दिया जाए। तभी खयाल आया जैसे digestion system को आराम देने के लिए उपवास रखते हैं,वैसे ही क्यों न मन को मानसिक उपवास पर रखा जाए कुछ समय के लिए, इस मानसिक उपवास के दौरान मन में कोई विचार नही लाये,कोई process न होने दें complete zero रखे।ये complete zero एक शांति की तरह है,जो खुद को खुद से मिलने और समझने का मौका देता है,जब कोई और विचार मन में न लाएँ तो एक बार आपने अंदर झांक कर देंखे। इसके लिए कोई दरवाजा खोलने की जरूरत नही है,बस जरा से  self analysis की जरूरत है।और यह मौका हमें तभी मिलता है,जब कोई और काम न चल रहा हो,“मन में कोई और विचार न आ रहे हो,किसी और का कोई काम न हो उस समय। मानसिक उपवास सिर्फ आप और आपके मनके बीच चल रही बातचीत का दौर है। जिसमें कोई विचार नही है,विचार शून्य है मन, यही वो समय है,जब आप अपनी हर बात को अच्छे से गहराई से समझ सकते है,न ही की profit का जिक्र होगा,न ही किसी loss का,हर बात सिर्फ आपकी ही होगी। यही वो समय होता है,जब आप खुद अपने मन के अंदर झांक कर उसकी maintenance process को complete करना शुरू करते है,कुछ बुरे विचार का कचरा हटाया जाता है,कुछ बुरी यादें मिटाई जाती है,कुछ जगह नए और अच्छे विचारों के लिए बनाई जाती है,कुछ सफाई की जाती है,तो कुछ parts की बदली की जाती है,सभी parts को चका-चक करके मन को तैयार किया जाता है ताकि फिर लगातार चलने वाले सफर पर काम पर लग सके। लेकिन इस बार जब मानसिक उपवास के बाद मनकाम पर लगेग,तब उसकी चाल पिछली बार से ज्यादा smooth होगी और ज्यादा खुशी और मजेदार तरीके से काम को पूरा करेगा। क्योंकि इस बार आपने मानसिक उपवास के दौरान उसका maintenance जो कर दिया है, पर किया क्या ऐसा जो maintenance हो गया,इस मानसिक उपवास् के दौरान आपने मन से कुछ बातें की,कि वो क्या है ? आप क्या है ? क्या कर रहा है ? और आप क्या चाहते है उससे ? इस संवाद से मन का मैल साफ हो गया,असल में वो मन का मैल नही था,वो आपका मैल था। हम लोग इस ज़िंदगी के track पर बस दौड़े जा रहे हैं,जो कभी कोई पूछ ले की ज़रा ठहरिए जनाब,कहा जा रहे हैं ? तो शायद खुद को ना पता हो की क्यों दौड़ रहे हैं,कहाँ जाकर रुकेगा ये सफर। ये सफर किस मंज़िल पर जाकर रुकेगा उसी मंज़िल का पता लगाने के लिए ही इस मानसिक उपवास की जरूरत होती है। इसी उपवास के समय आप को आपकी मंज़िल का रास्ता,और पता दोनों को जानने और समझने का मौका मिलता है। मैं तो करता हूँ मानसिक उपवास”,जब भी लगता है कि मन नाम की machine अब गरम हो रही है,अरे तभी तो आज आपके साथ इस मानसिक उपवास कथा को कह सका।तो कभी आप भी करके देखिये मानसिक उपवास अपने मन का maintenance और खुद की खुद से बात,फिर refresh कर नए रास्ते पर,नई मंज़िल की ओर,सफर पर बड़ चलिये। क्योंकि रुकना और थकना मना है,चाहे आपका हो या मन का....................... ।  

Friday 1 May 2020

“सुंदरकाण्ड-एक पथप्रदर्शक रस सरिता”***रस प्रवाह क्र॰-5***


सुंदरकाण्ड-एक पथप्रदर्शक रस सरिता


***रस प्रवाह क्र॰-5***
प्रसंग: लंकिनी ने छोटे रूप में भी श्री हनुमान को पहचान लिया और उन्हें लंका में जाने  से रोक दिया। वह उसे मुट्ठी से मारते है और फिर लंका में प्रवेश करते है।

मसक समान रूप कपि धरी। लंकहि चलेउ सुमिरि नरहरी ॥
नाम लंकिनी एक निसिचरी। सो कह चलेसि मोहि निंदरी॥1॥

भावार्थ: हनुमान्‌जी मच्छड़ के समान (छोटा सा) रूप धारण कर नर रूप से लीला करने वाले भगवान्‌ श्री रामचंद्रजी का स्मरण करके लंका को चले (लंका के द्वार पर) लंकिनी नाम की एक राक्षसी रहती थी। वह बोली- मेरा निरादर करके (बिना मुझसे पूछे) कहाँ चला जा रहा है?॥1॥

मुठिका एक महा कपि हनी । रुधिर बमत धरनीं ढनमनी॥2॥

भावार्थ: महाकपि हनुमान्‌जी ने उसे एक घूँसा मारा, जिससे वह खून की उलटी करती  हुई पृथ्वी पर ल़ुढक पड़ी॥2॥

सीख:यह पूरा प्रसंग हमें तीन बातें सिखाता है-

v  पहली की आपके कार्यों और उनके लिए किए जाने वाले प्रयास को इस बात पर आधारित होना चाहिए,कि स्थिति के लिए क्या आवश्यक है। जो की हनुमान जी ने किया की पहले मच्छर समान छोटा सा आकार करके प्रवेश करने कोशिश की,जो की उस समय की मांग थी,की लंका में प्रवेश प्राथमिकता है।

v  दूसरा अगर हालत की मांग हो तो शक्ति का उपयोग जरूर करें। जो की हनुमान जी द्वारा किया गया,जब लंकिनी ने उन्हे लंका में प्रवेश करने से रोका।

v  तीसरी यह की अपनी शक्ति का कभी दुरुपयोग न करें।जब हनुमानजी ने एक प्रहार से अपना काम सिद्ध कर लिया तब उन्होने फालतू ही लंकिनी के प्राण नही लिए।

       NOTE:
  v  यहाँ लिखा गया हर एक शब्द सिर्फ एक सूक्ष्म वर्णन है “सुंदरकाण्ड” का सम्पूर्ण नही,यह एक कोशिश है,उस अनुभव को सांझा करने की जो “सुंदरकाण्ड” से मैंने महसूस करे।अगर कुछ त्रुटि हो गयी हो तो कृपया कमेंट बॉक्स के माध्यम से जरूर बताए।मैं फिर यह कहना चाहता हूँ,यह धर्म या संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए नहीं है,लेकिन यहां सांझा किया गए “सुंदरकाण्ड” के सबक और उनकी शिक्षा सभी मनुष्यों के लिए उपयोगी हो सकते हैं,चाहे वह किसी भी धर्मजाति या धर्म के हों।