Wednesday 4 July 2018

"पेड़,पेड़ पर नही उगते लगाने पड़ते हैं"

     "पेड़,पेड़ पर नही उगते लगाने पड़ते हैं"

पिछले दिनों एक शॉपिंग में माल में जाना हुआ खरीददारी के दौरान एक जोर की आवाज़ मेरे कानों में पड़ी देखा तो एक माँ अपने बच्चे को डांट रही थी "जब खाना नहीं था तो लिया क्यों,तुम्हे पता नहीं कितना महँगा था ये,ऐसे ही बर्बाद करवा दिया,पैसे पेड़ पर नहीं उगते जो तोड़े और ले आये मेहनत करनी पड़ती है,समझे तुम्हे इसकी कीमत समझनी चाहिए" उनके इन्हीं शब्दों ने मुझे विचार करने पर मजबूर कर दिया,कि क्या हम वाकई फ्री में मिलने वाली चीजों की कद्र नहीं करते।कुदरत की दी हुई नेमत ही हैं,जो हमें उसकी हर एक चीज बड़ी ही आसानी से मुफ़्त में मिल जाती है कि हमें उसका मोल समझ नहीं आता,चाहे वो बारिश का पानी हो या कुदरत की हरियाली,मुफ्त में मिलने वाली ऑक्सीजन हो या ठंड के मौसम में मिलने वाली धूप की राहत,गर्मियों में उसी धूप की तपिस से बचाने के लिए पेड़ों से मिलने वाली छांव हो।सब "मुफ्त मुफ्त और बिल्कुल मुफ्त" किसी चीज का कोई पैसा नही,कोई GST नही,कोई टैक्स नही,कोई टिकट नही। है ना अलबेली बात इस कुदरत की,पर शायद यही अलबेलापन इस कुदरत के लिए श्राप बनता जा रहा है।आप,मैंऔर हम सब इस कुदरत की इज़्ज़त करना भूलते जा रहे हैं।जगह चाहिए या जरूरत पूरी करनी हो,पेड़ों को हम काट रहे हैं पर लगाना भूल रहे हैं,किताबों में बच्चे पेड़ों को बढ़ते तो देख रहे हैं,पर असल में कैसे ये सब हो जाता है,ये हम उन्हें नहीं दिखा रहे हैं।आज की पीढ़ी के बच्चों में से शायद कुछ ही प्रतिशत होंगे,जिन्होंने पेड़ से तोड़ कर आम या कोई फल खाया होगा।उनके लिये तो फलों का मौसम उस फल के बाजार में आने के बाद ही शुरू होता है,और जाते ही खत्म। आज जरूरत है तो हम सबको इस बेशुमार दौलत को सहेजने की ताकि आगे आने वाली पीढ़ी इसे देख सके, महसूस कर सके और उतना ही आनंद उठा सके,जितना आपके पहले वाली पीढ़ी और आज आप उठा रहे हैं।आज आपकी गलती की सज़ा आने वाले कल को भुगतनी पड़ेगी,अगर आप प्रकृति के सारे रंगों का दोहन आज ही कर लेंगे,तो उनके पास प्रकृति के पटल पर देखने के लिए रंग ही कहाँ बचेंगे।और क्या हो जब प्रकृति अपनी संपदा आप पर मुफ्त में लुटाने की जगह उसकी कीमत वसूलना शुरू कर दे,तब आप जुमलों में भी किसी से ये नही कह पाएंगे कि "पैसे पेड़ पर नहीं उगते जो मुफ्त में तोड़ लाये"।आज से ही शुरुआत करें,आप जहां भी रहते है वहां अपने आसपास कम से कम एक पेड़ ज़रूर लगाएं और उसे सहेजे भी,अपने बच्चों को समझाये की वो भी हर साल कम से कम एक पेड़ ज़रूर लगाएं आने वाले कल के लिए,वरना वो दिन दूर नहीं जब ये सब देखने के लिए भी टिकट लेना पड़ेगा।