Friday 11 December 2015

“कुंडली के 36 गुण = Lovely Married Life Guarantee???”

कुंडली के 36 गुण = lovely Married Life Guarantee???
हमारी हिन्दू संस्कृति और समाज में शादी करने के लिए जितनी लड़के और लड़की के मिलने की जरूरत नहीं होती,उससे भी ज्यादा ज़रूरत होती है कुंडली के मिलने कीमाना ये जाता है,कि अगर कुंडली के गुण मिल गए तो पूरे शादी-शुदा जीवन की सफलता का “guarantee card” बन गया।
लड़का-लड़की चाहे एक दुसरे को अच्छे से मिले या न मिले,उन दोनों की कुंडली अच्छे से मिल जाना चाहिए।कुंडली को ऐसे antivirus का दर्जा प्राप्त है,जो शादी-शुदा जीवन के हर एक virus और corrupt file को repair और delete कर देगा।  
अक्सर कहते हैं,कि शादी के लिए अगर 36 गुण मिल जाएँ तो सर्वोत्तम होता है लेकिन इसमें भी पंडितों और शाश्त्रियों ने “flexibility” दे रखी है,कि अगर 18+ गुण भी मिल जाये तो भी शादी हो सकती है।  
मतलब जितनी ज्यादा अच्छी कुंडली मिले उतना अच्छा मैरिड लाइफ की “guarantee” मतलब अगर कुंडली मिल गयी तो   पति-पत्नी कभी आपस में झगडा नहीं करेंगे ,घर में कभी कलेश नहीं होगा।लेकिन एक बात समझ नहीं आती,कि अगर ऐसा होता तो अक्सर मोहल्ले के लोगों को मिलने वाली “protein booster बातें मतलब “gossips” जो कई लोगों की “life line” का काम करती हैं,कि पड़ोस के गुप्ताजी के घर में पति पत्नी की आजकल कुछ बनती नहीं है,सामने वाले दुबेजी के यहाँ सास-बहु का झगडा होता रहता है,........बगेरह-वगेरह सब बंद नहीं हो जाती।और कोर्ट में होने वाले तलाक़ के CASES” ख़तम नहीं हो जाते।
एक और भयानक चीज है “मांगलिक” होना,जो बिलकुल किसी एटम बम की तरह हमेशा कुंडली मिलन समारोह में गिर जाता है,और जिसके गिरने से जैसे सारे गृह जो मिले भी गए हो सारे के सारे साइड में हो जाते हैं।सारे गुण अगर मिल भी गए हों तो भी “मांगलिक” शब्द आते ही,सारी बातों की धज्जियां उड़ जाती हैं,सारे प्रपोजल रिजेक्ट हो जाते हैं,और शादी नाम का “PROJECT” ठन्डे बस्ते में चला जाता है.जैसे चुनाव के समय लगी आचार सहिंता में सरकार का पॉवर नहीं चलता.
लेकिन इसमें हमारे समाज के पंडित लोग “AMENDMENTS” यानि संशोधन का रास्ता निकाल कर अपनी कला का प्रखंड प्रदर्शन कर ही देते हैं.मतलब ये पूजा कर लो,ये व्रत कर लो बगेरह बगेरह ....
पंडित जी लोग ऐसे चार्टर्ड अकाउंटेंट की तरह होते हैं,जो चाहे कोई भी प्रावधान लाना पड़े,कोई भी संशोधन करना पड़े ये रास्ता  निकल ही लेते हैं.और अंत में सारी समस्याओं के बाद भी शादी करवा ही देते हैं।
अगर हम ये मानते हैं की “MARRIAGES ARE MADE IN HEAVEN” तो हम लोग कौन होते हैं जो इस दुनिया में शादी जैसे पवित्र रिश्ते को अपनी सोच और इच्छा के अनुसार बदल लें।कुंडली और सामाजिक रीती-रिवाजों के चक्कर में पड़कर हम ये भूल जाते हैं,कि शादी दो लोगों की ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा है,साथ ही दो परिवारों के भविष्य का आधार ही इस रिश्ते की पूर्णता और परिपक्वता पर टिका है।
माना कि कुंडली-मिलान शादी का बेहद एहम हिस्सा है,लेकिन याद रख्खे सिर्फ “हिस्सा”है सबकुछ नहीं इसीलिए शादी तय करते समय कुंडली के गुणों के मिलने से ज्यादा मन के मिलने पर ध्यान दीजिये.

Sunday 22 November 2015

“ठाकुर साहब”-Ek adab shaksiyat

ठाकुर साहब”-Ek adab shaksiyat
ठाकुर साहब ये title हमारे मुह्ह्ले के ठाकुर परिवार की चौथी पीड़ी के ठाकुर इन्द्रदेव सिंह जी वकील के तीसरे पुत्ररत्न को उस समय मुह्ह्ले वालों ने दे दिया था,जब वो मात्र 5 वर्ष के थे यूं तो ठाकुर इंद्रदेव सिंह जी बेहद ही प्रतिष्ठित नामी और इमानदार वकील थे और उनके परिवार  के सभी पीड़ी के लोग बेहद ही विनम्र ,इमानदार थे साथ ही रुतबेदार सरकारी और सामाजिक ओहदों पर हुए थे। “सभी लोग मेहनत से इज्ज़त कमाने में यकीन रखते थे” आपको मेरी ये बात कुछ अजीब लग सकती है,क्योंकि दुनिया में सभी लोग मेहनत से इज्ज़त कमाते है इसमें क्या खास है पर ये बात आपको धीरे धीरे समझ में आ जाएगी आईये मिलवाता हूँ ठाकुर साहबसे ।
वकील साहब के ये पुत्र रतन बेहद ही शान-ओ-शौकत अपने साथ पोटली में लेकर पैदा हुए थे।कहते हैं “पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं”। “ठाकुर साहब” जब छोटे थे तो खेल तो सभी बच्चों के साथ ही खेलते थे,लेकिन कुछ  “शान-ओ-शौकत” से,जैसे सब बच्चे जब क्रिकेट खेलते,जो की हमारे देश में धर्म का दर्जा रखता है और हर बच्चा सचिन की तरह batsman या कपिल देव की तरह baller बनना चाहता है,लेकिन हमारे “ठाकुर साहब”का अंदाज़ कुछ जुदा था,वो अंपायर बनते थे,कारण बताते थे,कि “हम ठाकुर हैंऔर फैसले करने के लिए ही हम बने हैं। जब भी कोई आउट होता तो  कोई अपील करे या न करे पर ठाकुर साहब की ऊँगली बड़ी शान से हवा में उठती।
जब ठाकुर साहब की उम्र कुछ बड़ी तो चाल ढाल में रौब दिखना शुरू हो गया,वो जब गली में चलते तो किसी शहंशाह की तरह दोनों हाथ पीछे बांध कर और गर्दन को कसकर तानकर ऊपर की तरफ देखकर गली से कुछ यूँ गुजरते थे जैसे अपनी रियासत के दौरे पर निकले हों।कई बार नीचे न देखने की बजह से उनके पैर गोबर पर भी पड़  जाता था।उनकी जीवन के लेकर अपनी philoshophy थी,वो कहते थे ही “हम ठाकुर है” किसी के सामने नहीं झुकते,चाहे वो बड़ो के सम्मान में हो या किसी के घर की छोटी चौखट में अन्दर घुसते हुए सर चौखट से टकरा जाये तब भी । एक रघुकुल रीत थी “ प्राण जाये पर वचन न जाये” और एक इनकी अनोखी रीत थी “सर चाहे दीवार से घल जाये पर झुकने न पाए”।
जब ठाकुर साहबकी पढाई पूरी हुई तो पिताजी ने पुछा अब आगे किस नौकरी में जाना चाहते हो,तो उन्होंने गर्जना करते हुए भीष्म प्रतिज्ञा करते हुए बोले-“पिताजी हम ठाकुर हैये नौकरी जैसा छोटा काम हम नहीं करेंगे” ये सुन उनके पिताजी थोडा विचलित हुए पर बेटे की नादानी समझ, दूसरा प्रस्ताव दिया जो की उनकी बहुत बड़ी भूल थी,उन्होंने कहा कि जीवन यापन के लिए कोई business ही शुरू कर लो ,तो ठाकुर साहब का स्वर और भी प्रचंड हो चूका था,उन्होंने जो ज़वाब दिया उसके ठाकुर इन्द्रदेव सिंह वकील के सभी कानूनी दाँव-पेंच और धारायें शिकस्त हो गईं। “ठाकुर साहब ने कहा-“business धंधा जैसे काम बनिया लोग करते है,अपने सामान को बेचने के लिए ग्राहकों को मनाना ये हमारी शान के खिलाफ है”,और हर बार की तरह अंतिम शब्द मतलब अपने चिरपरिचित अंदाज़ में signature note के साथ “हम ठाकुर है” कहकर ख़त्म की।
ठाकुर साहब” रोज़ की तरह उठकर चाय का गिलास लेकर अपने बड़े से आँगन में बैठ जाते हैं अखबार लेकर कुर्सी पर जिसपर उनके पिताजी बरसो पहले बैठते थे।बस फर्क सिर्फ इतना इतना है,आज “ठाकुर साहब” की उम्र लगभग 50 पार हो गई है,उनके पिताजी मतलब ठाकुर इन्द्रदेव सिंह जी वकील स्वर्गवासी हो चुके हैं,पिताजी जाते-जाते बहुत बड़ी हवेली,ज़मीन और जायेदाद छोड़ गए थे।लेकिन “ठाकुर साहबकुछ करते-धरते तो है नहीं इसीलिए धीरे धीरे खर्चा-पानी के लिए उसे बेचते गए,अब सिर्फ थोड़ी –सी ज़मीन बची है,जो की साल भर का गेहूं खाने के लिए देती है,और दो मकान हैं जिनके किराये से खर्चा बड़ी मुश्किल से चला पाते हैं ।
पिताजी के समय तक रौनक हुआ करती थी वो जब सुबह बाहर अखबार और चाय लेकर बैठते थे ,तो मुह्ह्ले के चार आदमी भी आकर मिलकर अपने सुख-चैन सुनते और सुनाते थे और ख़ुशी से जाते थे ।
पर ठाकुर साहबतो ठाकुर साहब” है उसी कुर्सी पर वो भी बैठते हैं, जिसपर उनके पिताजी बैठते थे पर ज़नाब चार आदमी तो छोड़िये मक्खियाँ भी मरने को नहीं मिलती ठाकुर साहब को और अब तो उस कुर्सी का एक पैर भी टूट गया है,कुर्सी भी अपने बूडापे की दुहाई देकर रहम की भीक मांग रही है।
एक बात तो मैं बताना भूल ही गया ठाकुर साहबकी शादी उनके पिताजी जाते जाते कर गए थे और एक चश्मों चिराग भी रौशन है,मतलब ठाकुर साहब का एक बेटा भी है ,और ठाकुर साहब की पत्नी दिन रात ये कोशिश करती हैं कि उनका बेटा ठाकुर साहबपर ना जाये हरकतों और स्वाभाव में,मतलब आलसी,अकर्मण्य और निठल्ला न बने।इसीलिए वो परिवार के पूर्वजों के किस्से सुनाती हैं,लेकिन उनके मेहनत के और संघर्ष के,कि किस तरह वो अपनी लगन ,मेहनत और विनम्रता के दम पर ठाकुर बने न कि ठाकुर साहब के।

और हमारे ठाकुर साहबउनके बारे में अब क्या कहे ठाकुर साहबतो आज भी “कनक न कंडा और सूखे गुंडे”हैं ,मतलब तेल सर के बालों में डालने को नहीं पर मूंछों पर ताव ज़रूर देते हैं और कहते रहते हैं “हम ठाकुर है”पर करते आज भी कुछ नहीं।

Sunday 15 November 2015

“दिल तो बच्चा हैं जी!!!”

“दिल तो बच्चा हैं जी!!!”
इससे पहले की कुछ लिखना शुरु करूँ,मैं यह बता देना चाहता हूँ,कि मैं अब बड़ा हो गया हूँ,अब मैं ज्यादा खुल के नहीं हँसता ज्यादा हुआ तो तो सिर्फ मुस्कुरा देता हूँ,वो भी दिन में सिर्फ कुछ बार,मैं अब दोस्तों के साथ हलके–फुल्के मजाक नहीं करता,बातें अब मैच और फिल्म्स की नहीं,बल्कि गंभीर विषय जैसे भ्रष्टाचार और राजनीति पर होती हैं अब मैं बहुत सीरियस रहता हूँ,पहले बचपन में बड़ी-बड़ी लड़ाई और मारपीट हो जाने के बाद भी दोस्तों को माफ़ करके गले लगा लेता था,पर अब साथियों की छोटी सी कही गई बात को भी दिल से लगा कर बुराइयाँ बना लेता हूँ,जो की मेरे बड़े और गंभीर हो जाने का परिचय देता हैं और इसके सही होने का तर्क हैं
लेकिन हम बड़े हो गए हैं,इस बात को सिद्ध करने के लिए एक बात कुछ समझ नहीं आती,कि वयस्क दिल से होना ज़रूरी हैं या दिमाग के विकास को वयस्क होना कहते हैं।या फिर अपनी पसंदीदा चीज़ो का त्याग करना ,दिल को ख़ुशी देने वाले कामों को ना करके,तथाकथित maturity की चादर को ओड़ लेने का प्रदर्शन क्या ठीक बात हैं ? ,क्या ठीक हैं की हम दूसरों को दिखाने के लिए की हम कितने सीरियस हैं ,खुल कर हँसतें भी नही हैं ।
अब हम दोस्तों में बचपन की तरह साफगोई नहीं रही जिसमे एक पल लड़ाई करके थोड़ी देर में ही वापस गले लग जाते थे। अब लड़ाई तो छोडिये ज़रा सी बात को हम हमारा prestige issue बना लेते हैं ,और सालों पुराने व्यवहार,दोस्ती और रिश्तों में दरारों बनाकर अपनों से दूरियां बना लेते हैं।
लेकिन कभी सोचा हैं ज़िन्दगी बहुत limited stock में मिली हैं ,ज़रा सा संभल कर इसे जियें।maturity लाईये लेकिन दिल में नहीं दिमाग में । काम बड़े कीजिये बचपन की तरह homework को pending में मत डालिए ,उसे समय पर पूरा कीजिये,लेकिन छोटी-छोटी बातों पर भी खुल कर हंसिये,मजाक और शैतानियाँ भी ज़रूर कीजिये, ताकि आप भी हँसे और आसपास के लोग भी।
किसी की कही छोटी सी बात को अपने दिल पर मत लीजिये, ये आपका अहंकार हैं, ये आपकी खुशियों को नष्ट कर देगा।बिलकुल बचपन की तरह अगर झगडा हो भी जाये तो अगले ही पल गले भी लगा लीजिये ।
तो दिल को बच्चा ही बने रहने दो और दिमाग को बड़ा बनाओ।

निश्चित मानिये ये नुस्खा अचूक है heart attack से मरने वालों की संख्या कम हो जाएगी ।क्योंकि कहतें हैं बच्चों को heart attack नहीं आते क्योंकि वो बड़े दिल वाले होते हैं और बड़े दिल वालों के दिल में छोटी मोती बुराइयों और झगड़ों के लिए समय और जगह दोनों नहीं होते।

Friday 8 May 2015

“हमारे आगन मा”

“हमारे आगन मा”

चमचा तेज़ चला हलवाई,देखो खुशी मेरे घर आई,
खुश है पापा-मम्मी,ताऊ-ताई और घर की हर एक भोजाई,
बन्नी के आने पर बहार है आई,सजा है घर हर एक कोना,
और सजी है ,हर एक चौखट और हर एक द्वार,
“हमारे आगन मा”……………………………………...
बन रहे है लड्डू बूंदी के और आम का आचार
“हमारे आगन मा”....................................
यूं तो हमने भी बन्ना को टाइम सिलेक्सन के दिखलाई थी फोटो चार
पर उनको ढेख परख के न आया उनके मन मे कोई विचार
आता-आता भी कैसे विचार,जोड़ी सिया-राम जी सी  जो तैयार
“हमारे आगन मा”....................................
पर बन्ने तू रख ले घांठ बांध कर मेरी एक सीख
झुका ले शीश लेले आशीष,सभी का ये है शुभ आशीष
ये एफ़डी है लाइफटाइम की पर इन्टरेस्ट मिले रोजाना
है दुआ साथ तो तुझे कभी न हांथ पड़े न फैलाना
गाओ –गाओ सभी आज,खुशी का राग 
“हमारे आगन मा”.................................
आई-आई घड़ी शुभ देखो आज 
“हमारे आगन मा”....................................

Thursday 7 May 2015

“मुन्ना भईया” का ठेला

“मुन्ना भईया” का ठेला


मुहल्ले की गलियों में गर्मी हो,बरसात हो चाहे कोई भी मौसम हो,मुन्ना भैया का ठेला मुहल्ले की हमेशा  घंटी बजाता हुआ ज़रूर आता था। घंटी की आवाज़ सुनकर सभी बच्चे अपने-अपने घरों से दौड़ कर बाहर निकल कर मुन्ना भैया के ठेले पर आ जाते,और अपने नन्हें हाथों मे पचास पैसे और एक रुपये के सिक्के मुन्ना भैया की तरफ बड़ाते हुए अपनी भोली और मासूमियत भरी तोतली भाषा में मुन्ना भैया से अपनी फरमाइश कहते और मुन्ना भैया मुसकुराते हुए हर बच्चे की इच्छा को पूरा करते जाते। मुन्ना भैया को अपना ठेला लगाते हुए चालीस साल हो चुके हैं,और आज भी वो लगातार अपना ये काम उतने ही दिल से करते है, मुन्ना भैया ठेले पर गर्मी में बच्चों के लिए स्पेशल वाली खोबे की कुल्फी लेकर आते थे,जो उन बच्चों को नुकसान भी ना करे। और बच्चों की फरमाइश पर भेल और फुल्की भी लेकर आते थे,इतने साल हो गए उन्हे ये काम करते हुए,और इसी काम से होने वाली आय से ही उन्होने अपने परिवार का खर्च चलाया। आज समय का पहिया अपनी चाल से चलते हुए इतना वक़्त पूरा कर चुका है,मंहगाई ने अपने पैर खूब पसारे लेकिन इसका असर मुन्ना भैया ने अपने प्यारे ठेले पर बच्चों के सामान और उनके दाम पर नहीं आने दिया। आज सिर्फ मामूली दामों में बदलाव कर मुन्ना भैया लगातार बच्चों की फरमाइश पूरी कर रहे हैं,साथ ही अपने ठेले पर मिलने वाले सामान की क्वालिटी का भी ध्यान रखा,जहां एक तरफ बाकी व्यापार करने वालों ने ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए कुल्फी और आइसक्रीम में कई केमिकल्स का उपयोग करने लगे,और चाट में भी साफ सफाई का ध्यान नहीं रखते, वही दूसरी ओर मुन्ना भईया अपने ठेले पर मुनाफा कम और बच्चों के स्वास्थ का खयाल  रखते हुए बिना किसी केमिकल का उपयोग किए और साफ सफाई का पूरा ध्यान रख रहे हैं,उन्हें मुनाफा भले ही कम हो लेकिन वो कभी अपने सिद्धांतों से समझोता नहीं कर रहे हैं ,इसी वजह से आज भी लोग उन्हे कोई आम ठेले वाला या व्यापारी कहकर नहीं बल्कि पूरे मान-सम्मान के साथ “मुन्ना भईया”कहकर बुलाते हैं। 

Friday 24 April 2015

“पाती सांझ की”

“पाती सांझ की”-


“कमर झुकी कुछ इस तरह,कि उम्र हुई यारो,

फिर भी बाकी है लौ,नहीं अभी बुझी यारो ,

कि इंतज़ार करता हूँ,मै इसका ये पता नहीं ,

पर उम्मीद है ,कि लेने आएगा कोई कभी मेरी खबर भी सही,

कि इस सफर मे हमने जमी को आसमा से मिलते देखा है यही,

पर पता न था कि जन्नत की चाह मे कमर भी झुक जाएगी यही,

आज देखता हूँ तो लगता है चला आ रहा है मेरा अक्स मेरी ओर यही,

देख वही चाल,वही ढाल,वही रंग रूप सही”। 

Thursday 23 April 2015

सुनो जीजाजी हेंगी साली तुम्हारी दो चारजी

सुनो जीजाजी हेंगी साली तुम्हारी दो चारजी ,तनिक नजर इधर भी घुमाओ।
अपने रिश्ते के भी तीन वचन हैं, जो पूरे हुए तो तुमको कसम है,
पहला वचन पूरे मन से निभाना, भूलो पङोसन को पर हमें भुलाना,
होगा-होगा होली पर हर बरस तुमको आना , चलेगा तुम्हारा कोई भी बहाना ,
सुनो जीजाजी हेंगी साली तुम्हारी  दो चारजी, तनिक नजर इधर भी घुमाओ

दूजा बचन  पूरे धन से निभाना, हांजी पूरे धन से निभाना,
फ्रेश फिलम फ़र्स्ट शो जीजी साथ हमें भी ले जाना , चाट-शाट कोल्डड्रिंक इंटरवल में जरुर से खिलाना,
सुनो जीजाजी हेंगी साली तुम्हारी दो चारजी, तनिक नजर इधर भी घुमाओ।

तीजा बचन पूरे तन से निभाना हांजी पूरे तन से निभाना, खूब पसीना होगा इसमें बहाना,
जीजी जो जाऐं पार्लर तो हमें भी ले जाना ,जो वो बनें नरगिस तो हमें एशवरया बनाना,
सुनो जीजाजी हेंगी साली तुम्हारी  दो चारजी तनिक नजर इधर भी घुमाओ

साली सेवा में जो जीजा रखो तुम आस्था मिलेगा जरूर से ससुराल के लिए स्वर्ग का रास्ता

सुनो जीजाजी हेंगी साली तुम्हारी दो चारजी तनिक नजर इधर भी घुमाओ।