Saturday 19 August 2023

“नींबू मिर्ची”

 

“नींबू मिर्ची”

आज शाम हमारे पड़ोसी श्री हरीलाल जी किसी जरूरी काम से शहर से बाहर जाने वाले थे,घर से बड़ी जल्दी में निकाल अपना सूटकेस लेकर निकल रहे थे,क्यूंकी उनकी ट्रेन का टाइम हो रहा था,और वो पहले ही लेट हो गए थे, बस कुछ ही मिनट रह गए थे,इसीलिए जल्दी-जल्दी वो अपने कदम गली से बाहर निकाल रहे थे,कि अचानक उनके सामने से एक बिल्ली निकल गयी,शायद वो भी कहीं पहुँचने की जल्दी में थी,बिल्ली के रास्ते के सामने से निकलते ही हमारे पड़ोसी श्री हरी राम जी के तेजी से बड्ते हुये कदम अचानक डिस्क ब्रेक लग गए हो कुछ इस तरह रुक गए और चेहरे पर बड़े ही गुस्से से भरे भाव आए और मुंह से कुछ बड़बड़ाहट में फूट पड़े “अब इस कंबखत बिल्ली को भी अभी रास्ता काटना था” अब क्या करूँ कैसे आगे जाऊँ। अब तो कुछ देर ठहरना ही पड़ेगा,ऐसा कहते हुये वो बैचेन मन से वहाँ कुछ पल के लिए रुक गए,पर वक़्त कहाँ रुकने वाला था,वो तो अपनी गति से लगातार बदता ही जा रहा था,सो जिस चीज की कमी इस समय हमारे पड़ोसी श्री हरीलाल जी के पास थी मतलब समय,वही तेजी से फिसल रहा था,कुछ देर रुकने के बाद श्री हरीलाल जी ने एक लंबी सांस ली,और जल्दी-जल्दी रेल्वे स्टेशन के लिए निकल गए,क्यूंकी उन्हे ट्रेन जो पकडनी थी,पर जिस गति से वो गए थे,उसी गति से कुछ देर वो वापस आ गए पूछने पर बताया,की ट्रेन राइट टाइम थी सो निकाल गयी,मैं स्टेशन देरी से पहुंचा,अब तो उनका सारा गुस्सा उस बिल्ली पर फूट पड़ा,न वो रास्ता काटती,न मैं देरी से पहुंचता,न मेरी ट्रेन छूटती,मैंने कहा अजी जनाब उस बिल्ली को क्यूँ दोष दे रहे हैं,वो तो बेचारी अपने रास्ते जा रही थी,उसका आपके सामने आ जाना तो महज एक इत्तेफाक भी हो सकता है,आपको उसने थोड़ी ही रुकने को कहा था,आप अपने रास्ते चल पड़ते जैसे वो बिल्ली निकल पड़ी थी,शायद अपनी मंज़िल पर समय से पहुँच भी गयी होगी। हरी राम जी का गुस्सा शायद मैंने और भी भड़का दिया था,कहने लगे आप भी क्या फालतू की बात करते हैं,बिल्ली रास्ता काट जाये तो अच्छा शगुन नही होता है,इसीलिए रुका,मैंने उनकी मनःस्थिति को भांपते हुये उन्हे कुछ ठंडा करने के लिए कहा हाँ आप सही कह रहे है,पर जरा सोचिए की अगर आप रुके न होते तो आपकी ट्रेन छूटती,मेरी बात सुन हरीलाल जी थोड़ा शांत हुये और हामी में सर हिलाया,मैंने भी मौका देख एक और तीर छोड़ा,और अपनी बात मैं आगे जोड़ा और क्या आप अच्छा शगुन और बुरा शगुन के बारे में कहते हैं,कुछ यूं सोच कर देखिये की बिल्ली अपने रास्ते पर थी और आप अपने बस वो जरा जल्दी आपके सामने से निकल गयी,वो तो आपको देख कर नही रुकी ज़रा सोचिए की अगर बिल्ली आपको देखकर रुक गयी होती तो शायद उसे अपनी ट्रेन भी मिस करनी पड़ जाती,और इस वक़्त वो भी आप ही की तरह गुस्सा कर रही होती,पर देखिये वो कहाँ रुकी उसने तो अपनी ट्रेन पकड़ ली ना,पर आप रुक गए और आपकी ट्रेन मिस हो गयी,मेरी इस बात में थोड़ा व्यंग था पर अब शायद हरीलाल जी को समझ आ गयी थी,उनकी गुस्से की ज्वाला अब ठंडी हो चली थी,वो हल्का सा मुस्कुरा दिये,और शांत चित्त से अपने घर को चल दिये।

                        
पर जरा बात निकल ही आई है तो जरा दो चार पल गुफ्तगू कर ही लिया जाये
, मान लीजिये आप किसी प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं,जैसे कोई बिल्डिंग का प्लान हो जिस पर आपने और आपकी टीम ने काफी लंबे अरसे तक काम किया हो,हर एक कदम को फूक-फूक कर रखा हो,हर एक पैरामीटर को ध्यान में रख कर डिज़ाइन और ले आउट तैयार किए गए हों,एक्स्पर्ट्स हर एक स्टेप को बारीकी से अब्ज़र्व कर रहे हो,बहुत ही qualified लोगों की टीम,प्रोपर प्लानिंग और हाइ क्लास मटिरियल के साथ आप कोई बड़ी सी इमारत खड़ी कर रहे हों,और एक दिन जब वो बिल्डिंग जब बनकर तैयार होती है,तो आप डिज़ाइन वगेरह की तारीफ करते हुये उसके टिके रहने की गारंटी लेते हैं,और लें भी न भाई आपने और आपकी टीम ने हर एक दिन काफी लगन से काम किया है,और उसमें मटिरियल भी अच्छा ही उपयोग किया गया है,पर आप देखते हैं की उस बिल्डिंग के किसी एक हिस्से पर कहीं कोई नज़र बट्टु जैसे काला मटका या कोई पुरानी चप्पल या जूता बगेरह लगा देता है,और कहे की अब इस बिल्डिंग में कोई र्पोब्लेम नही आ सकती,क्यूंकी अब इसे लटका दिया है तो आपको कैसा लगेगा क्या इतनी मेहनत और मटिरियल,टेक्नालाजी सब बर्बाद है,अगर यही करना तो बस कुछ भी आड़ा टेड़ा काम कर देते,ये नज़र बट्टु तो है सब संभाल लेगा,इतनी प्लान्निंग्स और लेआउट की क्या जरूरत थी ?

                        जब आज बैठक जम ही गयी है तो,ज़रा एक किस्सा और बताता हूँ,तो हुआ यूं कि हमारे मित्र अरे हमारे पड़ोसी अभी तो मुलाक़ात कारवाई थी,आप सभी की उनसे अरे भूल गए इतनी जल्दी,अरे हरीरम जी,याद आ गए न,तो हुआ यूं की उन्होने बड़े अरमानों से एक नयी चार चक्के वाली गाड़ी अरे मतलब “फोर व्हीलर” गाड़ी एक कार खरीदी,अपनी आदत के अनुसार उन्होने कार लेने से पहले अपने पिछले 6 माह कारों के बारे में गहन अध्यन में खर्चा कर दिये जो भी मिला,जहां से भी मिला खूब रिसर्च की खूब ज्ञान बटोरा,हर एक पैरामीटर को अच्छे से कस के पकड़-पकड़ कर जांचा परखा,फिर कहीं जाकर एक कार उनकी तय की हुई कसोटी पर खरी उतर,तो उन्होने उसे खरीदने का मन बनाया,बुकिंग की गयी मुहल्ले में हल्ला था उनकी आज कार फाइनली खरीदी जा रही है,क्यूंकी पिछले 6 महीने में ऐसा कोई आदमी हमारे मुहल्ले में नही बचा था,जिससे सलाह माशोहरा न किया,और सर न खाया हो,अजी 2 से 3 बार तो मेरे ही कई घंटे खर्चा करवा दिये थे,कार श्री हरीलाल जी की आज आ रही थी,पर खुश सभी थे की कल से अब कार की चर्चा बंद,पर इसमें गलती श्री हरीलाल जी की भी नही थी,अजी साहब हम मिडिल क्लास लोग होते ही ऐसे है क्यूंकी सीमित आय में ज़िंदगी के कई सपने अपने प्राइस टेग लगाए रहते है,बड़ी मुश्किल से उन सपनों में कुछ एक सपने अपनी बचत आय में पूरे करने के बारे में सोचते हैं,बाकी तो सपने बस सपने रह जाते हैं,खैर आज श्री हरीलाल जी की कार आने वाली है हमारे मुहल्ले में,सभी उत्साहित है,और कार आई जिस पर इतनी रिसर्च की गयी थी श्री हरीलाल जी द्वारा, हरीलाल जी ने हमें भी अपनी कार दिखाने बुलाया और बड़ी शान से बोले देखिये ये है मेरी कार जिसे मैंने पसंद किया है,सारे क्वालिटी पैरामेटर पर खरा उतरने के बाद ही फ़ाइनल किया है,मैंने उनके उत्साह से भरे वाक्यों को सुनकर उनकी हाँ में हाँ मिलाते हुये सिर्फ इतना ही कहा की हाँ वो तो है,आपने काफी रिसर्च की और काफी एक्स्पर्ट्स लोगों से सलाह मशवहरा किया है,कार को लेने से पहले,तभी उनकी श्रीमति जी पूजा की थाली लेकर आ गयी,अरे भाई मेरी पूजा करने के लिए नही,कार की पूजा करने के लिए,हम भारतीयों में ये बहुत ही अच्छी खूबी होती है,हम अपनी परम्पराओं का सम्मान करना कभी नही छोडते हैं,और यही बात हमें खास बनाती है,सो श्री हरीलाल जी की श्रीमति जी पूजा की थाली लेकर आई और अपने शुभ हाथों से नयी नवेली कार का पूजन करने लगी,सब विधि-विधान करने के बाद पूजन सम्पन्न हुआ और हम सभी मुहल्ले वाले जो अभी तक दर्शनभिलाशी बनकर आए थे कार के और अब पूजन के बाद प्रसाद की मिठाई के लिए मिठाइयाभिलाषी भी हो गये थे,की कब पूजन पूरा हो और हमें नयी कार की मिठाई खाने मिले,तभी श्री हरीलाल जी ने अपनी श्रीमति जी से प्रश्नवाचक मुद्रा में आते हुये पूछा अरे भाई आप वो नही लायी लगाने के लिए?,ये सुनकर हम सभी का ध्यान थाली में रखी मिठाई से हटकर उन दोनों की ओर चला गया,उनकी श्रीमति जी ने श्री हरीलाल जी का इशारा कुशल पत्नी की तरह समझकर तुरंत सुपर फास्ट ट्रेन की गति से अपने कदमों को घर के अंदर की तरफ मोड़ा और अंदर से कुछ ही सेकंड के सस्पेन्स के बाद उसे खतम करते हुये अपने हाथों में एक माला जिस पर कुछ नींबू और एक दो हरी मिर्च लगे थे,के साथ प्रगट हुईं,जिसे देख श्री हरीलाल जी के चेहरे पर संतुष्टि भरी मुस्कुराहट आ गयी और वो तुरंत उत्साह से बोल उठे,हाँ ! यही तो मैं कह रह था,ये नज़ारा देख हम सभी हतप्रभ रह गए थे,मामला कुछ समझ नही आ रहा था,पहले तो ये लगा शायद कार कि खुशी में नींबू का शर्बत मिलने वाला है पर साथ में मिर्च देख कॉम्बिनेशन कुछ जमा नही,पर हरीलाल जी से पूछे भी कौन ?,क्यूंकी उनकी छवि हमारे मुहल्ले में कुछ यूं थी की वो सबसे सवाल-जवाब कर सकते थे,पर उनसे कोई ऐसा करने की हिमाकत नही कर सकता था,क्यूंकी वो ऐसी गुस्ताखी करने वाले पर विफर कर बरस पड़ते थे,और इतनी गुस्ताखियाँ उस व्यक्ति से साथ करते थे अपने शब्दों के प्रहार से,की वो अपना सवाल क्या था,यही भूल जाता था,और उस घड़ी को कोसना शुरू कर देता था,की क्यूँ मैंने इनसे कुछ पूछने के बारे में सोचा,इन्हीं सब पुराने अनुभवों के कारण सभी चुप खड़े थे और पूछने की हिम्मत कोई भी नही कर पा रहा था,तभी आगे बड्कर श्री हरीलाल जी ने वो नींबू मिर्च की माला ली और गाड़ी में आगे की तरफ उसे बांध दिया और कहा अब सब ठीक रहेगा,मुझे शायद कुछ ज्यादा ही चुल मची थी अंदर से,की रहा नही गया,फिर लगा की आज हरीलाल बहुत खुश है,सो पूछ ही लिया जाये,मैंने कहा भाई साहब ये किसलिए बांध दिये,तो वे तपाक से बोले जैसे शायद इंतज़ार ही कर रहे हो,की कोई तो पूछे। बोले अरे ये नींबू मिर्ची लगा देने से नज़र नही लगेगी और गाड़ी बिलकुल सही चलेगी खराब नही होगी,ये सुन कर मुझे बात कुछ हजम नही हो रही थी,की इस आदमी ने इतने दिन रिसर्च की,कई लोगों से सलाह ली इतने पैरामीटर की लिस्ट बनाई सब सही चेक करने के साथ ही इतने सुरक्षा उपकरणों से लैस कार ली,उन सभी पर भरोसा नही है,ये बात मुझे हजम नही हो रही थी,इसीलिए मैंने सोचा अब अंदर रखना ही क्यूँ,बाहर उल्टी कर दी जाये तो ही बेहतर,और पूछा भाईसाहब आपकी गाड़ी में कितने कलपुर्जे हैं ?,तो कहने लगे बहुत से,और safety के लिए सीट बेल्ट और एयर बेग्स भी होंगे,बोले बिलकुल सभी चीजों का ध्यान रखा है लेते समय,इंजिन भी लेटैस्ट मोडेल का है,हाइ एफीश्यंसी वाला,तो मैंने कहा जब आपकी कार में इतने सारे qualities होने के बाद भी आपको भरोसा नही है कि सही से चलेगी या नही,तो क्या नींबू मिर्ची के भरोसे सही चल पाएगी ?,मेरी बात सुन भाईसाहब शांत खड़े रह गए,और हम सभी बिन मिठाई के रह गए “मिठाई अभिलाषी”।

                    बात यहाँ सिर्फ एक हरीलाल जी कि नही है हर जगह हरीलाल जी है,हम खुद भी शायद कभी कहीं हरीलाल जी कि सोच और नज़रिये से स्थितियों को देख चुके है,पर यहाँ ठहर कर सोचने की बात तो है,हम सभी कहीं न कहीं किसी न किसी चीज या बात पर भरोसा या कहें तो विश्वास करते हैं,जब भी कहीं जा रहे होते हैं तो मन में सकारात्मक विचारों के साथ जाते हैं,कोई काम शुरू करते हैं तो भरोसे और लगन के साथ की मेहनत से किए जाने वाले में काम में सफलता जरूर मिलती है,एक विश्वास मन में रख कर आगे बड्ते हैं,पर यही विश्वास अंध-विश्वास में बदलने लगे तो चीजें बिगड़ना शुरू होने लगती है,जैसे ऊपर हमारे श्री हरीलाल जी बिल्ली के सामने से गुजर जाने को अशुभ मान कर आगे नही बड़े और उनकी ट्रेन छूट गयी,एक व्यक्ति किसी काम को निकले और किसी दूसरे को आसपास छींक आ जाये,तो मन में ये विचार बना लेता है की आज फलां काम नही बनेगा,बिना उस काम को किए वो नकारात्मकता भरी मानसिकता पैदा कर लेता है जिस वजह से बंता हुआ काम भी बिगड़ जाता है,गाड़ियों पर नींबू मिर्ची लगा लेता है,की गाड़ी सही चलेगी वजाए इसके की कोशिश करें की सही और कुशल तरीके से ट्रेफिक नियमों का पालन करते हुये safety से गाड़ी को चलाएं तो गाड़ी सही चलेगी।

                   कई जगहों पर जिन बातों में हम अपशगुन मानते हैं उन्हे शगुन के रूप में देखा जाता है,मैं यहाँ ये साफ कर देना चाहता हूँ की मेरा उद्देश्य किसी मान्यता या रिवाज़ पर सवाल उठाना नही है,क्यूंकी हम सभी इस दुनिया में एक विश्वास की डोर से जुड़े है,विश्वास किसी एक शक्ति पर जो इस संसार को चला रही है,चाहे नाम कुछ भी पुकारा जाये,विश्वास अपनी अंतरात्मा की आवाज़ पर,जो हमें हर कदम सही और गलत पर आवाज़ देती है,विश्वास नेक नियत और मेहनत,पर जिसके बूते कुछ भी पाना असंभव नही है,पर कभी-कभी हम रास्ता भटक कर विश्वास की जगह अंध-विश्वास को ज्यादा एहमियत देना शुरू कर देते है,जिसके वजह से खुद के साथ-साथ हमारे आसपास लोगों भी प्रभावित होते हैं,तो विश्वास के साथ आगे बड़ें न की अंध-विश्वास के साथ।    

Thursday 6 July 2023

"तोंद - ये कैसी है पहेली हाय"

"तोंद - ये कैसी है पहेली हाय"



अब क्या है ना जनाब की कंट्रोल ही नही होता बस बढ़ता जा रहा है,पहले जब नई-नई जवानी आ रही थी,तो लगता था की क्या स्लिम बॉडी है,क्या आकर्षक पर्सनाल्टी है, क्या बात है हीरो जैसे लग रहे हो,लोगों की तरफ से ऐसे तारीफों से भरे कमेंट आते थे, तो सुनने में बड़ा अच्छा लगता था,जिनका बड़ा हुआ देखते थे तो बड़ी ही लानत भरी नज़रों से उन्हें निहारते थे,क्या साइड हीरो की तरह लगता है,इसका कितना बड़ा है उन पर हँसा करते थे,पर पता नही था एक दिन ऐसा कुछ हमारे साथ भी घटित होगा।

साथियों मैं हूँ एक आम ग्रहस्थ आदमी जो आज आईने के सामने खड़ा है और अपने आप से बातें कर रहा है,यहां 'बड़ा या बड़े' हुए से बात हो रही है,मेरे स्वयं के यानी खुद के बड़े हुए पेट यानी कि मेरी तोंद की,और मैं लगातार अपने बड़े हुए पेट की तरफ देखे जा रहा हूँ,और अपने आप पर विचारों की बौछार कर रहा है,जी हां बड़ा हुआ पेट जिसे हमारे आम बोल चाल की भाषा में "तोंद" कहा जाता है,
तोंद एक ऐसी प्रकार की चीज जो एक बार अगर बढ़ना शुरू होती है,तो इसके बढ़ने का कोई निश्चित मापदंड नही होती कि अब रुक जाएगी बस बढ़ती चली जाती है,लोग अपने ज़िन्दगी में आगे बढ़ते हैं,अपनी मेहनत की वजह से पर ये ऐसी गजब की चीज है जो मेहनत न करने से बढ़ती है और बढ़ती चली जाती है,दुनियां में एक से बढ़कर एक प्रकार की तोंद हुई है,जिनकी तोंद अच्छी प्रकार से विकसित होती है,उनकी आंखों और कमर के नीचे के हिस्से का संपर्क उस तोंद के द्वारा खत्म कर दिया जाता है ,मतलब कहने का ये है कि वो कभी भी अगर सीधे खड़े हो जाये और आरज़ू ज़ाहिर करें कि एक बार अपनी गर्दन को झुकाकर पेंट पर लगे बेल्ट को देख लें तो असम्भव सी बात हो जाती है,गजब तो ये है,कि तोंद जो है, वो शादीशुदा मर्दों के लिए तारीफ़ की बात भी बन जाती है और तो कभी समय के साथ मुसीबत भी,कहते है अगर शादी के बाद जिस आदमी की तोंद निकल कर जितनी जल्दी बढ़ती है उसकी बीवी उसे उतना ज्यादा प्यार करती है,मतलब अच्छे से प्यार से खिला पिला रही है,खयाल रख रही है,पर ये कहावतें सिर्फ शादी के शुरूआती कुछ महीनों या सालों तक कानों में पड़ती हुई अच्छी लगती है।
लोग अपनी अच्छी शादीशुदा किस्मत पर इतराते भी है और बढ़ती तोंद को देख ये मान लेते हैं कि सच में ये बीवी का प्यार है और उसे देख देखकर खुश भी हो लेते हैं,जबकि असल में science एंड biology के अनुसार पेट के निकलने का पत्नी के प्यार से कोई लेना देना नही होता, वो सही रूटीन न रखना और exercise न करने और आलस की वजह से होता है,गजब बात तो ये है कि जानते वो भी है पर प्यार में पड़ा व्यक्ति ये मानने को तैयार नही होता,कि ये सच एक मिथ्या है,छलावा है,सत्य कुछ और ही है,पर कहते है न कि आपको अपनी किये हुए कर्म यही भोगने पड़ते है,अभी जिस बीवी के नए-नए प्यार में पड़ वो कुछ भी नहीं स्वीकार करना चाहता है,शादी के बाद जब वही बीवी के ताने उसे उसकी तोंद को लेकर सत्यता के दर्शन करवाती है तो जैसे पति महोदय को ऐसा प्रतीत होता है जैसे आज वो अचानक सालों के बाद नींद से जागे है और यथार्थ के दर्शन किए हैं। और उस पर भी जब पत्नी किसी फिल्मी हीरो की सिर्फ इसीलिए तारीफ करती है कि उसकी बॉडी कितनी फिट है, देखो कितना अच्छा लगता है, तो उस समय पति को ऐसा लगता है, जैसे उसके साथ तो कोई धोखा किया गया है,पहले प्यार के बहाने उसके पेट को बढ़ाया गया और अब उसी बड़े हुए पेट को उसकी गलती बता कर लानत दी जा रही है।
अब तो गंगाजल तो नही पर सामने रखी पानी की बोतल जो कि किसी famous brand की लेबल लगाए हमारी टेबल पर राखी थी जिसमें उस ब्रांड का नही हमारे ही घर के नल की टोंटी से निकल पानी भरा था उसे साक्षी मानकर हमने भी प्रतिज्ञा कर ली कि 'बस अब बहुत हो चुका है अब इस छलावे से बाहर निकलना है अब और मूर्ख नह बनना है, कसम है मुझे इस पेट की कुछ ही महीनों में इस पेट को कम करके दिखाऊंगा'।
इस प्रतिज्ञा को लेने के बाद मानसिकता में एक चमत्कारिक रूप से बदलाव महसूस हुआ,TV पर अचानक आंखों को ऐसे विज्ञापन ही नज़र आने लगे जिनमें पेट कम करने वाले अलग-अलग इक्विपमेंट के बारे में बताया जाता है,हमने भी सोचा आसान तरीका है एक बेल्ट का विज्ञापन देखा जिसे पहनने भर से कुछ ही दिनों में पेट कम हो जाता है हमने भी देखते ही इस आसान उपाय की शरण में जाने का फैसला किया और तुरंत ही उस प्रोडक्ट को आर्डर कर दिया पर इतने में कहाँ ये कम्बखत तोंद मानने वाली थी कुछ ही दिनों में समझ आ गया कि इस आसान उपाय की शरण में जाने से काम नही बनने वाला है ,पेट कम करने वाली कृपा कहीं रुकी हुई है,और सिर्फ और सिर्फ मेहनत मतलब सही डेली रूटीन और सही एक्सरसाइज करने से ही कुछ हो सकता है यही मन में संकल्प कर,
जैसे तैसे करके श्रीमान पतिदेव ने घर पर ही कुछ gym के इक्विपमेंट मंगवा कर विधिवत उनका पूजा पाठ करवा कर एक्सरसाइज करने का प्रण लिया,कसम खायी गयी कि अब तो कल से रोज़ इतनी एक्सरसाइज करनी है कि कुछ ही दिनों में सिक्स पैक एब्स निकल आएंगे और शर्ट लेस होकर घूमेंगे। पर हक़ीक़त तो इससे उलट ही होने वाली होती है आज सुबह जब अपनी खाई हुई कसम के अनुसार जल्दी सुबह उठकर कर घर के ऊपर वाले कमरे में रखे एक्सरसाइज इक्विपमेंट पर एक्सरसाइज करने के लिये आये तो थोड़ी देर ही हुई थी अपने बदन को एक्सरसाइज देते हुए अभी पसीने की कुछ बूंदे बमुश्किल शरीर से निकलने की तैयारी करने ही वाली थी कि अचानक नीचे से एक बेहद ही ज़हीन मगर रुबाब दार आवाज़ पति देव के कानों  में पड़ी अजी सुनते हो बहुत कर ली एक्सरसाइज अब नीचे आ जाओ बहुत काम है घर के पेट को फिर किसी दिन अंदर कर लेना वैसे भी अब पेट कम करने से कुछ होने वाला नही है,और एक बात तो बताओ किसे इम्प्रेस करने के लिए इतनी मेहनत कर रहे हो ? ये बातें हमारी श्रीमति जी के श्रीमुख से निकल रही थी और हमारे कानों में पड़ रही थी,है सब सुनकर दिमाग ये नही समझ पा रहा था, की ये पत्नियां आखिर चाहती क्या है ? पहले प्यार के कांटे पर चढ़ा कर पेट बाहर निकलवा दिया, ताकि दुनियां वाले ये ना कह पाए कि बेचारा पति शादी के बाद भी पेट अंदर करके जी रहा है मतलब पत्नी शायद ठीक से खयाल नही रखती, जब ये टारगेट अचीव कर लिया और पति की तोंद की ट्रॉफी दुनियां को दिखा दी, तो अब रोज़ बड़े हुए पेट को उंगली दिखा-दिखा कर ताने मारे जा रहे थे कि कैसे लगने लगे हो, पेट तो देखो मटका हो रहा है थोड़ा अपनी फिटनेस का ध्यान दो वगेरा वगैरह, अब जैसे तैसे पति बेचारा एक्सरसाइज शुरू करके पेट कम करने की कोशिश कर है तो अब उस पर उसे ताने सुनने पड़ रहे हैं कि कुछ नही होने वाला,उस पर और तो और शक भी किया जा रहा है कि किसे इम्प्रेस करने की कोशिश है ये ? अब इस औरत को कौन समझाये मेरे बच्चे की माँ पहले तू डिसाइड कर ले करवाना क्या चाहती है ? अब तो लगता है इसीलिए फिल्मी हीरो जल्दी शादी नहीं करते ताकि उनके पेट को बढ़ाने वाली न आ जाये,आप भी याद करके देखियेगा कहीं फैमिली प्रोडक्ट के विज्ञापन वाले फोटोज, या कार्टून में भी मिडिल क्लास शादीशुदा आदमी की फ़ोटो परिवार के साथ हो तो निकली हुई तोंद वाली ही दिखाई जाती है,वहां कभी किसी सिक्स पैक एब्स वाले को देखा है आपने।
इस अवस्था का मारा बेचारा पति अब readymade कपड़े लेने जाए तो पहले ही दुकानदार कह देते है आपकी निकले हुए पेट की वजह से सही नाप के कपड़े मिलना मुश्किल है,बेचारा करे भी क्या रेडीमदे कपड़ों को तोंद से जरा 2 इंच नीचे से कमर के सहारे पहनकर अपने शौंक को 'चलो अब ठीक है' कि संतुष्टि वाले विचार में बदलकर काम चल लेता है।
बेचारा हर रोज़ इस बड़ी हुई तोंद को रोकने और कम करने के लिए नुस्खे और उपाय कर रहा है, शायद कहीं कोई कारगर हो जाये,पर ये कम्बख्त कम होने का नाम ही नही ले रहा है,उल्टा बढ़ता ही जा रहा है,ऊपर से कभी वर्जिश कर कोशिश कर रहा हूँ तो पत्नी उल्टा शक करने लगती है की हाय-हाय ये मेहनत किसके लिए कर रहा है।
सोचता हूँ शायद कहीं कोई कुछ तरकीब काम आ जाये तो फिर हम भी जीवन में कभी शर्ट लेस होने का सौभाग्य उठा सकें। पर जनाब ये भी मुंगेरीलाल के हसीन सपने की तरह है बाकी तो आप समझदार ही है सो समझ जाइये, और हां अगर आपका पेट भी निकल कर तोंद बनने जा रहा है,तो संभल जाइए कहीं देर न हो जाये।

Friday 20 January 2023

अर्धांगनी

स्वाति बिन संयोग कैसा,बन सकेगा इस काल में।

गर मांझी मैं तो नाव हो सनम तुम,
साथ बहती मझधार में।
स्वाति तुम एक नक्षत्र मेरी,

कुंडली का प्यार हो।
जीना तुम बिन एक पल संभव नही,
चाहे युद्ध हो या तकरार हो।
तकरार बिन फिर प्यार कैसा,
जो भी हो बस तुम्हारे साथ हो,
अगर हो इक पल तकरार का तो
चार पल फिर प्यार हो।

रिश्ता हो तो,ऐसा हो दिलबर,
जिसपर दिल को नाज़ हो,
कल तक था जितना भरोसा।
उससे ज्यादा आज हो।

लाभ-हानि,गम और खुशियां
ज़िन्दगी के योग संयोग हैं,
जो न हो नक्षत्र स्वाति तो,
फिर कैसे मिलन का संयोग है।

शब्द अर्पित,भाव अर्पित,
जीवन का हर अर्थ समर्पित,
स्वप्न अर्पित,मान अर्पित,
जीवन का हर क्षण समर्पित,
तुम कहो और मैं सुनु,
बिन कहे सब तुम जान लो,
तर्क-वितर्क की जगह न हो,
जो तुम कहो स्वीकार है।
हर कसम हर रस्म मुझको,
संग तेरे स्वीकार है,
मुस्कुरा दो,सनम तुम जो इक पल,
पल वही गुलज़ार है।












Tuesday 27 December 2022

उपहार... !

उपहार... ! 

वो कहते हैं न,अथिति देवो भवः,हमारे CULTURE में एक दिलचस्ब सा रिवाज़ है,जब भी कभी किसी के घर पर मेहमान बनकर जाते है,या हमारे घर पर मेहमान के तौर पर आते हैं,तो मेजमान मेहमान की आव भगत बड़ी ही धूम धाम से करता है,,हर घर में आने वाले मेहमान का स्वागत सत्कार कुछ से तरह किया जाता है,जैसे कोई उत्सव हो,कुछ इस तरह ही तो पकवान बनते है, घर में ख़ुशी का माहौल होता है,पिछले दिनों हमारे पडोसी के घर पर कुछ मेहमानों का आना हुआ,मैं भी अपने घर के बाहर खड़ा ठण्ड के मौसम में धुप का आनंद ले रहा था और साथ ही हमारे भी पड़ोसियों से सम्बन्ध काफी प्रगांढ़ होने की वजह से उन्होंने उनके घर आये हुए मेहमानों से हमारा भी तार्रुफ़ करवाया गया,कुछ देर रूककर वो मेहमान जब विदा ले रहे थे,तो मैं भी उस समय बालकनी में बैठा अखबार पढ़ रहा था,तभी मुझे उन लोगों के बीच किसी बात पर सहमति और असहमति के वार्तालाप होने का एहसास हुआ,लगा की जैसे किसी बात पर ARGUMENT चल रही है सो मेरा ध्यान अनायास ही उन लोगों की तरफ चला गया,वैसे एक बात कहूँ हमारे यहां एक अच्छा पडोसी होने के लिए एक गुण होना अति आवश्यक होता है,की पडोसी के घर में क्या चल रहा है,इस के बारे में हर व्यक्ति को जानकारी खुद के घर में क्या चल रहा है से ज्यादा होती है,मतलब ताका-झांकी में निपुणता अत्यंत की आवश्यक गुण है,एक अच्छे पडोसी में,क्या हुज़ूर ? कहीं इस लाइन को पड़ते हुए आपको अपना पडोसी तो याद नहीं आने लगा खैर ईमानदारी से कहूँ मेरी यहां ऐसी कोई नियत नहीं थी,वो तो उन सभी से मुझे थोड़ी देर पहली ही मिलवाया था,सो उन पर मेरा ध्यान चला गया,मैं यहां  अपने शरीफ होने की कोई सफाई नहीं दे रहा हूँ,खैर छोड़िये कहाँ मेरा किस्सा शुरू कर रहा हूँ,जिनका आज जिक्र है उन्हीं के किस्से पर फोकस अर्थात रौशनी डालते हैं,जो मेहमान आये थे उनके साथ दो बच्चे भी थे,आमतौर पर हमारे समाज में एक प्रथा है की जब कभी भी हमारे घर पर कोई मेहमान आते हैं,तो कभी उन्हें खाली हाँथ विदा नहीं करते हैं,खासकर जब कभी कोई हमसे छोटा आये जैसे ये २ बच्चे तो इन्हे कोई न कोई उपहार जरूर दिया जाता रहा है,वक़्त के साथ स्वरुप बदलते रहते हैं,सो इस प्रथा का भी स्वरुप बदलता गया और आज कल कई लोग अपनी सुविधा अनुसार पैसे दे दिया करते हैं,सो मेरे पडोसी जिनके यहां वो मेहमान आये थे,उन्होंने भी उन् दोनों बच्चों को कुछ पैसे दिए जिन्हे इन बच्चों ने ख़ुशी-ख़ुशी स्वीकार कर लिया,क्यूंकि बच्चे बहुत छोटी उम्र के थे,सो उनके माता पिता ने बच्चों से ये आग्रह किया की वो पैसे उन्हें दे दें,नहीं तो कहीं गिर जाएंगे पर बच्चों को लगा की पैसे उनके हैं और उनपर उनका ही हक़ है और उनके ही पास रहना चाहिए,इस वाद विवाद ने बड़ा रुप ले लिया और तैश में आकर पिता ने उन्हें डांट दिया,जिस पर प्रतिक्रिया देते हुये बच्चे ने भी रुआंसा सा मुँह बनाकर कहा आप हमेशा मेरे पैसे ले लेते है,वापस नहीं करते,इतना बोलने के बाद वहां पर शान्ति सी छ गयी थी हर कोई निरुत्तर सा रह गया था,पर यहां के घटनाक्रम को ज़रा नज़दीकी तौर पर देखने की जरूरत है,तो आइए साहबान ज़रा नज़दीक से दीदार करते है जो उस कुछ यहां घटा उस परत दर परत इस पूरे घटनाक्रम में पिता का सोचना भी सही था की बच्चे उम्र में बहुत छोटे है  और छोटे बच्चे के पास इतने ज्यादा पैसे उचित नहीं है,अगर कहीं गिर गए तो बर्बाद हो जायेंगे या बच्चे ने उन पैसों का गलत उपयोग कर लिया तो उसकी आदतें बिगड़ सकती है,और बच्चों का सोचना भी सही था की ये रुपये उन्हें उपहार स्वरुप मिले हैं,तो वो उन्हें अपने पास रख सकते हैं,तो क्या इस समस्या की जड़ क्या हमारे पडोसी थे? जिन्होंने वो उपहार स्वरुप पैसे बच्चे को दिए थे,पर वो भी तो समाज का कायदा और अपना फर्ज ही तो निभा रहे थे जिसमें विदा होते समय बच्चों को उपहार स्वरुप कुछ दिया जाना चाहिए था,और उन्होंने वही तो किया,तो साहिबान सवाल उठता है कि तो इस सब में गलत कौन था या सही मायने ढूढ़ने की कोशिश करें तो सही सवाल होना चाहिए की गलत क्या था? क्या पडोसी का दिया गया उपहार गलत था ? न जी न, गलत था उनका उपहार के स्वरुप में बच्चे को पैसे देना वो भी इतने ज्यादा की जो उस बच्चे के कद,समझ और उम्र से कहीं ज्यादा और बड़ा था,तो अब बात आती है कि करें क्या? तो हाल भी समस्या की जड़ में होता है,उपहार दीजिये पर पैसे ही क्यों?ज़रा सा सोच कर देखिये क्या पैसे ही देना ज़रूरी था? क्या उपहार में पैसे के अलावा कुछ और नहीं दिया जा सकता था,जो उस बच्चे के उम्र और समझ के हिसाब से सही होता और उसके काम भी आ सकता,जिस की उपयोगिता उस बच्चे के दैनिक जीवन में होती,जैसे उसे पेन-पेंसिल का सेट उसे दिया जा सकता था,जो उसके बेहद काम की चीज है,कोई अच्छी सी किताब,किसी महापुरुष की जीवनी जिसे पढ़कर वो प्रेरित होते साथ ही चरित्र निर्माण भी करने में मददगार होता।  उपहार देना महत्वपूर्ण है,पर उपहार में पैसे ही दिया जाना जरूर तो नहीं,उपहार के महत्त्व को पैसों में तोलना कहीं न कहीं अनैतिक है और उचित भी नहीं,उपहार प्रेम और आशीर्वाद स्वरुप दिए जाते हैं,पैसे मतलब धन स्वरुप नहीं, तो हमेशा उपहार को पैसों के साथ नहीं प्रेम भावना स्वरुप रखना चाहिए,कई बार इस तरह के रिवाज़ मेज़वान को भी आर्थिक बोझ में दबा देते है और यदि उनका आर्थिक सामर्थ्य उन्हें इस बात के लिए साथ नहीं दे पाती तो कई बार खुद,रिश्तेदार और मित्रों के सामने शर्मिंदगी का अनुभवों से भी दो चार करवाती है तो अगली बार जब भी किसी मेहमान को विदा करते है तो उसे उपहार में कुछ ऐसा दें जो उसके काम में आये और आपके प्रेम से ओत-प्रोत भावना को भी परभाषित कर सके और साथ ही जब भी आप कहीं मेहमान बनकर जाएँ तो विदा लेते समय ऐसे पैसों के लेन-देन वाले व्यवहार से बचे । तो अब से उपहार में पैसे नही प्यार बांटिए।

Thursday 15 December 2022

ज़बान संभाल के ...........!

 

ज़बान संभाल के .....!

आज एक करीबी मित्र के घर जाना हुआ,ये मेरे बचपन के साथी हैं,जिनके घर आने जाने के लिए मुझे तकलुफ्फ या कोई फॉर्मेलिटी की जरूरत नही है। जिंदगी में कुछ ऐसे खास दोस्तों का होना जरूरी है,और अगर आपके पास है तो नेमत है ऊपर वाले की,जिनसे आप बिना APPOINTMENT लिए भी मिल सकते हैं,और ऐसी बातें कर सकते हैं जो स्वार्थ,काम और नफा-नुकसान से कोसो दूर हों। इस शाम की शुरुआत हम दोस्तों के बीच यारों वाली गपशप से हुई, भाभी जी ने भी गर्मा-गर्म चाय के साथ पकोड़े बना दिये,सो हमारी तो चांदी हो गयी कि चाय के साथ गर्मा-गर्म पकोड़े हा हा हा….. मज़ा गया था, बातचीत चालू थी साथ में अब बैठक में हमारी २ और सदस्य जुड़ गए थे, मेरे मित्र की धर्मपत्नी जी यानी मेरी आदरणीय भाभी जी और साथ ही उनका 5 साल का बेटा जिसे हमारी बातचीत में तो नहीं, पर हाँ वहां मेज़ पर रखी हुई पकोड़े के प्लेट में जरूर INTEREST था, हमारी बातें चाय की चुस्की और पकोड़ों के साथ आगे बढ़ रही थी,माहौल बहुत ही खुशनुमा बन गया था, हो भी क्यों न जब सामने हमारे अपने हों तो बातें दिमाग से नहीं दिल से होती है I

बातचीत का दौर चालू था,साथ ही पकोड़े का भी,पास ही मेरे दोस्त का 5 साल का बेटा वो भी पकोड़े का आनंद खेलते हुए ले रहा था, हमारे मित्र को बहुत सारी अच्छी आदतों के साथ एक बुरी आदत भी लगी हुई है,उन्हें बातचीत के दौरान किसी भी आवश्यक हो या अनावश्यक बात पर बीच-बीच में गाली गलौच का उपयोग करने में महारथ हासिल है,जैसे कभी हाँथ से मोबाइल या चाबी गिर जाए तो तुरंत मुँह से "कुत्ता, कमीना, हरामखोर….. आगे बस लिख नही सकता आप बस भावनाये ही समझ कर काम चला लें, क्योंकि हमारे तथा-कथित सभ्य समाज में निर्जीव चीज के लिए भी प्रयोग की जाने वाली भाषा मुह से तो कुछ भी कहने की अज़ादी है पर लिखने की आज़ादी नही है उसे उछलता माना जाता है,खैर आप सभी तो समझने में उस्ताद हैं,तो बस समझ जाइये खैर अब आगे बढ़ते हैं,और हमारे मित्र उन्हें ऐसा करते हुए याद भी नही रहता ही कभी उन्हें इस बात का कोई गिला मलाल हुआ, वो तो बस यूं ही बहते हुए बातों में कह दिए जाते थे,कई बार उनके साथ महफ़िलों में शरीक़ हम जैसे मित्रों को उनके इस आज़ादी से भरे उन्मुक्त व्यवहार से असहजता का सामना करना पड़ा है,चलिए हम तो फिर भी मित्र ठहरे सो ठीक,कई बार उनकी धर्मपत्नी को भी शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा,पर हमारे मित्र को टोके जाने पर भी उन्हें कभी अपना इस तरह का शब्द प्रयोग गलत लगा,आज जब हम उनके घर पर बैठकर पकोड़े के आनंद ले रहे थे,तब भी वो किसी किसी बात पर गाली का प्रयोग पकोड़े में चटनी की तरह लगा कर रहे थे,बात करते-करते उन्होंने TV का रिमोट उठाया और चैनल बदलने लगे शायद रिमोट के सेल कुछ कमजोर लगे थे या उसमें कोई समस्या थी सो एक दो बार बटन दबाने पर  भी जब रिमोट चला सो उन्होंने बाकायदा अपनी आदत अनुसार रिमोट को भी एक-दो जुमलेदार गालियां "साला हरामखोर आगे बीप बीप बीप सेंसर है भाई लोग" सो समझ जाएं,मैंने उनके हाँथ से रिमोट लिया और उसके सेल को निकाल कर फिर से अच्छे से लगा दिया तो रिमोट चलने लगा,फिर मैने उनकी तरफ मुस्कुरा कर देखा और कहा अरे यार सेल ढीले हो गए थे बस,क्या तुम भी गालियां देने लगे... उन्होंने मेरी बात को उन्ह... कहकर उड़ा दिया हमेशा की तरह,तभी पास में  खेल रहे उनके बेटे के खिलौने वाली गाड़ी जो कि रिमोट से चला कर खेल रहा था, उसके रिमोट में शायद कुछ दिक्कत आने लगी थी वो लगातार उसके बटन जोर से दबा कर उसे चलाने की कोशिश कर रहा था पर शायद कामयाबी नही मिल रही थी, तभी उसने भी उस रिमोट को जोर से हांथों पर मारते हुए अपनी तोतली भाषा में कहने लगा "छाला भोछलिका" चल नही रहा.....उस नन्हे बच्चे के मुह से निकले इन शब्दों ने कमरे में सन्नाटे का बम फोड़ दिया मैं,मेरे मित्र और उनकी धर्म पत्नी तीनों एक दम सन्न रह गए थे,कुछ पल के सन्नाटे के बाद एका एक भाभी जी बच्चे पर बरस पड़ी क्या बकवास कर रहे हो? कैसी बात बोलते हो? कहा से सीखा ये सब बगैरह-बगैरह बच्चा बड़े ही भोले पन से उनकी इस डांट को सुन रहा था या कहूँ तो समझने की कोशिश कर रहा था,उसने ऐसा क्या कर दिया जो इतनी बरसात हो गयी डांट की,भाभी जी बस बरसती ही जा रही थी तभी मेरे मित्र ने भी गुस्से से कहा बोलो बेटा मम्मी कुछ पूछ रही है,उस 5 वर्षीय अवोध बालक ने बड़े ही मासूमियत से जवाब दिया पापा का जब भी रिमोट नही चलता तो पापा भी तो ऐसे ही कहकर रिमोट को ठीक कर लेते हैं, उसका इतना सा कहना था और मेरे मित्र का चेहरा शर्मिंदगी से नीचे हो गया,उस कमरे का माहौल अब कुछ अजीब हो चला था,सो मैंने बच्चे को उस कमरे से जाने को कहा और बाहर जाकर आंगन में खेलने को कहा,बच्चे के जाने के बाद मेरे मित्र की पत्नी का गला रुंध से गया और वो अपने पति देव पर बरस पड़ी कितनी बार कहा है इस तरह से बातों में गाली गलौच का प्रयोग मत किया करो,पर आप कभी किसी की नही सुनते हैं,आप घर में जब चाहें छोटी-छोटी बातों पर ऐसा करते रहते हैं,यह भी याद नही रखते की आस-पास बच्चे हैं,मेरे मित्र के झुके हुए सर के साथ मुह से सिर्फ इतना ही निकला कि सॉरी आज के बाद दोबारा ऐसा नही होगा,उन्होंने मुझसे भी माफी मांगी क्योंकि कुछ पल पहले ही मैंने भी उन्हें इसी आदत के लिए टोका था,उस दिन से मेरे मित्र ने इस आदत से तौबा कर ली।

साथियों ऐसे कई सारे लोग हमारे आस-पास हैं,शायद हमारे घर में भी है या हो सकता है इस आदत के शिकार आप और हम भी हों क्योंकि बुरी चीजे कब आदत बन जाती है पता नही चलता और गाहे-बगाहे हम और हमारे परिवार जन और मित्र गण असहजता और शर्मिंदा से दो-चार होते हैं,परिवारजनों और खासकर बच्चों और अपने अनुजों के सामने अपने व्यवहार और बातचीत को बहुत ध्यान में रखते हुए प्रयोग में लाना चाहिए,क्योंकि हमारे छोटे हमें बहुत अधिक फॉलो करते हैं,आप माने या माने आप और हम यदि घर परिवार और आस-पड़ोस में बड़े हैं तो अपने से छोटों के लिए हम रोल मॉडल ही होंगे, वो जिसे वो सबसे पहले देखकर सीखने की कोशिश करते हैं,अब ये हम पर निर्भर करता है,कि हम उन्हें अपनी शख्सियत की कौन-सी तस्वीर पेश करते हैं, तो अपने व्यवहार,विचार और अभिव्यक्ति को कुछ ऐसा बनाइये ताकि वो आपके व्यक्तित्व को तो संवारे ही,साथ-साथ उस की खुशबू से और भी कोई देखकर सीखकर महक सके क्योंकि शायद कहीं आपको भी पता चले की कोई आपसे बहुत कुछ सीख रहा है,तो अगली बार जब कहीं बोले तो ज़रा ज़बान संभाल के.....!