Friday 20 September 2019

"हसरतें कुछ अनकही सी"---🙂🙂🙂

"हसरतें कुछ अनकही सी"---

की हो मुमताज तुम मेरी,मैं हूँ शाहजहां तेरा,
की मैंने दिल के कोने में,एक ताजमहल बनाया है,
की आ भी जाओ अब तुम,और न मुझको तड़पाना,
की इंतेज़ार में तेरे अबतलक जिरागों को जगाया है,
की हर मूरत वो है जिंदा,जिन्हें तुमने बनाया है,
वरना रूहे ए इंसान भी,तेरे बिन पत्थर की काया है,
मैं हूँ आशिक नही कहता,पर तुम अरदास हो मेरी,
खुदा ने सुनकर दुआ मेरी ,मुझे तुझसे मिलाया है,
वो सुरमा तेरी आँखों का,मेरी आँखों में बसता है,
की दिल के हर इक हिस्से में, हर पल तुझको पाया है,
शरीक़ हो तुम हर हिस्से में, और हर हिस्सा तेरा सरमाया है
ग़ज़ल हो मेरे ख्वाबों की,तू मेरी हसरतों का साया है,


Tuesday 10 September 2019

"भाभी -रिश्तों अपनों का अपनों से"

"भाभी -रिश्तों अपनों का अपनों से"
जब आपके कदम पड़े थे चौखट पर पहली बार
तब मैंने देखा आपको पहली बार,
लगा मानो कोई अपना आ गया समेटे दामन में,
बड़ों के लिए आदर,और छोटों के लिये स्नेह और प्यार,
मैं तो था सबसे छोटा परिवार में,
अबोध अपनी समझ और उम्र में,
था अनजान की देवर-भाभी का रिश्ता क्या होता है?
इस जग में,
पर तुमने इस छोटे प्यारे देवर पर खूब स्नेह लुटाया,
तेरे ममता के आंचल से ममता प्रेम बहुत है पाया,
परिवार का तुम मान हो,सम्मान हो,
और कुटुंब का अभिमान हो,
आदर्श हो हर उस मूर्ति का और,
वत्सल रूप चरितार्थ हो,
मैं हूँ तेरा देवर पुराना, न भूल से भी रूठना,
जो हो भूल से भी भूल मुझसे,प्यार से मुझे डाटना,
न बदला है ना बदलेगा,
न टूटा है और न टूटेगा,
रिश्ता हमारे बीच का अखण्ड शाश्वत सत्य है यह,
उस स्नेह और अपनेपन की डोर का,
यूं ही बना रहेगा सदा ये पावन,
मेरे जीवन की अंतिम स्वांस तक,
ये है वचन ,मन और कर्म से ,
तेरे इस नटखट देवर का।