Friday 2 June 2017

जाने कहाँ गए वो दिन ???

जाने कहाँ गए वो दिन ???
‌आखिरी बार कब आपने अपने घर की  या मुहल्ले की गली में बच्चों को गिल्ली डंडा,कंचे, पिट्टू या लंगड़ी जैसे खेल खेलते हुए देखा था,शायद आप भी ये ना बात पाएं क्योंकि आज बच्चों के हांथों में पतंग की डोर और गिररी नही स्मार्ट फ़ोन्स होते है ।आज बच्चे अपने दोस्तों को बुलाने के लिए उनके घर जाकर आवाज़ नही लगाते। वो आज कल के तथाकथित "टेक्नोलॉजी युग के बच्चे " कहलाते हैं और अपने दोस्तों को बुलाने के लिए स्मार्ट फ़ोन्स के ज़रिए व्हाट्सएप्प पर मैसेज करते हैं । अब लूडो, सांप सीडी के खेल भी मोबाइल पर अनजान लोगों के साथ ऑनलाइन खेले जाते हैं।आज  माँ-बाप इस बात को लेकर खुश होते हैं,कि उनका बच्चा प्लेस्टोर से कौन सा  लेटेस्ट वर्ज़न का गेम खुद डाउनलोड कर लेता है और कितनी जल्दी मोबाइल या गैजट्स चलाना सीख रहा है । बल्कि इस बात के उनका बच्चा कितनी जल्दी बोलना या चलना सीख रहा है।कितना हस्ययस्पद लगता है,ये देखकर की माता पिता ये देखने में ज्यादा रुचि लेते हैं कि उनका बच्चा ऑनलाइन गेम में साईकल चलाना सीख गया जो कि वास्तविकता से बहुत दूर है । बचपन की चंचलता न जाने कहाँ गुम होती जा रही है । गर्मी की छुट्टियों में अपने दोस्तों के साथ घण्टों खेलना ,सूरज डूबने के बाद भी लगातार क्रिकेट जारी रखना ,वो छुपन-छुपाई के कोने आज अपने बचपन के साथी के बिना सूने लगते हैं,वो लंगड़ी के चौखाने नन्हे कदमों का इंतज़ार करते हैं,वो पतंग की डोर किन्ही नन्हे हांथों का इंतज़ार कर रही है कोई आये उन्हें थामे और आज फिर पतंग आसमाँ में मस्ती से उड़ सके, पिट्टू की गेंद और उसके पत्थर अपने गिरने और बनने का इंतज़ार कर रहे हैं।राजा,मंत्री,चोर, सिपाही की पर्चियां आज बंद पड़ी है और अपने खुलने  का इंतज़ार कर रही है। ये सब किसी कोने में शायद पड़े हैं और इंतज़ार कर रहे हैं,शायद आज फिर कोई बचपन की कोपल,कोई नन्हे कदम इनकी ओर बड़े और फिर गुलज़ार कर दें उस बगीचे को,जिसका हर एक पेड़ इनके बिना सूखा और बेजान पड़ा है। पर इस सबका जिम्मेदार कौन है ,शायद आज कल के माता पिता ही कहीं न कहीं इसके लिए कुसूरवार हैं ,आज जरूरत है,माता पिता द्वारा एक सकारात्मक कदम बढ़ाने की ,अपने बच्चों को सकारात्मक ऊर्जावान और मासूमियत से भरा बचपन जीने की ओर अग्रसर करने की जिसमें असलियत हो,न कि किसी काल्पनिक दुनिया की कृतिम कृति के धोखे की । यहां मैं ये नही कहता कि बच्चों को टेक्नोलॉजी से दूर रखा जाए ,पर जैसे हर ऋतु का अपना एक समय निश्चित होता है बारिश का असली मज़ा गर्मियों की कड़ी धूप सहने के बाद ही आता है । उसी तरह अपने बच्चों को उस समय गैजेट और स्मार्ट की उपलब्धता करानी चाहिए जब  वो इसकी उपयोगिता की परिभाषा से भलीभांति परिचित हों । समय से पहले तो यदि आम भी पेड़ से तोड़ लिया जाए तो खट्टा लगता है,तो कैसे माता पिता सिर्फ अपने  सामाजिक सरोकार की संतुष्टि के लिए शिक्षित होते हुए भी घोर अज्ञानता का परिचय देते है। समय से पहले बच्चों से उनका निश्छल बचपन न छीने ,उन्हें समय के साथ उड़ने का एक मौका तो दीजिये ,फिर देखिये उनकी असीमित उड़ान को , ठीक उसी तरह जो कभी आपके मां बाप ने आपको दी थी ।और हां कभी अपने बच्चों के साथ खेलिये और समय दीजिये यकीन मानिए आपको भी बहुत अच्छा लगेगा और आप भी अपने बचपन के  दिनों को याद कर पाएंगे।
‌मज़ा आएगा...........