Monday 21 February 2022

“ ‘म’ से मेहनत या मांगना चुनाव आपका”

“ ‘म’ से मेहनत या मांगना चुनाव आपका”


ज़िन्दगी के सफ़र में कई बार कुछ ऐसे छोटे-छोटे पड़ाव मिल जाते हैं,जिनसे हम परिचित तो होते है,पर शायद अंतर मन तक नॉक-नॉक की आवाज़ उन्हीं कुछ पड़ाव की वजह से आ जाती है,कल रेलवे स्टेशन से अपनी ड्यूटी से रोज़ की तरह आना हो रहा था,रोज़  का यही रास्ता,यही रूटीन,कुछ नया नही,इस आने-जाने वाले रास्ते में ना जाने कितने ही अजनबी चेहरे रोज़ दिखते हैं,पर शायद ही कभी कुछ याद रह जाता है,उस दिन भी रोज़ की तरह घर की तरफ आ रहा था,रास्ते में एक रेलवे गेट क्रासिंग पड़ती है,आते-जाते वक़्त कभी-कभी ट्रेन के आने-जाने की वजह से कभी-कभी बंद मिलता है,थोडा ठहरना पड़ता है इंतज़ार में,irritating होता है पर क्या करें ? इंतज़ार तो करना ही पड़ता है ट्रेन के गुजरने का,और गेट के खुलने का,उस दिन भी रोज़ की तरह घर आने को ऑफिस से निकला,ऑफिस से निकलते वक़्त भी यही सोच रहा था की गेट बंद मिलेगा या खुला,यही ख्याल करते हुए गाडी रेलवे क्रासिंग की तरफ बढ चली और उस दिन भी गेट बंद मिला चिडचिड से दिमाग में ड्रम बजने लगे की कभी तो खुला मिला ये कम्बखत गेट,खैर गाडी रोकी और गेट खुलने का इंतज़ार करने लगा जैसे बाकी भीड़ कर रही थी,पर शायद वो शाम कुछ अपने अन्दर समेटे हुए मेरे लिए कुछ खास देने वाली थी,तभी गेट पर मेरे करीब आकर एक गाडी और रुकी जैसे बाकी गाड़ियाँ रुक रही थी,पर उस गाडी पर कोई खास सवार था मेरा एक बहुत ही पुराना दोस्त राहुल,जिससे कई साल से मुलाकात नही हुई थी,उसने ही मुझे कुछ महीने पहले सागर आने पर काल किया था मैंने भी मिलने का वादा किया था पर मिल नही पाया,आज इस शाम इस जगह मुलाकात शायद कुदरत ने लिख दी थी,तभी तो गेट आज भी बंद मिला था,देखकर बहुत ख़ुशी हुई हम दोनों मिले गले लगे बड़ी ही गर्म जोशी से,हालचाल पूछे और दोस्ती वाली जानदार और शानदार बातें शुरू हुई और पुरानी बातें की पोटली खुलने लगी,बातों ही बातों में बार-बार बंद रेलवे गेट की तरफ जा रही थी की कब खुलेगा यह गेट,आज कुछ ज्यादा ही वक़्त लग रहा था,शायद आज राहुल से मिलने के अलावा और भी कुछ था जो उस शाम की पोटली में मेरे लिए रखा था,गेट खुलने का इंतज़ार और राहुल से पुरानी यादों पर बात,दोनों जारी थी,आसपास एक-दो मांगने वाले भिखारी भी लोगों से कुछ-कुछ मांगने में लग गए थे शरीर से अच्छे खासे तगड़े थे पर फिर भी मांग रहे थे,शायद काम करके खाने में इनका विश्वास नही था, तभी अचानक एक लड़का हमारे पास आया उम्र शायद ज्यादा नही थी,शायद पोलियो ग्रस्त था क्योंकि पैर की वजह से ठीक से नही चल पा रहा था, करीब आकर बोला भैया अगरबत्ती लेंगे बड़ी ही अच्छी खुशबू वाली है,दाम में कम और असर में ज्यादा ले लो न,उसकी ये बातें कान में पड़ी तो सही पर रेगुलर फेरी वाला समझ कर ignore किया बस इतना ही कहा की नही लेना भाई,वो लड़का भी शायद इस बंद गेट पर जमा भीड़ में अपने ग्राहक तलाश रहा था,मेरी बात सुनकर वो आगे बड़ गया और लोगों को अपनी अगरबत्ती बेचने की कोशिश कर रहा था,उसे ignore कर मैं और राहुल अपनी यारी की बातों में लग गए,गेट अब भी बंद ही था,और हमारी बातचीत जारी,मिले भी तो कई दिनों के बाद थे,कुछ देर के बाद घूम फिर कर वो अगरबत्ती वाला लड़का वापस आ गया,अपनी उसी energetic आवाज़ में फिर से कहा भैया अगरबत्ती लेंगे बड़ी ही अच्छी खुशबू वाली दाम में कम और असर में ज्यादा ले लो न इस बार में उसे चाह कर भी ignore नही कर पाया,पुछा कितने की है छोटे भाई उसने कहा 1 पैकेट 40 रूपये का और अगर आप 3 लेंगे तो 100 रूपये के दे दूंगा उसका कॉन्फिडेंस गजब का था,मैंने उसे 100 का नोट दिया और 3 पैकेट अगरबत्ती के ले लिए,वो आगे बढने लगा मैंने पुछा भाई पढाई करते हो या सिर्फ ये काम करते हो? हाँ भैया अपनी पढाई भी करता हूँ और साथ-साथ यह काम भी,पढाई का खर्च निकल आता है,जब “ऊपर वाले ने मेहनत करने के लायक हाँथ बनाये हैं तो इनसे माँगना क्यों” इतना कहते हुए वो मुस्कुरा दिया और आगे बढ चला अपने अगले ग्राहक की तलाश में और अपनी मेहनत की अगरबत्ती से किसी और का घर महकाने.

उसकी इस  एक लाइन ने हमारे मन में उस दिन वो नॉक-नॉक की अवाज़ की और पुरजोर तरीके से ये सोचने और इस तरीके पर सवाल उठाने पर मजबूर कर दिया की कई ऐसे लोग है जो हट्टे-कट्ठे हैं पर फिर भी मांग कर खाना पसंद करते हैं,मांग कर ज़िन्दगी जीना उनकी जरुरत नही आदत बन गयी है,और कहीं न कहीं ऐसे लोग हमसे टकराते ज़रूर हैं चाहे वो कोई पब्लिक प्लेस हो,बस स्टैंड हो,रेलवे स्टेशन हो या कोई पब्लिक पार्क हो,कभी अपने शब्दों में किसी भगवान् के नाम का वास्ता देते हैं तो कभी “GIVE & TAKE OFFER"  की तरह आपकी दी हुई भीख देने के बदले में आपके काम बनने की दुआ देने की बात कहते हैं,मुद्दा यहाँ ये नही की क्या हम किसी की मदद करना बंद कर दें? बिलकुल नही,करिए बिलकुल करिए,पर मदद करिए उनकी जिन्हें वाकई जरुरत है,अगर कोई अपने आत्मसम्मान की ताक़त से मेहनत के बल पर कुछ करना,कमाना चाहता है तो उनके वो सामान कभी कभार ले लिया करिये,ऐसे लोगों को काम दीजिये जिन्हें मान मेहनत कर कमाना पसंद है न की मांग कर.कोशिश कीजिये शायद आपके कदम किसी की सोच और प्रयास आपके आसपास और दूसरों के अन्दर बदलाव ले आयें.