Monday 24 February 2020

बचपन या मोबाइल?.........चुनाव आपका


बचपन या मोबाइल?.........चुनाव आपका

पिछले कई दिनों से एक अजीब सन्नाटा सा पसरा है,मेरे,हमारे,हम सबके मुहल्लों की गलियों में,घर की छतें भी सूनी पड़ी हैं अजीब-सी खामोशी है, पता किया तो जानकारी मिली की मुहल्ले के बच्चे खेल रहे हैं,मैंने पूछा कहाँ खेल रहे है,पास वाले मैदान में ? तो कहा,नहीं तो फिर आश्चर्य से मैंने पूछा कि कहा खेल रहे हैं भाई?,तो बताया गया,कि कमरे में बैठे सब खेल रहे हैं,तो मुझे लगा ऐसा क्या खेल रहे हैं,कि आवाज़ भी नही आ रही हैं और खेल चल रहा है,उत्सुकतावश मैं उस कमरे की तरफ बढ़ चला,जहां बच्चे खेल रहे थे,देखा तो पाया की बच्चे मोबाइल पर सभी अपनी-अपनी जगह बैठे थे,और लगे थे मोबाइल पर खेल को खेलने मेंयह नजारा कोई अजीब या खास नही, जो मैंने यहां आप लोगों के साथ शेयर कर रहा हूं,कहीं ना कहीं आप लोगों ने भी यह नज़ारा अपने घर के आसपास अधिकांश देखा होगा। यह एक आम नजारा हो गया है,जो कहीं ना कहीं हम सब के आसपास बच्चों के बचपन में अपनी जगह बनाता और  पैर पसारता जा रहा है। मैं यहाँ यह नहीं कहना चाहता,कि वह जमाना अच्छा था,यह जमाना अच्छा हैं या वह खराब था या यह खराब है। पर कहीं ना कहीं मोहल्लों में बच्चों की वह अठखेलियां गुम होती जा रही है,गर्मी की छुट्टियों में बच्चों का गलियों में क्रिकेट खेलना,गिली-डंडा खेलना,कंचे खेलना,छत पर पतंग उड़ाना यह सब कहीं ना कहीं गुम होता जा रहा है। कभी कहीं कुछ माता-पिता इस बात को लेकर खुश होते थे, या कहूं,होते होंगे या होना चाहिए कि उनका बेटा या बेटी फलाँ खेल में या एक्टिविटी में अच्छे है,गिटार अच्छा बजाते है,हारमोनियम अच्छा बजाते है,गाना अच्छा गाते,या कोई खेल अच्छा खेलते है। यह बात अब सुनने को कम मिलती है,पेरेंट्स अब इस बात पर ज्यादा खुश होते हैं कि मेरा बच्चा मेरा लाल गोपाल जो हैं वो मोबाइल बड़ा जल्दी unlock कर लेता है,अपने आप से mobile का उपयोग कर लेता है,वो मोबाइल पर गेम खेल लेता है।आज  माता-पिता या बड़े,बच्चों को दोष देते हैं,बड़ी ही आसानी से कह देते हैं की “ये आज कल के बच्चे.........”,सिक्के के दूसरे पहलू को भी देखिए जनाब,कहीं ना कहीं यह गलती माता-पिता और बड़ो की भी तो है,जो आज बच्चों की इस बात को तरजीह ज्यादा देते हैं,कि उनके बच्चे ने अपने पैरों पर चलने से पहले मोबाइल चलाना सीख लिया। बोलने से पहले टीवी पर रिमोट से चैनल बदलना सीख लिया,लोगों के सामने बड़े  चाव से शेखी बघार के सुनाते हैं।एक पुरानी कहावत है,कहते हैं कि “बच्चों की पहली पाठशाला घर में होती है”।अंदाजा लगा लीजिए पहली पाठशाला में उसके अभिभावक उसे किस रोल के लिए शाबाशी दे रहे हैं। जरा अंदाजा लगाइए कभी आपसे कोई यह पूछे कि आपका बच्चा किस चीज की hobby रखता है? तो आप बताएं कि वह मोबाइल चलाने की हॉबी रखता हैं,तो कैसा अटपटा लगेगा, पब्जी खेलने में एक्सपर्ट हैं या कभी यह बताएं कि वह किसी एप को चलाने या ऐप खोलने में एक्सपर्ट है, तो कितना अजीब लगेगा,कौन सा गेम खेलता है? और आप यह कहे कि मोबाइल में गेम खेलने में एक्सपर्ट हैं,तो कितना अजीब लगेगा। कभी आपने अंदाजा लगाया कि आपको बचपन में जो चीज़े और गेम खेलने के लिए मिला करते थे,वो जाने अनजाने आपको ना जाने ज़िन्दगी के कितने पाठ पढ़ा देते थे,और कई सारे गुण अपने आप विकसित कर देते थे, जैसे team games में cricket जब आप खेला करते थे,तो अपने आप समूह में रहकर खुद से पहले आपमें टीम के बारे में और साथ ही साथियों के बारे में सोचने का गुण अपने आप विकसित हो जाता है,किसी साथी पर भरोसा इतना जबरदस्त हो जाना,कि सिर्फ इशारे पर आप run लेने के लिए दौड़ जाए ये सिर्फ खेल ही आपको सिखा सकते हैं। बचपन में जब आप घर की छत पर खड़े हो पतंग उड़ाते थे और हवा के चलने की दिशा का अंदाज़ा लेकर सिर्फ डोर की मदद से पतंग को हवा में अलग-अलग दिशा में लहराया करते थे,तो देखने में तो बहुत ही सामान्य  सी बात लगती है,लेकिन अगर जरा गौर से सोचा जाए तो अनजाने में ही आप science के कई सिद्धान्तों का प्रयोग कर जाते थे, जैसे हवा की दिशा के अनुसार पतंग को उड़ाना, साथ ही हवा में कई मीटर ऊंची पतंग पर concentrate करना भी आपकी ध्यान छमता को बढ़ाता है,कबड्डी” का खेल शारीरिक के साथ-साथ मानसिक फुर्ती को स्वाभाविक रूप से विकसित कर देता है और साथ ही विपरीत हालातों में भी हार ना मानकर उनसे लड़कर अपने पाले में वापस आना असल ज़िंदगी में भी हालातों से टक्कर लेने की छमता को विकसित कर देता है,गली में खेला जाने वाला “गिल्ली डंडे” का खेल कहने को तो सिर्फ एक लकड़ी के टुकड़े को मारने का मामूली सा दिखने वाला खेल है,लेकिन उस गिल्ली को मारने उसके उछलने और मारने की पूरी प्रक्रिया के दौरान हुआ घटनाक्रम speed ,time और distance के perfect combination में अपने आप ही सिखा देता है,list बड़ी लंबी है साहब गिनाने बैठे तों,पते की बात तो ये है,की इन सभी खेलों को खेलने के दौरान होने वाला शारिरिक श्रम एक स्वस्थ शरीर की नींव रखने में मददगार होता है, जो बचपन से natural immunity को विकसित कर देता हैकई ऐसी चीजें थी जो आपको अपने बचपन में मिली और आपको एक बेहतर इंसान बनने में मदद मिली,इसका उलट आपके बच्चे आज इन सब चीजों से दूर एक आर्टिफिशियल दुनिया का हिस्सा बनते जा रहे हैं और उसके आदि हो रहे है, मैं यहां बहुत ही पुख्ता तरीके से और सख़्ती से ये बात कहना चाहूंगा,कि गलती इसमें उनकी नही आपकी है,आप जिम्मेदार हैं,उन्हें उस दुनिया का हिस्सा बनाने के लिए,आप कभी ये कोशिश ही नही कर रहे,कि आपके बच्चे को भी वही नायब बचपन मिले जो कभी आपको मिला,आप उन्हें ऐसी चीजों की ओर प्रोत्साहित कर रहे हैं,जिनकी वजह से वो स्वस्थ्य और स्वाभाविक जीवंत दुनिया से दूर हो रहे हैं, रिश्ते और भावनाएं उनके लिए महत्वहीन होती जा रही हैं। घर में परिवारजनों के बीच बैठक कर आपने जो हंसी ठिठोली की होगी वो इससे इतर पारिवारिक कार्यक्रमों के दौरान उसका हिस्सा बनने की जगह सभी के बीच बैठकर भी वो मोबाइल को तरजीह देते हैं।और इस आदत को आप काफी बड़ा चड़ाकर उनके गुणों के साथ जोड़कर लोगों के सामने शेखी बघारने से भी परहेज़ नही करते की “अरे भाई ये आजकल के बच्चे हैं”।एक सत्य यह भी हैं,बच्चे काफी हद्द तक अपने अभिभावकों की क्रियाओं और प्रतिक्रिया को देखकर अपनी आदत और चीजों में ढलते है। अगर आप अभिभावक होकर अपने बच्चों की इस गलत कार्य को सराहना के रुप में प्रस्तुत करेंगे तो वे भी इसे सही मानेंगे।मैं यहां ये कहने की चेष्टा नही करहा कि बच्चों को आज के technology युग में आप gadgets  से दूर करें या latest updates न रहने दें,क्योंकि आज ऐसा कर पाना असंभव है,जरूरतों और सहूलियतों के लिए technology से जुड़े रहना बेहद जरूरी है,लेकिन जितना जरूरी हैं उतना,मोबाइल का उपयोग करें,पर कहीं ऐसा न हो कि मोबाइल आपका उपयोग करने लगे”।आपकी सोच समझ और विचारों पर हावी हो जाये,और वो दिन बहुत ही बदकिस्मती का होगा कि आपको अपने मस्तिष्क में विचारों का शून्य नज़र आये,और कुछ भी सोचने समझने और कहने से पहले मोबाइल और इंटरनेट का सहारा लेना पड़े।तो बच्चों को आज से अभी से मोबाइल का सदुपयोग सिखाये, उनके बचपन में वो घर के बाहर की गलियों के खेल के रंगों की सतरंगी छटा को बिखेर दें,आप भी देखेंगे कि कैसे उनका शारिरिक, मानसिक,बौद्धिक विकास के साथ साथ भावनात्मक दृष्टिकोण में कितना सकरात्मक विकास होता है।तो इस बार छुट्टियों में बच्चों की किलकारी गलियों में सुनाई देगी ना,आइए मिलकर कोशिश करते है,जो हमें मिला,अब इस नई पीढी की पौध को भी देते हैं यही तो कल के पेड़ बनेंगे जैसा आज आप और हम बने हैं