Thursday 11 February 2016

चीजें,जगह और रिश्ते तीनों “EXPIRE” ज़रूर होते हैं।

चीजें,जगह और रिश्ते तीनों “expire” ज़रूर होते हैं।
कभी जीवन में ये महसूस किया है कि किसी रिश्तेदार से ,या दोस्त से आपके संबंध अब उतने ताज़गी नहीं देते जितने पहले देते थे,या कह सकते हैं कि अब बास मरने लगे हैं,फिर भी हम उन्हें निभाए जा रहे हैं।
वो भी सिर्फ इसलिए कि पुराने संबंध हैं,सच यही है कि न ही अब हमें उनसे मिलने में मज़ा आता है,और न हमें उसमें प्रसन्नता का अनुभव होता है।
कभी किसी समान का उपयोग करते-करते ऐसा लगा है,कि अब यह उतनी काम की चीज़ नहीं रह गई है जितनी पहले थी,या वक़्त के साथ इसकी उपयोगिता कम या ख़त्म हो गई है, पर फिर भी हम उसे चलाये जा रहे हैं। जैसे पुराने स्कूटर जिसके कल-पुर्जे वक़्त के साथ घिस चुके हैं,और पेट्रोल की भी वो ज्यादा खपत कर रहा है। फिर भी हम सिर्फ इसीलिए उसे उपयोग कर रहे है,क्योंकि वो शायद हमारी पहली कमाई का था या हमारे पिताजी की निशानी है।
जब आप रोज़ काम पर निकलते हैं,तो क्या आप खुशी के साथ दिन की शुरुआत करते हैं? या सिर्फ ये सोचकर दिन का आगाज होता है कि “चलो रोज़ की तरह दिन शुरू हो रहा है और बीतते दिनों की तरह ये दिन भी कट जाएगा” आप जिस परिवेश या माहौल में रह रहे हैं। चाहे वो आपका शहर हो,नौकरी या कंपनी हो समय के साथ कुछ नया करने का या आगे बढ़ने के अवसर नहीं देती तो समझ जाइए कि “it’s time to move on” मतलब आगे बढ़ने का समय आ गया है। मतलब हमें जगह,शहर या नौकरी बदल लेनी चाहिए।अक्सर देखा गया है,कि लोग एक ही नौकरी से सिर्फ इसीलिए चिपके रहते हैं,भावनात्मक रूप से क्योंकि “ये मेरी पहली नौकरी थी”  जबकि अब वो नौकरी उन्हें वो खुशी नहीं दे रही है,जो कि कुछ साल पहले दे रही थी वो ये भूल जाते हैं, कि वक़्त बदलता है तो उपयोगिता भी बादल जाती है,जैसे शायद अब आपकी काबिलियत बढ़ गयी हो और वो जॉब अब आपके उतनी लायक नहीं जितनी तब कभी थी जब आप “FRESHERथे,या फिर मैनेजमेंट का या बॉस का व्यवहार आपके लिए अब चिड़चिड़ा सा हो गया है,फिर भी आप उनसे भावनात्मक रूप से जुड़े हैं जबकि अब उन्हें आपकी उतनी ज़रूरत नहीं है।
कहीं मैंने पड़ा था कि माता-पिता द्वारा बच्चों के लालन-पालन के सिद्धान्त में भी साफ कहा गया है। कि  बच्चों के साथ शुरुआत कि उम्र के 7-8 साल प्यार से, 8 से 15 साल तक कठोर अनुशासन से और 15 वर्ष के बाद मित्रवत व्यवहार रखना चाहिए। मतलब समय के साथ माता-पिता को भी बच्चों के साथ अपने प्रेम और रिश्ते की  गांठ में मिठास का अनुपात बदलते रहना चाहिए।
मैं यहाँ स्वार्थी होने की बात नहीं कर रहा हूँ, कि काम निकाल जाए तो हम भुला दें।  किसी से भी चाहे मित्र हों,संबंधी हों,जगह हो,शहर हो या नौकरी हो, लगाव होना आवश्यक है तभी आप उस रिश्ते को निभा पाएंगे या आनंद ले पाएंगे। लेकिन रिश्तों में ज़रूरत से ज्यादा लगाव या emotional foolishness” जीवन में बासापन या घुटन को जन्म देने लगता है।
जैसे ऊपर दिया पुराने स्कूटर का उदाहरण हो,घर या शहर से अतिरिक्त लगाव आपकी प्रसन्नता और तरक्की दोनों के लिए हानिकारक लगाव है। तो मीठी यादों को दिलों में,मन में बसा के रखिए और हमेशा जीवन मे आगे बढ़ते रहिए,उन्हें जीवन परियंत रोज़ ढोने कि क्या ज़रूरत है?
किसी ने क्या खूब कहा है- “कि सफलता कमज़ोर दिल वालों के लिए नहीं होती है,उसे पाने के लिए आपको अपने COMFORT ZONE से बाहर निकलना ही पड़ेगा”।
इसीलिए हमेशा याद रखे “रिश्ते,जगह और चीजें” समय के साथ EXPIRE ज़रूर होती हैं। इनसे जबरन चिपके रहना जीवन से खुशियाँ और तरक्की दोनों को ख़त्म कर देती है।