Sunday 19 July 2020

“सुंदरकाण्ड-एक पथप्रदर्शक रस सरिता” ***रस प्रवाह क्र॰-14***

सुंदरकाण्ड-एकपथप्रदर्शक रस सरिता
    ***रस प्रवाह क्र॰-14***      

 प्रसंग:- हनुमान जी द्वारा लंका में आग लगा देना-

देह बिसाल परम हरुआई। मंदिर तें मंदिर चढ़ धाई ॥

जरइ नगर भा लोग बिहाला। झपट लपट बहु कोटि कराला॥1॥

भावार्थ:- देह बड़ी विशाल, परंतु बहुत ही हल्की (फुर्तीली) है। वे दौड़कर एक महल से दूसरे महल पर चढ़ जाते हैं। नगर जल रहा है लोग बेहाल हो गए हैं। आग की करोड़ों भयंकर लपटें झपट रही हैं॥1॥

जब रावण के आदेश पर हनुमानजी की पूंछ में आग लगाई गयी,तब लंका से जाने के पहले उन्होने लंका में महत्वपूर्ण स्थानों को उसी आग से जला दिया,जिससे लंका को बहुत नुकसान हुआ और लंका निवासी भी बहुत डर गए।

सीख:-

vश्रीहनुमान जानते थे,कि बाद में भगवान राम अपनी सेना के साथ आएंगे,इसलिए उनकी मदद करने के लिए वह पहले से ही उन महत्वपूर्ण स्थानों को नष्ट कर देते है,जिनका उन्होंने सावधानीपूर्वक अध्ययन किया था और जो लंका में विख्यात स्थान थे।अतः हमेशा आगे की योजना बनाएं और उसके अनुसार वर्तमान में कार्रवाई करें।

vकिसी कार्य को पूरा करने के लिए अंतिम क्षण तक प्रतीक्षा न करें।उसे त्वरित रूप से पूर्ण करें ताकि उसका प्रतिफल सफल भविष्य के रूप में मिल सके।

NOTE:


v  यहाँ लिखा गया हर एक शब्द सिर्फ एक सूक्ष्म वर्णन है “सुंदरकाण्ड” का सम्पूर्ण नही,यह एक कोशिश है,उस अनुभव को सांझा करने की जो “सुंदरकाण्ड” से मैंने महसूस करे।अगर कुछ त्रुटि हो गयी हो तो कृपया कमेंट बॉक्स के माध्यम से जरूर बताए।मैं फिर यह कहना चाहता हूँ,यह धर्म या संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए नहीं है,लेकिन यहां सांझा किया गए “सुंदरकाण्ड” के सबक और उनकी शिक्षा सभी मनुष्यों के लिए उपयोगी हो सकते हैं,चाहे वह किसी भी धर्मजाति या धर्म के हों।


“सुंदरकाण्ड-एक पथप्रदर्शक रस सरिता” ***रस प्रवाह क्र॰-13***


  “सुंदरकाण्ड-एक पथप्रदर्शक रस सरिता

        ***रस प्रवाह क्र॰-13***
प्रसंग: हनुमान जी की पूंछ में आग लंका का दहन और हनुमानजी के लिए महोत्सव-

     कपि कें ममता पूँछ पर सबहि कहउँ समुझाई।     तेल बोरि पट बाँधि पुनि पावक देहु लगाइ॥24॥

भावार्थ:- मैं सबको समझाकर कहता हूँ कि बंदर की ममता पूँछ पर होती है। अतः तेल में कपड़ा डुबोकर उसे इसकी पूँछ में बाँधकर फिर आग लगा दो॥24॥

जब श्री हनुमानजी को सजा के रूप में लंका में रावण के दरबार में ले जाया जाता है,और उनकी पूंछ में आग लगाने की सज़ा सुनाई जाती है। तब भी वो उस विकट परिस्थिति में भी अपनी पूंछ बढ़ाकर स्थिति का आनंद लेते हैं,और अपने आसपास के लोगों को खुश करते हैं।

सीख:
इस पूरे प्रसंग से जो शिक्षा मिलती हैं वो है-
v      जीवन में मस्ती भी जरूरी है। चाहे परिस्थिति कितनी भी प्रतिकूल हों।
v      जीवन के कुछ पलों का हास्य और मस्ती के साथ आनंद लें।

NOTE:


v  यहाँ लिखा गया हर एक शब्द सिर्फ एक सूक्ष्म वर्णन है “सुंदरकाण्ड” का सम्पूर्ण नही,यह एक कोशिश है,उस अनुभव को सांझा करने की जो “सुंदरकाण्ड” से मैंने महसूस करे।अगर कुछ त्रुटि हो गयी हो तो कृपया कमेंट बॉक्स के माध्यम से जरूर बताए।मैं फिर यह कहना चाहता हूँ,यह धर्म या संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए नहीं है,लेकिन यहां सांझा किया गए “सुंदरकाण्ड” के सबक और उनकी शिक्षा सभी मनुष्यों के लिए उपयोगी हो सकते हैं,चाहे वह किसी भी धर्मजाति या धर्म के हों।

Saturday 18 July 2020

“सुंदरकाण्ड-एक पथप्रदर्शक रस सरिता” ***रस प्रवाह क्र॰-12***


 “सुंदरकाण्ड-एक पथप्रदर्शक रस सरिता



 ***रस प्रवाह क्र॰-12***
प्रसंग: हनुमान जी द्वारा लंका पर मानसिक विजय पाना-
कहते है! कि किसी खेल या जंग में आधी विजय तभी हो जाती है,जब आप दुश्मन के दिमाग पर हावी होकर,उस पर मानसिक विजय हासिल कर लेते है।यह बात भी हमें सुंदरकाण्ड में हनुमानजी के द्वारा क्रियान्वित करती हुई मिलती है,हनुमान एक सर्वगुण सम्पन्न स्वामिभक्त दूत है,उन्होने लंका विजय का आधार अपने द्वारा किए गए कार्यों से लंकाधिपति रावण के मन में अपने प्रभु श्रीराम की शक्तिशाली छवि प्रस्तुत कर बैठा दी और जब रावण ने उन्हे अपने बलशाली होने का दम भरा,तो तुरंत अपने बुद्धि चातुर्य का परिचय देते हुये उन्होने तर्क दिया-

जानउँ मैं तुम्हारि प्रभुताई। सहसबाहु सन परी लराई ॥
समर बालि सन करि जसु पावा। सुनि कपि बचन बिहसि बिहरावा॥1॥

मैं तुम्हारी प्रभुता को खूब जानता हूँ,सहस्रबाहु से तुम्हारी लड़ाई हुई थी,और बालि से युद्ध करके तुमने यश प्राप्त किया था। जो की वास्तव में हनुमान जी का रावण को उसके परक्राम पर दिया गया ताना था। क्योंकि सभी जानते थे,कि बाली ने रावण को बहुत बुरी तरह पराजित किया था। हनुमानजी की वाक्पटुता हमें ये सिखाती है,की सिर्फ बाहुबल से ही खेल या युद्ध नही जीते जाते।शत्रु पर मानसिक विजय प्राप्त कर लेना भी अतिआवश्यक होता है।  

सीख:
v शारीरिक विजय के साथ-साथ शत्रु और परिस्थितियों पर मानसिक विजय बहुत जरूरी है।

v मानसिक विजय आपको किसी खेल या युद्ध का आधा हिस्सा प्रारम्भ में जिता देती है। 

NOTE:


v  यहाँ लिखा गया हर एक शब्द सिर्फ एक सूक्ष्म वर्णन है “सुंदरकाण्ड” का सम्पूर्ण नही,यह एक कोशिश है,उस अनुभव को सांझा करने की जो “सुंदरकाण्ड” से मैंने महसूस करे।अगर कुछ त्रुटि हो गयी हो तो कृपया कमेंट बॉक्स के माध्यम से जरूर बताए।मैं फिर यह कहना चाहता हूँ,यह धर्म या संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए नहीं है,लेकिन यहां सांझा किया गए “सुंदरकाण्ड” के सबक और उनकी शिक्षा सभी मनुष्यों के लिए उपयोगी हो सकते हैं,चाहे वह किसी भी धर्मजाति या धर्म के हों।

“सुंदरकाण्ड-एक पथप्रदर्शक रस सरिता” ***रस प्रवाह क्र॰-11***


  “सुंदरकाण्ड-एक पथप्रदर्शक रस सरिता



 ***रस प्रवाह क्र॰-11***

प्रसंग: हनुमान-रावण संवाद-

जब हनुमान जी की अपने प्रभु श्रीराम का संदेश लेकर सीताजी की खोज में लंका गए,तब रावण से प्रथम मुलाक़ात से पहले अपने बाहुबल और मुलाक़ात के दौरान अपने बुद्धि कौशल का अद्भुत प्रदर्शन किया,क्योंकि वे जानते थे,की उनके द्वारा किए जाने वाले आचार,व्यवहार और कहे जाने वाले विचारों के आधार पर लंका में सभी उनके प्रभु श्रीराम की छवि का आंकलन करेंगे,इसीलिए यह आवश्यक था,की अपनी बौद्धिक ज्ञान का प्रयोग रावण के साथ होने वाले संवाद में सफलतापूर्वक किया जाए। जब रावण नें हनुमानजी  से उनका परिचय पूछा और अशोक वाटिका में राक्षसों को मारने का कारण पूछा तब उन्होने अपनी बुद्धिमत्ता का परिचय देते हुये सीधा अपना परीचय नही दिया,बल्कि अपने स्वामी को साक्षात स्वरूप में वहाँ उपस्थित मान उनका हवाला देकर सारी बात कही-
सुनु रावन ब्रह्मांड निकाया।पाइ जासु बल बिरचति माया ॥2

जाकें बल बिरंचि हरि ईसा । पालत सृजत हरत दससीसा ॥
जा बल सीस धरत सहसानन । अंडकोस समेत गिरि कानन ॥3

धरइ जो बिबिध देह सुरत्राता। तुम्ह से सठन्ह सिखावनु दाता ॥
हर कोदंड कठिन जेहिं भंजा । तेहि समेत नृप दल मद गंजा ॥4

खर दूषन त्रिसिरा अरु बाली । बधे सकल अतुलित बलसाली॥5
 जाके बल लवलेस तें जितेहु चराचर झारि । तास दूत मैं जा करि हरि आनेहु प्रिय नारि॥21॥

भावार्थ: “(हनुमान्‌जी ने कहा-) हे रावण! सुन, जिनका बल पाकर माया संपूर्ण ब्रह्मांडों के समूहों की रचना करती है, जिनके बल से हे दशशीश! ब्रह्मा, विष्णु, महेश (क्रमशः) सृष्टि का सृजन, पालन और संहार करते हैं,जिनके बल से सहस्रमुख (फणों) वाले शेषजी पर्वत और वनसहित समस्त ब्रह्मांड को सिर पर धारण करते हैं, जो देवताओं की रक्षा के लिए नाना प्रकार की देह धारण करते हैं और जो तुम्हारे जैसे मूर्खों को शिक्षा देने वाले हैं, जिन्होंने शिवजी के कठोर धनुष को तोड़ डाला और उसी के साथ राजाओं के समूह का गर्व चूर्ण कर दिया, जिन्होंने खर, दूषण, त्रिशिरा और बालि को मार डाला, जो सब के सब अतुलनीय बलवान्‌ थे, जिनके लेशमात्र बल से तुमने समस्त चराचर जगत्‌ को जीत लिया और जिनकी प्रिय पत्नी को तुम (चोरी से) हर लाए हो, मैं उन्हीं का दूत हूँ”।
हनुमान चाहते तो सीधे शब्दों में स्वयं का परिचय दे सकते थे,लेकिन लंका में उस समय उनकी उपस्थिति श्रीराम के काम की वजह से थी। जो भी वहाँ हो रहा था,या होने वाला था,वो प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से श्रीराम से ही जुड़ा हुआ था,इसीलिए उन्होने अपना नही अपनी कंपनी,ब्रांड या कहे तो अपने मालिक या प्रभु श्री राम के नाम का परिचय दिया,जिनके कार्य की वजह से वो वह गए थे, जो की हमें सिखाता है-

सीख:
v आपके वाक्यों का सामने वाले व्यक्ति पर प्रभाव कितना महत्वपूर्ण है।
v  जब आप कभी किसी कंपनी,संगठन या व्यक्ति की तरफ से कहीं जाते हैं,तो वहाँ आपका व्यक्तिगत परिचय मायने नही रखता,आप किसका प्रतिनिधित्व कर रहे हैं,वह मायने रखता है।इसीलिए अपने व्यक्तिगत परिचय को एहमियत देने के चक्कर में कभी अपने कंपनी,संगठन या व्यक्ति की एहमियत को न भूलें ।

NOTE:
v  यहाँ लिखा गया हर एक शब्द सिर्फ एक सूक्ष्म वर्णन है “सुंदरकाण्ड” का सम्पूर्ण नही,यह एक कोशिश है,उस अनुभव को सांझा करने की जो “सुंदरकाण्ड” से मैंने महसूस करे।अगर कुछ त्रुटि हो गयी हो तो कृपया कमेंट बॉक्स के माध्यम से जरूर बताए।मैं फिर यह कहना चाहता हूँ,यह धर्म या संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए नहीं है,लेकिन यहां सांझा किया गए “सुंदरकाण्ड” के सबक और उनकी शिक्षा सभी मनुष्यों के लिए उपयोगी हो सकते हैं,चाहे वह किसी भी धर्मजाति या धर्म के हों।


Friday 10 July 2020

“सुंदरकाण्ड-एक पथप्रदर्शक रस सरिता” ***रस प्रवाह क्र॰-10***


सुंदरकाण्ड-एक पथप्रदर्शक रस सरिता




 ***रस प्रवाह क्र॰-10***
प्रसंग: हनुमान जी द्वारा ब्रहमास्त्र की मर्यादा रखना-

ब्रह्म अस्त्र तेहि साँधा कपि मन कीन्ह बिचार ।

जौं न ब्रह्मसर मानउँ महिमा मिटइ अपार॥19॥

भावार्थ:-अंत में उसने ब्रह्मास्त्र का संधान (प्रयोग) किया, तब हनुमान्‌जी ने मन में विचार किया कि  यदि ब्रह्मास्त्र को नहीं मानता हूँ तो उसकी अपार महिमा मिट जाएगी॥19॥

ये प्रसंग आज के परिद्र्श्य पर बहुत सटीक बैठता है क्योंकि व्यक्ति जरा भी यदि सामर्थ्यवान हो जाए या शक्तिशाली हो वो कई जगहों पर मर्यादाहीन होने लगता है,वह किसी व्यक्ति और स्थान की मर्यादा का हनन करना,अपने सामर्थ्य का प्रदर्शन मानता है, लेकिन इस चौपाई में वर्णित प्रसंग से सीखने वाली बात ये है,की हनुमानजी की सर्वशक्तिमान थे,सामर्थ्यवान थे,लेकिन जब उन पर ब्रह्मास्त्र से वार किया गया। तब उन्होने उसकी मर्यादा का ध्यान रखते हुये उसका विरोध या प्रतीकार नही किया,बल्कि उल्टा सम्मान सहित उसके वार को अपने ऊपर लिया। अगर वो ऐसा न करते तो उस दिन के बाद से ब्रह्मास्त्र की गरिमा का कोई मूल्य नही रहता।

सीख:-

इस घटना से हमें मूलतः तीन सीख मिलती है जो गौर करने लायक है-

v  हमेशा दूसरों की शक्तियों और ज्ञान का सम्मान करें।

v  आपके चाहे कितने भी ज्ञानवान,शक्तिवान,सामर्थ्यवान और उच्च पद पर आसीन हों उसके बावजूद भी सदा विनम्र रहें।

v  दूसरों को नीचा दिखाकर अपने ज्ञानवान,शक्तिवान,सामर्थ्यवान होने का प्रयास कभी न करें।


NOTE:


v  यहाँ लिखा गया हर एक शब्द सिर्फ एक सूक्ष्म वर्णन है “सुंदरकाण्ड” का सम्पूर्ण नही,यह एक कोशिश है,उस अनुभव को सांझा करने की जो “सुंदरकाण्ड” से मैंने महसूस करे।अगर कुछ त्रुटि हो गयी हो तो कृपया कमेंट बॉक्स के माध्यम से जरूर बताए।मैं फिर यह कहना चाहता हूँ,यह धर्म या संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए नहीं है,लेकिन यहां सांझा किया गए “सुंदरकाण्ड” के सबक और उनकी शिक्षा सभी मनुष्यों के लिए उपयोगी हो सकते हैं,चाहे वह किसी भी धर्मजाति या धर्म के हों।