Tuesday 27 December 2022

उपहार... !

उपहार... ! 

वो कहते हैं न,अथिति देवो भवः,हमारे CULTURE में एक दिलचस्ब सा रिवाज़ है,जब भी कभी किसी के घर पर मेहमान बनकर जाते है,या हमारे घर पर मेहमान के तौर पर आते हैं,तो मेजमान मेहमान की आव भगत बड़ी ही धूम धाम से करता है,,हर घर में आने वाले मेहमान का स्वागत सत्कार कुछ से तरह किया जाता है,जैसे कोई उत्सव हो,कुछ इस तरह ही तो पकवान बनते है, घर में ख़ुशी का माहौल होता है,पिछले दिनों हमारे पडोसी के घर पर कुछ मेहमानों का आना हुआ,मैं भी अपने घर के बाहर खड़ा ठण्ड के मौसम में धुप का आनंद ले रहा था और साथ ही हमारे भी पड़ोसियों से सम्बन्ध काफी प्रगांढ़ होने की वजह से उन्होंने उनके घर आये हुए मेहमानों से हमारा भी तार्रुफ़ करवाया गया,कुछ देर रूककर वो मेहमान जब विदा ले रहे थे,तो मैं भी उस समय बालकनी में बैठा अखबार पढ़ रहा था,तभी मुझे उन लोगों के बीच किसी बात पर सहमति और असहमति के वार्तालाप होने का एहसास हुआ,लगा की जैसे किसी बात पर ARGUMENT चल रही है सो मेरा ध्यान अनायास ही उन लोगों की तरफ चला गया,वैसे एक बात कहूँ हमारे यहां एक अच्छा पडोसी होने के लिए एक गुण होना अति आवश्यक होता है,की पडोसी के घर में क्या चल रहा है,इस के बारे में हर व्यक्ति को जानकारी खुद के घर में क्या चल रहा है से ज्यादा होती है,मतलब ताका-झांकी में निपुणता अत्यंत की आवश्यक गुण है,एक अच्छे पडोसी में,क्या हुज़ूर ? कहीं इस लाइन को पड़ते हुए आपको अपना पडोसी तो याद नहीं आने लगा खैर ईमानदारी से कहूँ मेरी यहां ऐसी कोई नियत नहीं थी,वो तो उन सभी से मुझे थोड़ी देर पहली ही मिलवाया था,सो उन पर मेरा ध्यान चला गया,मैं यहां  अपने शरीफ होने की कोई सफाई नहीं दे रहा हूँ,खैर छोड़िये कहाँ मेरा किस्सा शुरू कर रहा हूँ,जिनका आज जिक्र है उन्हीं के किस्से पर फोकस अर्थात रौशनी डालते हैं,जो मेहमान आये थे उनके साथ दो बच्चे भी थे,आमतौर पर हमारे समाज में एक प्रथा है की जब कभी भी हमारे घर पर कोई मेहमान आते हैं,तो कभी उन्हें खाली हाँथ विदा नहीं करते हैं,खासकर जब कभी कोई हमसे छोटा आये जैसे ये २ बच्चे तो इन्हे कोई न कोई उपहार जरूर दिया जाता रहा है,वक़्त के साथ स्वरुप बदलते रहते हैं,सो इस प्रथा का भी स्वरुप बदलता गया और आज कल कई लोग अपनी सुविधा अनुसार पैसे दे दिया करते हैं,सो मेरे पडोसी जिनके यहां वो मेहमान आये थे,उन्होंने भी उन् दोनों बच्चों को कुछ पैसे दिए जिन्हे इन बच्चों ने ख़ुशी-ख़ुशी स्वीकार कर लिया,क्यूंकि बच्चे बहुत छोटी उम्र के थे,सो उनके माता पिता ने बच्चों से ये आग्रह किया की वो पैसे उन्हें दे दें,नहीं तो कहीं गिर जाएंगे पर बच्चों को लगा की पैसे उनके हैं और उनपर उनका ही हक़ है और उनके ही पास रहना चाहिए,इस वाद विवाद ने बड़ा रुप ले लिया और तैश में आकर पिता ने उन्हें डांट दिया,जिस पर प्रतिक्रिया देते हुये बच्चे ने भी रुआंसा सा मुँह बनाकर कहा आप हमेशा मेरे पैसे ले लेते है,वापस नहीं करते,इतना बोलने के बाद वहां पर शान्ति सी छ गयी थी हर कोई निरुत्तर सा रह गया था,पर यहां के घटनाक्रम को ज़रा नज़दीकी तौर पर देखने की जरूरत है,तो आइए साहबान ज़रा नज़दीक से दीदार करते है जो उस कुछ यहां घटा उस परत दर परत इस पूरे घटनाक्रम में पिता का सोचना भी सही था की बच्चे उम्र में बहुत छोटे है  और छोटे बच्चे के पास इतने ज्यादा पैसे उचित नहीं है,अगर कहीं गिर गए तो बर्बाद हो जायेंगे या बच्चे ने उन पैसों का गलत उपयोग कर लिया तो उसकी आदतें बिगड़ सकती है,और बच्चों का सोचना भी सही था की ये रुपये उन्हें उपहार स्वरुप मिले हैं,तो वो उन्हें अपने पास रख सकते हैं,तो क्या इस समस्या की जड़ क्या हमारे पडोसी थे? जिन्होंने वो उपहार स्वरुप पैसे बच्चे को दिए थे,पर वो भी तो समाज का कायदा और अपना फर्ज ही तो निभा रहे थे जिसमें विदा होते समय बच्चों को उपहार स्वरुप कुछ दिया जाना चाहिए था,और उन्होंने वही तो किया,तो साहिबान सवाल उठता है कि तो इस सब में गलत कौन था या सही मायने ढूढ़ने की कोशिश करें तो सही सवाल होना चाहिए की गलत क्या था? क्या पडोसी का दिया गया उपहार गलत था ? न जी न, गलत था उनका उपहार के स्वरुप में बच्चे को पैसे देना वो भी इतने ज्यादा की जो उस बच्चे के कद,समझ और उम्र से कहीं ज्यादा और बड़ा था,तो अब बात आती है कि करें क्या? तो हाल भी समस्या की जड़ में होता है,उपहार दीजिये पर पैसे ही क्यों?ज़रा सा सोच कर देखिये क्या पैसे ही देना ज़रूरी था? क्या उपहार में पैसे के अलावा कुछ और नहीं दिया जा सकता था,जो उस बच्चे के उम्र और समझ के हिसाब से सही होता और उसके काम भी आ सकता,जिस की उपयोगिता उस बच्चे के दैनिक जीवन में होती,जैसे उसे पेन-पेंसिल का सेट उसे दिया जा सकता था,जो उसके बेहद काम की चीज है,कोई अच्छी सी किताब,किसी महापुरुष की जीवनी जिसे पढ़कर वो प्रेरित होते साथ ही चरित्र निर्माण भी करने में मददगार होता।  उपहार देना महत्वपूर्ण है,पर उपहार में पैसे ही दिया जाना जरूर तो नहीं,उपहार के महत्त्व को पैसों में तोलना कहीं न कहीं अनैतिक है और उचित भी नहीं,उपहार प्रेम और आशीर्वाद स्वरुप दिए जाते हैं,पैसे मतलब धन स्वरुप नहीं, तो हमेशा उपहार को पैसों के साथ नहीं प्रेम भावना स्वरुप रखना चाहिए,कई बार इस तरह के रिवाज़ मेज़वान को भी आर्थिक बोझ में दबा देते है और यदि उनका आर्थिक सामर्थ्य उन्हें इस बात के लिए साथ नहीं दे पाती तो कई बार खुद,रिश्तेदार और मित्रों के सामने शर्मिंदगी का अनुभवों से भी दो चार करवाती है तो अगली बार जब भी किसी मेहमान को विदा करते है तो उसे उपहार में कुछ ऐसा दें जो उसके काम में आये और आपके प्रेम से ओत-प्रोत भावना को भी परभाषित कर सके और साथ ही जब भी आप कहीं मेहमान बनकर जाएँ तो विदा लेते समय ऐसे पैसों के लेन-देन वाले व्यवहार से बचे । तो अब से उपहार में पैसे नही प्यार बांटिए।

Thursday 15 December 2022

ज़बान संभाल के ...........!

 

ज़बान संभाल के .....!

आज एक करीबी मित्र के घर जाना हुआ,ये मेरे बचपन के साथी हैं,जिनके घर आने जाने के लिए मुझे तकलुफ्फ या कोई फॉर्मेलिटी की जरूरत नही है। जिंदगी में कुछ ऐसे खास दोस्तों का होना जरूरी है,और अगर आपके पास है तो नेमत है ऊपर वाले की,जिनसे आप बिना APPOINTMENT लिए भी मिल सकते हैं,और ऐसी बातें कर सकते हैं जो स्वार्थ,काम और नफा-नुकसान से कोसो दूर हों। इस शाम की शुरुआत हम दोस्तों के बीच यारों वाली गपशप से हुई, भाभी जी ने भी गर्मा-गर्म चाय के साथ पकोड़े बना दिये,सो हमारी तो चांदी हो गयी कि चाय के साथ गर्मा-गर्म पकोड़े हा हा हा….. मज़ा गया था, बातचीत चालू थी साथ में अब बैठक में हमारी २ और सदस्य जुड़ गए थे, मेरे मित्र की धर्मपत्नी जी यानी मेरी आदरणीय भाभी जी और साथ ही उनका 5 साल का बेटा जिसे हमारी बातचीत में तो नहीं, पर हाँ वहां मेज़ पर रखी हुई पकोड़े के प्लेट में जरूर INTEREST था, हमारी बातें चाय की चुस्की और पकोड़ों के साथ आगे बढ़ रही थी,माहौल बहुत ही खुशनुमा बन गया था, हो भी क्यों न जब सामने हमारे अपने हों तो बातें दिमाग से नहीं दिल से होती है I

बातचीत का दौर चालू था,साथ ही पकोड़े का भी,पास ही मेरे दोस्त का 5 साल का बेटा वो भी पकोड़े का आनंद खेलते हुए ले रहा था, हमारे मित्र को बहुत सारी अच्छी आदतों के साथ एक बुरी आदत भी लगी हुई है,उन्हें बातचीत के दौरान किसी भी आवश्यक हो या अनावश्यक बात पर बीच-बीच में गाली गलौच का उपयोग करने में महारथ हासिल है,जैसे कभी हाँथ से मोबाइल या चाबी गिर जाए तो तुरंत मुँह से "कुत्ता, कमीना, हरामखोर….. आगे बस लिख नही सकता आप बस भावनाये ही समझ कर काम चला लें, क्योंकि हमारे तथा-कथित सभ्य समाज में निर्जीव चीज के लिए भी प्रयोग की जाने वाली भाषा मुह से तो कुछ भी कहने की अज़ादी है पर लिखने की आज़ादी नही है उसे उछलता माना जाता है,खैर आप सभी तो समझने में उस्ताद हैं,तो बस समझ जाइये खैर अब आगे बढ़ते हैं,और हमारे मित्र उन्हें ऐसा करते हुए याद भी नही रहता ही कभी उन्हें इस बात का कोई गिला मलाल हुआ, वो तो बस यूं ही बहते हुए बातों में कह दिए जाते थे,कई बार उनके साथ महफ़िलों में शरीक़ हम जैसे मित्रों को उनके इस आज़ादी से भरे उन्मुक्त व्यवहार से असहजता का सामना करना पड़ा है,चलिए हम तो फिर भी मित्र ठहरे सो ठीक,कई बार उनकी धर्मपत्नी को भी शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा,पर हमारे मित्र को टोके जाने पर भी उन्हें कभी अपना इस तरह का शब्द प्रयोग गलत लगा,आज जब हम उनके घर पर बैठकर पकोड़े के आनंद ले रहे थे,तब भी वो किसी किसी बात पर गाली का प्रयोग पकोड़े में चटनी की तरह लगा कर रहे थे,बात करते-करते उन्होंने TV का रिमोट उठाया और चैनल बदलने लगे शायद रिमोट के सेल कुछ कमजोर लगे थे या उसमें कोई समस्या थी सो एक दो बार बटन दबाने पर  भी जब रिमोट चला सो उन्होंने बाकायदा अपनी आदत अनुसार रिमोट को भी एक-दो जुमलेदार गालियां "साला हरामखोर आगे बीप बीप बीप सेंसर है भाई लोग" सो समझ जाएं,मैंने उनके हाँथ से रिमोट लिया और उसके सेल को निकाल कर फिर से अच्छे से लगा दिया तो रिमोट चलने लगा,फिर मैने उनकी तरफ मुस्कुरा कर देखा और कहा अरे यार सेल ढीले हो गए थे बस,क्या तुम भी गालियां देने लगे... उन्होंने मेरी बात को उन्ह... कहकर उड़ा दिया हमेशा की तरह,तभी पास में  खेल रहे उनके बेटे के खिलौने वाली गाड़ी जो कि रिमोट से चला कर खेल रहा था, उसके रिमोट में शायद कुछ दिक्कत आने लगी थी वो लगातार उसके बटन जोर से दबा कर उसे चलाने की कोशिश कर रहा था पर शायद कामयाबी नही मिल रही थी, तभी उसने भी उस रिमोट को जोर से हांथों पर मारते हुए अपनी तोतली भाषा में कहने लगा "छाला भोछलिका" चल नही रहा.....उस नन्हे बच्चे के मुह से निकले इन शब्दों ने कमरे में सन्नाटे का बम फोड़ दिया मैं,मेरे मित्र और उनकी धर्म पत्नी तीनों एक दम सन्न रह गए थे,कुछ पल के सन्नाटे के बाद एका एक भाभी जी बच्चे पर बरस पड़ी क्या बकवास कर रहे हो? कैसी बात बोलते हो? कहा से सीखा ये सब बगैरह-बगैरह बच्चा बड़े ही भोले पन से उनकी इस डांट को सुन रहा था या कहूँ तो समझने की कोशिश कर रहा था,उसने ऐसा क्या कर दिया जो इतनी बरसात हो गयी डांट की,भाभी जी बस बरसती ही जा रही थी तभी मेरे मित्र ने भी गुस्से से कहा बोलो बेटा मम्मी कुछ पूछ रही है,उस 5 वर्षीय अवोध बालक ने बड़े ही मासूमियत से जवाब दिया पापा का जब भी रिमोट नही चलता तो पापा भी तो ऐसे ही कहकर रिमोट को ठीक कर लेते हैं, उसका इतना सा कहना था और मेरे मित्र का चेहरा शर्मिंदगी से नीचे हो गया,उस कमरे का माहौल अब कुछ अजीब हो चला था,सो मैंने बच्चे को उस कमरे से जाने को कहा और बाहर जाकर आंगन में खेलने को कहा,बच्चे के जाने के बाद मेरे मित्र की पत्नी का गला रुंध से गया और वो अपने पति देव पर बरस पड़ी कितनी बार कहा है इस तरह से बातों में गाली गलौच का प्रयोग मत किया करो,पर आप कभी किसी की नही सुनते हैं,आप घर में जब चाहें छोटी-छोटी बातों पर ऐसा करते रहते हैं,यह भी याद नही रखते की आस-पास बच्चे हैं,मेरे मित्र के झुके हुए सर के साथ मुह से सिर्फ इतना ही निकला कि सॉरी आज के बाद दोबारा ऐसा नही होगा,उन्होंने मुझसे भी माफी मांगी क्योंकि कुछ पल पहले ही मैंने भी उन्हें इसी आदत के लिए टोका था,उस दिन से मेरे मित्र ने इस आदत से तौबा कर ली।

साथियों ऐसे कई सारे लोग हमारे आस-पास हैं,शायद हमारे घर में भी है या हो सकता है इस आदत के शिकार आप और हम भी हों क्योंकि बुरी चीजे कब आदत बन जाती है पता नही चलता और गाहे-बगाहे हम और हमारे परिवार जन और मित्र गण असहजता और शर्मिंदा से दो-चार होते हैं,परिवारजनों और खासकर बच्चों और अपने अनुजों के सामने अपने व्यवहार और बातचीत को बहुत ध्यान में रखते हुए प्रयोग में लाना चाहिए,क्योंकि हमारे छोटे हमें बहुत अधिक फॉलो करते हैं,आप माने या माने आप और हम यदि घर परिवार और आस-पड़ोस में बड़े हैं तो अपने से छोटों के लिए हम रोल मॉडल ही होंगे, वो जिसे वो सबसे पहले देखकर सीखने की कोशिश करते हैं,अब ये हम पर निर्भर करता है,कि हम उन्हें अपनी शख्सियत की कौन-सी तस्वीर पेश करते हैं, तो अपने व्यवहार,विचार और अभिव्यक्ति को कुछ ऐसा बनाइये ताकि वो आपके व्यक्तित्व को तो संवारे ही,साथ-साथ उस की खुशबू से और भी कोई देखकर सीखकर महक सके क्योंकि शायद कहीं आपको भी पता चले की कोई आपसे बहुत कुछ सीख रहा है,तो अगली बार जब कहीं बोले तो ज़रा ज़बान संभाल के.....!