Saturday, 23 January 2016

“मम्मी-पापा हमारे साथ रहते हैं???”

“मम्मी-पापा हमारे साथ रहते हैं???”

आज सुबह-सुबह सैर पर निकला तो हमेशा की तरह पार्क के तीन चक्कर लगा लेने के बादजब घर वापस लौट रहा था,तो मेरे बहुत पुराने परिचित मित्र मिल गए,सामान्य हाय-हैलो के बाद घर परिवार,पत्नी और बच्चों के बारे में बात होने लगी,बातों ही बातों में मैंने जब उनके माता-पिता के हाल-चाल पूछे तो कहने लगे कि-“हाँ मम्मी-पापा आजकल हमारे साथ ही रहते हैं”। वो इतना कहकर चले गए,मैं भी अपने घर लौटने लगा पर उनके कहे इन चंद शब्दों को मैं भुला नहीं पाया,इन शब्दों ने मुझे बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया।
वैसे तो ये वाक्य हमारे समाज की बातचीत का एक सामान्य अंग है। लेकिन ज़रा सोच कर देखिये कि  कभी आपके या किसी के भी माँ-बाप ने अपने छोटे बच्चों के लिए ये कहते हुए सुना हैं-“कि हाँ बच्चे हमारे साथ ही रहते हैं?” तो फिर हम बच्चे जब बड़े हो जाते हैं,तो क्यों हम अपने माँ-बाप को बोझ समझ कर ये कह देते हैं कि “मम्मी-पापा हमारे साथ रहते हैं?”
टेक्नोलोजी के इस युग में कहते हैं कि “internet एक ऐसा जरिया है जहां पर सारी जानकारी सिर्फ एक क्लिक पर उपलब्ध हो जाती है। लेकिन हम ये भूल जाते हैं,कि हमारे माता–पिता भी किसी internet या Wikipedia से कम नहीं होते हैं उनके पास भले ही technology, geography, science या history की सारी जानकारी न हो। पर उनके पास सांसारिक और सामाजिक व्यवहार,आचार,विचार और संस्कार  की खान होती है।जो आपके और आपके परिवार की आने वाली पीड़ी को मुफ्त में जानकारी उपलब्ध करा कर जीवन के मुश्किल रास्तों को कैसे तय करना और उस में होने वाले नुकसान और खतरों से आगाह कर देते हैं।
हम चाहे कितने भी बड़े गुणवान और धनवान क्यों न बन जाएँ,लेकिन हमें ये नहीं भूलना चाहिए की हमारे माता-पिता किसी पेड़ की तरह होते हैं और हम बच्चे उस पेड़ की एक शाखा हैं,और उस शाखा की उन्नति और हरियाली तभी तक है,जब तक वो अपने पेड़ से जुड़ी है,आज तक पेड़ से अलग होकर कोई भी शाखा फल-फूल नहीं पाई है। क्योंकि यही प्रकृति का सिद्धान्त है,कि शाखा को पोषण पेड़ के तने से मिलता है,न कि शाखा कभी किसी पेड़ को पोषण देती है।
ठीक उसी तरह मनुष्य जीवन का भी सिद्धान्त है,”हम बच्चों की पहचान हमारे माता-पिता की मदद से बनी,उनके आशीर्वाद और दुआओं से हमारे जीवन में तरक्की की हरियाली है”।  
भले ही आज वो उम्र की ढलान पर शारीरिक रूप से हमारा उतना साथ न दे पा रहे हों,लेकिन आज भी उनके आशीर्वाद हमें सींच रहे हैं और अनुभव हमें सदा पोषित कर रहे हैं।

इसीलिए आप कभी ये मत कहिएगा कि माता-पिता किसी बोझ कि तरह “हमारे साथ रहते हैं” पर इसकी जगह हमेशा मुस्कुराकर कहिए और मानिए कि “आप आज भी उनके ममता और आशीर्वाद की छाँव में  उनके साथ रहते हैं”।