Friday, 20 January 2023

अर्धांगनी

स्वाति बिन संयोग कैसा,बन सकेगा इस काल में।

गर मांझी मैं तो नाव हो सनम तुम,
साथ बहती मझधार में।
स्वाति तुम एक नक्षत्र मेरी,

कुंडली का प्यार हो।
जीना तुम बिन एक पल संभव नही,
चाहे युद्ध हो या तकरार हो।
तकरार बिन फिर प्यार कैसा,
जो भी हो बस तुम्हारे साथ हो,
अगर हो इक पल तकरार का तो
चार पल फिर प्यार हो।

रिश्ता हो तो,ऐसा हो दिलबर,
जिसपर दिल को नाज़ हो,
कल तक था जितना भरोसा।
उससे ज्यादा आज हो।

लाभ-हानि,गम और खुशियां
ज़िन्दगी के योग संयोग हैं,
जो न हो नक्षत्र स्वाति तो,
फिर कैसे मिलन का संयोग है।

शब्द अर्पित,भाव अर्पित,
जीवन का हर अर्थ समर्पित,
स्वप्न अर्पित,मान अर्पित,
जीवन का हर क्षण समर्पित,
तुम कहो और मैं सुनु,
बिन कहे सब तुम जान लो,
तर्क-वितर्क की जगह न हो,
जो तुम कहो स्वीकार है।
हर कसम हर रस्म मुझको,
संग तेरे स्वीकार है,
मुस्कुरा दो,सनम तुम जो इक पल,
पल वही गुलज़ार है।