Sunday 31 July 2016

सवाल खुद से और सब से.............

सवाल खुद से और सब से.............

कल मेरी मुलाकात एक सज्जन से हुई वैसे तो वो मेरे ही सहकर्मी हैं,लेकिन डिपार्टमेंट अलग अलग होने के कारण कभी उनसे ज्यादा बातचीत नहीं होती थी,सामान्य नमस्कार से आगे कुछ नहीं.पर पिछले कुछ समय से किसी प्रोजेक्ट पर उनके साथ काम करना हुआ तो कल जब लगातार काम करते-करते पॉवर कट हुआ,तो हम दोनों के पास एक दुसरे से बात करने के अलावा कोई दूसरा चारा भी नहीं था,क्योंकि वो मुझसे उम्र में काफी सीनियर है,सो मैंने बातचीत शुरू की मैंने उनसे पुछा आपकी शादी को तो काफी साल हो गए होंगे,तो कहने लगे हाँ सर बहुत साल हो गए,जब मैंने उनसे उनके परिवार के बारे में पुछा तो कहने लगे कि उनकी एक पत्नी और दो बच्चे हैं क्योंकि वो सज्जन एक पड़े लिखे इंजीनियर है और बड़ी ही शान से बताने लगे उनकी पत्नी भी एक इंजिनियर है,फिर मैंने बड़ी उत्सुकता भरे भाव से पुछा कि भाभी जी किस प्रोफेशन में हैं,उन्होंने खोकले पुरुषवादी सोच के तहत कहा कि अरे नहीं सर जी (वो मुझे सर कह कर बुलाते है क्योंकि उम्र में भले ही वो मुझ से बड़े हो पर मैं उनसे पोस्ट वाइज सीनियर हूँ),तो मुझसे कहने लगे की अरे नहीं सर जी वो कहाँ जॉब वोब करेगी उसके बसका नहीं है वो बस घर पर अपना काम करती है,मैंने कहा मैं कुछ समझा नहीं क्योंकि मुझे लगा की शायद वो फ्री लांसर की तरह घर पर से कोई ऑनलाइन काम करती होंगी. पर कहने लगे अरे नहीं वो घर के काम जैसे साफ़ साफाई,खाना बनाना बगैरह, मेरा और बच्चों का ख़याल रखती हैं बस यही तो उसका काम है और फ़र्ज़ भी. इस पर मैंने कहा की पर वो तो एक इंजीनियर हैं न तो इस पर आगे उन्होंने कहा कि वैसे भी औरतें घर के बहार कोई काम करें वो मुझे पसंद नहीं.ये सब सुनकर मुझे बहुत  बुरा लगा. पर क्योंकि मेरे उनसे कोई घनिष्ठ व्यवहार नहीं थे सो चुप रहा,पर इस कुछ देर की बातचीत ने मेरा उनके प्रति नजरिया बदल दिया,ये सोचकर दांग रह गया की इतना पड़ा लिखा आदमी एक ऐसी सोच के साथ अपने परिवार में अपनी पड़ी लिखी पत्नी के अरमानों को कुचल रहा है,यह बात कहाँ तक सही है की उनकी पत्नी नौकरी या कोई भी काम जो उन्हें समाज में अपना नाम और मुकाम बनाने में मदद कर सकता है करे या ना करे इस बात का फैसला क्या सिर्फ उन सज्जन को ही लेने का हक़ हैं की उनकी पत्नी  क्या करे क्या ना करे ,क्या ये उनकी पत्नी का हक़ नहीं की वो भी इस बात का फैसला ले सकें.

हम अपने घरों में ही जाने अनजाने में हमारी माँ,बहिन या पत्नी की काबिलियत को उनके गृह कार्य में दक्षता के आधार पर ही तौलते हैं और इस बात को पूरी तरह से नज़र अंदाज़ करते हैं की वो क्या चाहती हैं उन्हें आसमान में उड़ने का मौका देने का काम करिए,ना की उनके पर कतरने का और उनकी सुरक्षा के नाम पर या घर की मान मर्यादा के नाम पर ,परंपरा के नाम पर उनके सपनो को ख़त्म करने का.

1 comment:

  1. sir, Mai apki bat se bilkul sahmat hu.

    Mahilaye kisi desh ki aadhi jansankhya hoti hai, aor agar mahilao ko karyo me samil nhi kiya jata iska matlb hai desh ki adhi jansankhya desh ke vikas me bhag nhi le rhi hai, jiska sidha arth nikala ja sakta hai ki agar mahilaye sakriy ho jaye to desh dogune speed se pragati karega,

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