Friday 20 September 2019

"हसरतें कुछ अनकही सी"---🙂🙂🙂

"हसरतें कुछ अनकही सी"---

की हो मुमताज तुम मेरी,मैं हूँ शाहजहां तेरा,
की मैंने दिल के कोने में,एक ताजमहल बनाया है,
की आ भी जाओ अब तुम,और न मुझको तड़पाना,
की इंतेज़ार में तेरे अबतलक जिरागों को जगाया है,
की हर मूरत वो है जिंदा,जिन्हें तुमने बनाया है,
वरना रूहे ए इंसान भी,तेरे बिन पत्थर की काया है,
मैं हूँ आशिक नही कहता,पर तुम अरदास हो मेरी,
खुदा ने सुनकर दुआ मेरी ,मुझे तुझसे मिलाया है,
वो सुरमा तेरी आँखों का,मेरी आँखों में बसता है,
की दिल के हर इक हिस्से में, हर पल तुझको पाया है,
शरीक़ हो तुम हर हिस्से में, और हर हिस्सा तेरा सरमाया है
ग़ज़ल हो मेरे ख्वाबों की,तू मेरी हसरतों का साया है,


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