प्रेम की पाती
तुम आस हो विश्वास हो,मेरे जीवन की परिपूर्णता का एहसास हो,
प्रेम की पाती
तुम आस हो विश्वास हो,मेरे जीवन की परिपूर्णता का एहसास हो,
“नींबू मिर्ची”
आज शाम हमारे पड़ोसी श्री हरीलाल जी किसी जरूरी काम
से शहर से बाहर जाने वाले थे,घर से बड़ी जल्दी में निकाल अपना सूटकेस लेकर निकल रहे
थे,क्यूंकी उनकी ट्रेन का टाइम हो रहा था,और
वो पहले ही लेट हो गए थे, बस कुछ ही मिनट रह गए थे,इसीलिए
जल्दी-जल्दी वो अपने कदम गली से बाहर निकाल रहे थे,कि अचानक उनके सामने से एक
बिल्ली निकल गयी,शायद वो भी कहीं पहुँचने की जल्दी में थी,बिल्ली
के रास्ते के सामने से निकलते ही हमारे पड़ोसी श्री हरी राम जी
के तेजी से बड्ते हुये कदम अचानक डिस्क ब्रेक लग गए हो कुछ इस तरह रुक गए और चेहरे
पर बड़े ही गुस्से से भरे भाव आए और मुंह से कुछ बड़बड़ाहट में फूट पड़े “अब इस कंबखत
बिल्ली को भी अभी रास्ता काटना था” अब क्या करूँ कैसे आगे जाऊँ। अब तो कुछ देर
ठहरना ही पड़ेगा,ऐसा कहते हुये वो बैचेन मन से वहाँ कुछ पल के लिए
रुक गए,पर वक़्त कहाँ रुकने वाला था,वो तो अपनी गति से लगातार
बदता ही जा रहा था,सो जिस चीज की कमी इस समय हमारे पड़ोसी श्री हरीलाल जी
के पास थी मतलब समय,वही तेजी से फिसल रहा था,कुछ
देर रुकने के बाद श्री हरीलाल जी ने एक लंबी सांस ली,और
जल्दी-जल्दी रेल्वे स्टेशन के लिए निकल गए,क्यूंकी उन्हे ट्रेन जो पकडनी थी,पर
जिस गति से वो गए थे,उसी गति से कुछ देर वो वापस आ गए पूछने पर बताया,की
ट्रेन राइट टाइम थी सो निकाल गयी,मैं स्टेशन देरी से पहुंचा,अब
तो उनका सारा गुस्सा उस बिल्ली पर फूट पड़ा,न वो रास्ता काटती,न मैं देरी से पहुंचता,न
मेरी ट्रेन छूटती,मैंने कहा अजी जनाब उस बिल्ली को क्यूँ दोष दे रहे
हैं,वो तो बेचारी अपने रास्ते जा रही थी,उसका
आपके सामने आ जाना तो महज एक इत्तेफाक भी हो सकता है,आपको
उसने थोड़ी ही रुकने को कहा था,आप अपने रास्ते चल पड़ते जैसे वो बिल्ली निकल पड़ी थी,शायद
अपनी मंज़िल पर समय से पहुँच भी गयी होगी। हरी राम जी का गुस्सा शायद मैंने और भी
भड़का दिया था,कहने लगे आप भी क्या फालतू की बात करते हैं,बिल्ली
रास्ता काट जाये तो अच्छा शगुन नही होता है,इसीलिए रुका,मैंने उनकी मनःस्थिति को भांपते हुये उन्हे कुछ
ठंडा करने के लिए कहा हाँ आप सही कह रहे है,पर जरा सोचिए की अगर आप रुके न होते तो आपकी ट्रेन
छूटती,मेरी बात सुन हरीलाल जी थोड़ा शांत हुये और हामी में सर हिलाया,मैंने
भी मौका देख एक और तीर छोड़ा,और अपनी बात मैं आगे जोड़ा और क्या आप अच्छा शगुन और
बुरा शगुन के बारे में कहते हैं,कुछ यूं सोच कर देखिये की बिल्ली अपने रास्ते पर थी
और आप अपने बस वो जरा जल्दी आपके सामने से निकल गयी,वो तो आपको देख कर नही
रुकी ज़रा सोचिए की अगर बिल्ली आपको देखकर रुक गयी होती तो शायद उसे अपनी ट्रेन भी
मिस करनी पड़ जाती,और इस वक़्त वो भी आप ही की तरह गुस्सा कर रही होती,पर
देखिये वो कहाँ रुकी उसने तो अपनी ट्रेन पकड़ ली ना,पर आप रुक गए और आपकी
ट्रेन मिस हो गयी,मेरी इस बात में थोड़ा व्यंग था पर अब शायद हरीलाल जी
को समझ आ गयी थी,उनकी गुस्से की ज्वाला अब ठंडी हो चली थी,वो
हल्का सा मुस्कुरा दिये,और शांत चित्त से अपने घर को चल दिये।
जब आज बैठक जम ही गयी है तो,ज़रा
एक किस्सा और बताता हूँ,तो हुआ यूं कि हमारे मित्र अरे हमारे पड़ोसी अभी तो
मुलाक़ात कारवाई थी,आप सभी की उनसे अरे भूल गए इतनी जल्दी,अरे
हरीरम जी,याद आ गए न,तो हुआ यूं की उन्होने बड़े अरमानों से एक नयी चार
चक्के वाली गाड़ी अरे मतलब “फोर व्हीलर” गाड़ी एक कार खरीदी,अपनी
आदत के अनुसार उन्होने कार लेने से पहले अपने पिछले 6 माह कारों के बारे में गहन
अध्यन में खर्चा कर दिये जो भी मिला,जहां से भी मिला खूब रिसर्च की खूब ज्ञान बटोरा,हर
एक पैरामीटर को अच्छे से कस के पकड़-पकड़ कर जांचा परखा,फिर
कहीं जाकर एक कार उनकी तय की हुई कसोटी पर खरी उतर,तो उन्होने उसे खरीदने का
मन बनाया,बुकिंग की गयी मुहल्ले में हल्ला था उनकी आज कार
फाइनली खरीदी जा रही है,क्यूंकी पिछले 6 महीने में ऐसा कोई आदमी हमारे
मुहल्ले में नही बचा था,जिससे सलाह माशोहरा न किया,और
सर न खाया हो,अजी 2 से 3 बार तो मेरे ही कई घंटे खर्चा करवा दिये
थे,कार श्री हरीलाल जी की आज आ रही थी,पर
खुश सभी थे की कल से अब कार की चर्चा बंद,पर इसमें गलती श्री हरीलाल जी की भी नही थी,अजी
साहब हम मिडिल क्लास लोग होते ही ऐसे है क्यूंकी सीमित आय में ज़िंदगी के कई सपने
अपने प्राइस टेग लगाए रहते है,बड़ी मुश्किल से उन सपनों में कुछ एक सपने अपनी बचत
आय में पूरे करने के बारे में सोचते हैं,बाकी तो सपने बस सपने रह जाते हैं,खैर
आज श्री हरीलाल जी की कार आने वाली है हमारे मुहल्ले में,सभी
उत्साहित है,और कार आई जिस पर इतनी रिसर्च की गयी थी श्री हरीलाल
जी द्वारा, हरीलाल जी ने हमें भी अपनी कार दिखाने बुलाया और
बड़ी शान से बोले देखिये ये है मेरी कार जिसे मैंने पसंद किया है,सारे
क्वालिटी पैरामेटर पर खरा उतरने के बाद ही फ़ाइनल किया है,मैंने
उनके उत्साह से भरे वाक्यों को सुनकर उनकी हाँ में हाँ मिलाते हुये सिर्फ इतना ही
कहा की हाँ वो तो है,आपने काफी रिसर्च की और काफी एक्स्पर्ट्स लोगों से
सलाह मशवहरा किया है,कार को लेने से पहले,तभी उनकी श्रीमति जी पूजा
की थाली लेकर आ गयी,अरे भाई मेरी पूजा करने के लिए नही,कार
की पूजा करने के लिए,हम भारतीयों में ये बहुत ही अच्छी खूबी होती है,हम
अपनी परम्पराओं का सम्मान करना कभी नही छोडते हैं,और यही बात हमें खास बनाती
है,सो श्री हरीलाल जी की श्रीमति जी पूजा की थाली लेकर आई और अपने
शुभ हाथों से नयी नवेली कार का पूजन करने लगी,सब विधि-विधान करने के बाद
पूजन सम्पन्न हुआ और हम सभी मुहल्ले वाले जो अभी तक दर्शनभिलाशी बनकर आए थे कार के
और अब पूजन के बाद प्रसाद की मिठाई के लिए मिठाइयाभिलाषी भी हो गये थे,की
कब पूजन पूरा हो और हमें नयी कार की मिठाई खाने मिले,तभी
श्री हरीलाल जी ने अपनी श्रीमति जी से प्रश्नवाचक मुद्रा में आते हुये पूछा अरे भाई
आप वो नही लायी लगाने के लिए?,ये सुनकर हम सभी का ध्यान थाली में रखी मिठाई से
हटकर उन दोनों की ओर चला गया,उनकी श्रीमति जी ने श्री हरीलाल जी का इशारा कुशल
पत्नी की तरह समझकर तुरंत सुपर फास्ट ट्रेन की गति से अपने कदमों को घर के अंदर की
तरफ मोड़ा और अंदर से कुछ ही सेकंड के सस्पेन्स के बाद उसे खतम करते हुये अपने
हाथों में एक माला जिस पर कुछ नींबू और एक दो हरी मिर्च लगे थे,के
साथ प्रगट हुईं,जिसे देख श्री हरीलाल जी के चेहरे पर संतुष्टि भरी
मुस्कुराहट आ गयी और वो तुरंत उत्साह से बोल उठे,हाँ ! यही तो मैं कह रह था,ये
नज़ारा देख हम सभी हतप्रभ रह गए थे,मामला कुछ समझ नही आ रहा था,पहले
तो ये लगा शायद कार कि खुशी में नींबू का शर्बत मिलने वाला है पर साथ में मिर्च देख
कॉम्बिनेशन कुछ जमा नही,पर हरीलाल जी से पूछे भी कौन ?,क्यूंकी
उनकी छवि हमारे मुहल्ले में कुछ यूं थी की वो सबसे सवाल-जवाब कर सकते थे,पर
उनसे कोई ऐसा करने की हिमाकत नही कर सकता था,क्यूंकी वो ऐसी गुस्ताखी करने वाले पर विफर कर बरस
पड़ते थे,और इतनी गुस्ताखियाँ उस व्यक्ति से साथ करते थे अपने शब्दों के
प्रहार से,की वो अपना सवाल क्या था,यही
भूल जाता था,और उस घड़ी को कोसना शुरू कर देता था,की
क्यूँ मैंने इनसे कुछ पूछने के बारे में सोचा,इन्हीं सब पुराने अनुभवों
के कारण सभी चुप खड़े थे और पूछने की हिम्मत कोई भी नही कर पा रहा था,तभी
आगे बड्कर श्री हरीलाल जी ने वो नींबू मिर्च की माला ली और गाड़ी में आगे की तरफ
उसे बांध दिया और कहा अब सब ठीक रहेगा,मुझे शायद कुछ ज्यादा ही चुल मची थी अंदर से,की
रहा नही गया,फिर लगा की आज हरीलाल बहुत खुश है,सो
पूछ ही लिया जाये,मैंने कहा भाई साहब ये किसलिए बांध दिये,तो
वे तपाक से बोले जैसे शायद इंतज़ार ही कर रहे हो,की कोई तो पूछे। बोले अरे
ये नींबू मिर्ची लगा देने से नज़र नही लगेगी और गाड़ी बिलकुल सही चलेगी खराब नही
होगी,ये सुन कर मुझे बात कुछ हजम नही हो रही थी,की
इस आदमी ने इतने दिन रिसर्च की,कई लोगों से सलाह ली इतने पैरामीटर की लिस्ट बनाई सब
सही चेक करने के साथ ही इतने सुरक्षा उपकरणों से लैस कार ली,उन
सभी पर भरोसा नही है,ये बात मुझे हजम नही हो रही थी,इसीलिए
मैंने सोचा अब अंदर रखना ही क्यूँ,बाहर उल्टी कर दी जाये तो ही बेहतर,और
पूछा भाईसाहब आपकी गाड़ी में कितने कलपुर्जे हैं ?,तो कहने लगे बहुत से,और
safety के लिए सीट बेल्ट और एयर बेग्स भी होंगे,बोले
बिलकुल सभी चीजों का ध्यान रखा है लेते समय,इंजिन भी लेटैस्ट मोडेल का है,हाइ
एफीश्यंसी वाला,तो मैंने कहा जब आपकी कार में इतने सारे qualities होने के बाद भी आपको भरोसा नही है कि सही से चलेगी या नही,तो
क्या नींबू मिर्ची के भरोसे सही चल पाएगी ?,मेरी बात सुन भाईसाहब शांत खड़े रह गए,और
हम सभी बिन मिठाई के रह गए “मिठाई अभिलाषी”।
बात यहाँ सिर्फ एक हरीलाल जी कि नही है हर जगह हरीलाल
जी है,हम खुद भी शायद कभी कहीं हरीलाल जी कि सोच और नज़रिये से स्थितियों
को देख चुके है,पर यहाँ ठहर कर सोचने की बात तो है,हम
सभी कहीं न कहीं किसी न किसी चीज या बात पर भरोसा या कहें तो विश्वास करते हैं,जब
भी कहीं जा रहे होते हैं तो मन में सकारात्मक विचारों के साथ जाते हैं,कोई
काम शुरू करते हैं तो भरोसे और लगन के साथ की मेहनत से किए जाने वाले में काम में सफलता
जरूर मिलती है,एक विश्वास मन में रख कर आगे बड्ते हैं,पर
यही विश्वास अंध-विश्वास में बदलने लगे तो चीजें बिगड़ना शुरू होने लगती है,जैसे
ऊपर हमारे श्री हरीलाल जी बिल्ली के सामने से गुजर जाने को अशुभ मान कर आगे नही
बड़े और उनकी ट्रेन छूट गयी,एक व्यक्ति किसी काम को निकले और किसी दूसरे को
आसपास छींक आ जाये,तो मन में ये विचार बना लेता है की आज फलां काम नही
बनेगा,बिना उस काम को किए वो नकारात्मकता भरी मानसिकता पैदा कर लेता
है जिस वजह से बंता हुआ काम भी बिगड़ जाता है,गाड़ियों पर नींबू मिर्ची लगा लेता है,की
गाड़ी सही चलेगी वजाए इसके की कोशिश करें की सही और कुशल तरीके से ट्रेफिक नियमों
का पालन करते हुये safety से गाड़ी को चलाएं तो गाड़ी सही चलेगी।
कई जगहों पर जिन बातों में हम अपशगुन मानते हैं
उन्हे शगुन के रूप में देखा जाता है,मैं यहाँ ये साफ कर देना चाहता हूँ की मेरा
उद्देश्य किसी मान्यता या रिवाज़ पर सवाल उठाना नही है,क्यूंकी
हम सभी इस दुनिया में एक विश्वास की डोर से जुड़े है,विश्वास किसी एक शक्ति पर
जो इस संसार को चला रही है,चाहे नाम कुछ भी पुकारा जाये,विश्वास
अपनी अंतरात्मा की आवाज़ पर,जो हमें हर कदम सही और गलत पर आवाज़ देती है,विश्वास
नेक नियत और मेहनत,पर जिसके बूते कुछ भी पाना असंभव नही है,पर
कभी-कभी हम रास्ता भटक कर विश्वास की जगह अंध-विश्वास को ज्यादा एहमियत देना शुरू
कर देते है,जिसके वजह से खुद के साथ-साथ हमारे आसपास लोगों भी
प्रभावित होते हैं,तो विश्वास के साथ आगे बड़ें न की अंध-विश्वास के
साथ।
"तोंद - ये कैसी है पहेली हाय"
अब क्या है ना जनाब की कंट्रोल ही नही होता बस बढ़ता जा रहा है,पहले जब नई-नई जवानी आ रही थी,तो लगता था की क्या स्लिम बॉडी है,क्या आकर्षक पर्सनाल्टी है, क्या बात है हीरो जैसे लग रहे हो,लोगों की तरफ से ऐसे तारीफों से भरे कमेंट आते थे, तो सुनने में बड़ा अच्छा लगता था,जिनका बड़ा हुआ देखते थे तो बड़ी ही लानत भरी नज़रों से उन्हें निहारते थे,क्या साइड हीरो की तरह लगता है,इसका कितना बड़ा है उन पर हँसा करते थे,पर पता नही था एक दिन ऐसा कुछ हमारे साथ भी घटित होगा।
स्वाति बिन संयोग कैसा,बन सकेगा इस काल में।
गर मांझी मैं तो नाव हो सनम तुम,
कुंडली का प्यार हो।
जीना तुम बिन एक पल संभव नही,
चाहे युद्ध हो या तकरार हो।
तकरार बिन फिर प्यार कैसा,
जो भी हो बस तुम्हारे साथ हो,
अगर हो इक पल तकरार का तो
चार पल फिर प्यार हो।
रिश्ता हो तो,ऐसा हो दिलबर,
जिसपर दिल को नाज़ हो,
कल तक था जितना भरोसा।
उससे ज्यादा आज हो।
लाभ-हानि,गम और खुशियां
ज़िन्दगी के योग संयोग हैं,
जो न हो नक्षत्र स्वाति तो,
फिर कैसे मिलन का संयोग है।
शब्द अर्पित,भाव अर्पित,
जीवन का हर अर्थ समर्पित,
स्वप्न अर्पित,मान अर्पित,
जीवन का हर क्षण समर्पित,
तुम कहो और मैं सुनु,
बिन कहे सब तुम जान लो,
तर्क-वितर्क की जगह न हो,
जो तुम कहो स्वीकार है।
हर कसम हर रस्म मुझको,
संग तेरे स्वीकार है,
मुस्कुरा दो,सनम तुम जो इक पल,
पल वही गुलज़ार है।
आज एक करीबी मित्र के घर जाना हुआ,ये मेरे बचपन के साथी हैं,जिनके घर आने जाने के लिए मुझे तकलुफ्फ या कोई फॉर्मेलिटी की जरूरत नही है। जिंदगी में कुछ ऐसे खास दोस्तों का होना जरूरी है,और अगर आपके पास है तो नेमत है ऊपर वाले की,जिनसे आप बिना APPOINTMENT लिए भी मिल सकते हैं,और ऐसी बातें कर सकते हैं जो स्वार्थ,काम और नफा-नुकसान से कोसो दूर हों। इस शाम की शुरुआत हम दोस्तों के बीच यारों वाली गपशप से हुई, भाभी जी ने भी गर्मा-गर्म चाय के साथ पकोड़े बना दिये,सो हमारी तो चांदी हो गयी कि चाय के साथ गर्मा-गर्म पकोड़े आ हा हा हा….. मज़ा आ गया था, बातचीत चालू थी साथ में अब बैठक में हमारी २ और सदस्य जुड़ गए थे, मेरे मित्र की धर्मपत्नी जी यानी मेरी आदरणीय भाभी जी और साथ ही उनका 5 साल का बेटा जिसे हमारी बातचीत में तो नहीं, पर हाँ वहां मेज़ पर रखी हुई पकोड़े के प्लेट में जरूर INTEREST था, हमारी बातें चाय की चुस्की और पकोड़ों के साथ आगे बढ़ रही थी,माहौल बहुत ही खुशनुमा बन गया था, हो भी क्यों न जब सामने हमारे अपने हों तो बातें दिमाग से नहीं दिल से होती है I
बातचीत का दौर चालू था,साथ ही पकोड़े का भी,पास ही मेरे दोस्त का 5 साल का बेटा वो भी पकोड़े का आनंद खेलते हुए ले रहा था, हमारे मित्र को बहुत सारी अच्छी आदतों के साथ एक बुरी आदत भी लगी हुई है,उन्हें बातचीत के दौरान किसी भी आवश्यक हो या अनावश्यक बात पर बीच-बीच में गाली गलौच का उपयोग करने में महारथ हासिल है,जैसे कभी हाँथ से मोबाइल या चाबी गिर जाए तो तुरंत मुँह से "कुत्ता, कमीना, हरामखोर….. आगे बस लिख नही सकता आप बस भावनाये ही समझ कर काम चला लें, क्योंकि हमारे तथा-कथित सभ्य समाज में निर्जीव चीज के लिए भी प्रयोग की जाने वाली भाषा मुह से तो कुछ भी कहने की अज़ादी है पर लिखने की आज़ादी नही है उसे उछलता माना जाता है,खैर आप सभी तो समझने में उस्ताद हैं,तो बस समझ जाइये खैर अब आगे बढ़ते हैं,और हमारे मित्र उन्हें ऐसा करते हुए याद भी नही रहता न ही कभी उन्हें इस बात का कोई गिला न मलाल हुआ, वो तो बस यूं ही बहते हुए बातों में कह दिए जाते थे,कई बार उनके साथ महफ़िलों में शरीक़ हम जैसे मित्रों को उनके इस आज़ादी से भरे उन्मुक्त व्यवहार से असहजता का सामना करना पड़ा है,चलिए हम तो फिर भी मित्र ठहरे सो ठीक,कई बार उनकी धर्मपत्नी को भी शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा,पर हमारे मित्र को टोके जाने पर भी उन्हें कभी अपना इस तरह का शब्द प्रयोग गलत न लगा,आज जब हम उनके घर पर बैठकर पकोड़े के आनंद ले रहे थे,तब भी वो किसी न किसी बात पर गाली का प्रयोग पकोड़े में चटनी की तरह लगा कर रहे थे,बात करते-करते उन्होंने TV का रिमोट उठाया और चैनल बदलने लगे शायद रिमोट के सेल कुछ कमजोर लगे थे या उसमें कोई समस्या थी सो एक दो बार बटन दबाने पर भी जब रिमोट न चला सो उन्होंने बाकायदा अपनी आदत अनुसार रिमोट को भी एक-दो जुमलेदार गालियां "साला हरामखोर आगे बीप बीप बीप सेंसर है भाई लोग" सो समझ जाएं,मैंने उनके हाँथ से रिमोट लिया और उसके सेल को निकाल कर फिर से अच्छे से लगा दिया तो रिमोट चलने लगा,फिर मैने उनकी तरफ मुस्कुरा कर देखा और कहा अरे यार सेल ढीले हो गए थे बस,क्या तुम भी गालियां देने लगे... उन्होंने मेरी बात को उन्ह... कहकर उड़ा दिया हमेशा की तरह,तभी पास में खेल रहे उनके बेटे के खिलौने वाली गाड़ी जो कि रिमोट से चला कर खेल रहा था, उसके रिमोट में शायद कुछ दिक्कत आने लगी थी वो लगातार उसके बटन जोर से दबा कर उसे चलाने की कोशिश कर रहा था पर शायद कामयाबी नही मिल रही थी, तभी उसने भी उस रिमोट को जोर से हांथों पर मारते हुए अपनी तोतली भाषा में कहने लगा "छाला भोछलिका" चल नही रहा.....उस नन्हे बच्चे के मुह से निकले इन शब्दों ने कमरे में सन्नाटे का बम फोड़ दिया मैं,मेरे मित्र और उनकी धर्म पत्नी तीनों एक दम सन्न रह गए थे,कुछ पल के सन्नाटे के बाद एका एक भाभी जी बच्चे पर बरस पड़ी क्या बकवास कर रहे हो? कैसी बात बोलते हो? कहा से सीखा ये सब बगैरह-बगैरह बच्चा बड़े ही भोले पन से उनकी इस डांट को सुन रहा था या कहूँ तो समझने की कोशिश कर रहा था,उसने ऐसा क्या कर दिया जो इतनी बरसात हो गयी डांट की,भाभी जी बस बरसती ही जा रही थी तभी मेरे मित्र ने भी गुस्से से कहा बोलो बेटा मम्मी कुछ पूछ रही है,उस 5 वर्षीय अवोध बालक ने बड़े ही मासूमियत से जवाब दिया पापा का जब भी रिमोट नही चलता तो पापा भी तो ऐसे ही कहकर रिमोट को ठीक कर लेते हैं, उसका इतना सा कहना था और मेरे मित्र का चेहरा शर्मिंदगी से नीचे हो गया,उस कमरे का माहौल अब कुछ अजीब हो चला था,सो मैंने बच्चे को उस कमरे से जाने को कहा और बाहर जाकर आंगन में खेलने को कहा,बच्चे के जाने के बाद मेरे मित्र की पत्नी का गला रुंध से गया और वो अपने पति देव पर बरस पड़ी कितनी बार कहा है इस तरह से बातों में गाली गलौच का प्रयोग मत किया करो,पर आप कभी किसी की नही सुनते हैं,आप घर में जब चाहें छोटी-छोटी बातों पर ऐसा करते रहते हैं,यह भी याद नही रखते की आस-पास बच्चे हैं,मेरे मित्र के झुके हुए सर के साथ मुह से सिर्फ इतना ही निकला कि सॉरी आज के बाद दोबारा ऐसा नही होगा,उन्होंने मुझसे भी माफी मांगी क्योंकि कुछ पल पहले ही मैंने भी उन्हें इसी आदत के लिए टोका था,उस दिन से मेरे मित्र ने इस आदत से तौबा कर ली।
साथियों ऐसे कई सारे लोग हमारे आस-पास हैं,शायद हमारे घर में भी है या हो सकता है इस आदत के शिकार आप और हम भी हों क्योंकि बुरी चीजे कब आदत बन जाती है पता नही चलता और गाहे-बगाहे हम और हमारे परिवार जन और मित्र गण असहजता और शर्मिंदा से दो-चार होते हैं,परिवारजनों और खासकर बच्चों और अपने अनुजों के सामने अपने व्यवहार और बातचीत को बहुत ध्यान में रखते हुए प्रयोग में लाना चाहिए,क्योंकि हमारे छोटे हमें बहुत अधिक फॉलो करते हैं,आप माने या न माने आप और हम यदि घर परिवार और आस-पड़ोस में बड़े हैं तो अपने से छोटों के लिए हम रोल मॉडल ही होंगे, वो जिसे वो सबसे पहले देखकर सीखने की कोशिश करते हैं,अब ये हम पर निर्भर करता है,कि हम उन्हें अपनी शख्सियत की कौन-सी तस्वीर पेश करते हैं, तो अपने व्यवहार,विचार और अभिव्यक्ति को कुछ ऐसा बनाइये ताकि वो आपके व्यक्तित्व को तो संवारे ही,साथ-साथ उस की खुशबू से और भी कोई देखकर सीखकर महक सके क्योंकि शायद कहीं आपको भी न पता चले की कोई आपसे बहुत कुछ सीख रहा है,तो अगली बार जब कहीं बोले तो ज़रा ज़बान संभाल के.....!