सवाल-ज़िंदगी 50:50!!!
अक्सर
हम देखते हैं कि हमारी ज़िंदगी सवाल पूछते-पूछते ही निकाल जाती है,जैसे मैं परीक्षा में पास हो पाऊँगा या नहीं, ये हो गया तो मेरी नौकरी कब लगेगी?,नौकरी लग गई तो
मेरी शादी कब होगी ?,उसके बाद मेरे बच्चे उनकी पड़ाई और उनका
भविष्य कैसा होगा ?, मेरा रिटायरमेंट के बाद बुड़ापा कैसा
कटेगा??? वगैरह-वगैरह,एक जिंदगी और
इतने सारे सवाल बाप-रे-बाप,और अगर इसे पड़ने वाले आप अगर ये
सोचकर मुस्कुरा रहे हों कि हम तो भाई इस बिरादरी में नहीं आते तो आप गलत हैं, ज़रा पिछले कुछ दिनों की अपनी दिनचर्या को याद कर लीजिएगा आप भी इस गाड़ी
की सवारी कर रहे होंगे कि अरे ये कैसे होगा,वो कैसे होगा, जैसे सवालों से घिरे होंगे।
औसतन
एक व्यक्ति अपने जीवन का बहुत बड़ा हिस्सा किसी काम को करने में कम और उसके बारे
में सोचने में ज्यादा बर्बाद कर देता है,जबकि कोई भी सवाल हो, चाहे वो कितना भी गंभीर हो
क्यों न हो उसका जवाब ढूंड्ना उतना ही आसान है,ऊपर लिखे सवाल
हर किसी के जीवन का एहम हिस्सा बनकर कभी न कभी सामने आते हैं,पर इन सवालों को लेकर चिंताग्रस्त रहने से अच्छा है ज्यादा मेहनत इस बात पर
ज़ोर देकर की जाए की इसका हल क्या है, कहते हैं सवाल पूछना बहुत
आसान काम होता है क्योंकि हर एक वाक्य के बाद आपको सिर्फ एक “?” प्रश्नवाचक चिन्ह ही तो लगाना है,पर मंज़िलें उन को मिलती
हैं, जो हर एक वाक्य के बाद लगने वाले प्रश्नवाचक चिन्ह को “.” मतलब पूर्णविराम में बदल कर उसका
हल निकाल दें ।
सवाल
और जवाब ज़िंदगी नाम के सिक्के के दो पहलू की तरह हैं,अब ये हम पर मतलब सिक्का उच्छालने वाले पर
निर्भर करता है,की वो ज़िंदगी को सिक्के के किस पहलू पर रखकर
उछालता है।
सोचना
हमें है कि ज़िंदगी भर सिर्फ सवाल पूछते रहना हैं या उन सवालों के जवाब निकाल कर
आगे भी बढ़ना है।
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