Saturday 26 March 2016

“गुड़िया- एक कहानी अपनी सी”

“गुड़िया- एक कहानी अपनी सी”

ये बात कुछ साल पुरानी है,सुनने में ये सामान्य सी घटना है लेकिन किसी की ज़िंदगी के कुछ पल उसकी सारे सफर की दिशा और दशा तय कर देते हैं और ऐसी घटनाएँ हमारे आस-पास अक्सर होती भी रहती हैं,पर शायद हमारा ध्यान इन पर इतना ज्यादा नहीं जाता,ऐसी ही एक घटना ने मुझे अंदर तक झक-झोर कर तो रख ही दिया बल्कि मेरे लिए एक प्रेरणा पुंज भी बन गयी।
इस बात की शुरुआत होती है कुछ साल पहले हमारे पड़ोसी के परिवार से जहां श्री मिश्राजी,उनकी धर्म-पत्नी और दो बच्चे रहते थे, एक बेटा और एक बेटी,जीवन सामान्य मध्यम वर्गीय परिवार की तरह चलता था,जहां संसाधन सारे थे और जरूरतों को पूरा करने के लिए किसी चीज की कमी नहीं थी,उनका बेटा मनीष उनकी बेटी “गुड़िया” से 3 साल बड़ा था,और दोनों भाई-बहन एक ही स्कूल में पड़ते थे,और यहाँ अगर आप ये सोच रहे हों कि उनके घर में बेटे और बेटी में कोई भेद-भाव किया जाता था तो आप गलत सोच रहे हैं,उनके घर में ऐसा कुछ नहीं था पर हाँ “इंसान कोयले की कोठरी में कितना भी बचकर रहे थोड़ा बहुत कालिख लग ही जाती है”, गुड़िया पड़ने में बेहद होशियार थी,अपने भाई से तेज और हमेशा अपनी क्लास में अव्वल आया करती थी और पेंटिंग भी बहुत बड़िया किया करती थी उसके टीचर कहा करते थे कि अगर गुड़िया को सही दिशा दे दी जाए तो वह बहुत अच्छी पेंटर बन सकती है, श्रीमती मिश्रा यूं तो अपनी बिटिया गुड़िया को बहुत प्यार करती थी लेकिन जब गुड़िया 5वी क्लास में आई तो उन्हें ये लगने लगा कि गुड़िया “एक लड़की है” जो की समान्यतः लड़के-लड़की में अंतर करते समय आ ही जाता है, और उसे घर के कामों में ज्यादा ध्यान देना चाहिए,उसका भाई घर के काम करे न करे पर गुड़िया का ये जन्म- सीध फर्ज़ बनता है,और उसे इसे पूरा करना चाहिए चाहे कोई भी नुकसान हो जाए।
घर के काम सीखना और सिखाना गलत नहीं था, क्योंकि शुरुआत में श्रीमती  मिश्रा के लिए गुड़िया से घर के काम कराना उतनी प्राथमिकता पर नहीं था,पर जैसे-जैसे समय बीतता गया श्रीमती मिश्रा के लिए गुड़िया की पढ़ाई और उसकी पेंटिंग दूसरे नंबर पर और घर के काम गुड़िया से करवाना प्राथमिकता बनती जा रही थी,जिसका नतीजा ये होने लगा की गुड़िया अब पढ़ाई में पिछड्ती जा रही थी अब वह क्लास में अव्वल न होकर सिर्फ औसत अंकों से पास हो रही थी, और उसके हांथों से पेंटिंग ब्रुश और पेंटिंग से रंग जैसे मानो उड़ से ही गए थे,इस मानसिक दवाव का असर उसके स्वभाव पर भी दिख रहा था अब गुड़िया पहले की तरह फूल से खिली नहीं रहती थी हमेशा आत्मकुंठा में बुझी-बुझी सी रहने लगी थी,समय का पहिया ऐसे ही चलता जा रहा था और देखते ही देखते गुड़िया 10वी बोर्ड कक्षा में आ गयी, पर श्रीमती मिश्रा को इस बात की कोई फिकर न थी कि गुड़िया को अपनी पढ़ाई के लिए सारे संसाधन मिलें और भरपूर समय भी दिया जाए,और अच्छे परिणाम लाने के लिए उसे प्रोत्साहित किया जाए,इसके उलट वो अब गुड़िया को नए नए चाइनीज पकवान बनाने की कला सीखने का दवाव “बना रही थी, और हमेशा एक वाक्य के साथ अपनी बात पूरी करती थी “ससुराल जाएगी तो क्या नाक कटाएगी?” जिसका नतीजा गुड़िया के 10वी बोर्ड के परिणाम में दिखा और बचपन से सभी विषयों में मेधावी गुड़िया को एक विषय में फ़ेल होना पड़ा।
श्रीमती मिश्रा को इस बात का कोई मलाल नहीं था और उन्होने इसका कारण भी तलाशने की कोई कोशिश नहीं की, कि उनकी गुड़िया जो की बचपन से सभी विषयों में इतनी होशियार थी अचानक वही विषय उसकी कमजोरी कैसे बन गए,वो तो बस गुड़िया को ही दोषी ठहराने में लगी थी और उसे ये कहकर कि तुम पढ़ाई में कमजोर हो इसीलिए स्कूल जाना कम करो और आगे की पढ़ाई घर से ही करनी होगी। मन मार कर गुड़िया ने ये फैसला स्वीकार कर लिया।
लेकिन कहते हैं न कि “पानी अपना रास्ता खुद ही बना लेता है”,और ठीक उसी तरह गुड़िया की किस्मत ने मंज़िल तक पहुँचने का रास्ता ढूंढ लिया,उसे एक और मौका दिया श्रीमती मिश्रा की एक रिश्तेदार जो उनकी बुआ लगती थी,बीमार पड़ी तो श्रीमती मिश्रा ने अपनी ट्रेनिंग जो की वो गुड़िया को इतने साल से दे रही थी अपने रिशतेदारों के सामने प्रदर्शित करने के लिए गुड़िया को कुछ दिनों के लिए उनके यहाँ रहने भेज दिया और कहा कि स्कूल भी वहाँ से पास है वहीं से स्कूल भी चले जाना,गुड़िया वहाँ जब गई तो घर के काम तो उसे करना पड़ रहा था पर मानसिक रूप से स्वतंत्र होकर पढ़ाई करने के मौके उसे ज्यादा मिल रहे थे,जिनका उपयोग गुड़िया बहुत बेहतर तरीके से कर रही थी, और नतीजा पहले तिमाही परीक्षा के परिणाम में ही दिख गया जो गुड़िया पिछले कुछ सालों में औसत अंको से सिर्फ पास हो रही थी वह इस बार अपनी क्लास के टॉप 3 बच्चों में आई थी। इस छोटी-सी जीत ने गुड़िया में वही पुराना आत्म-विश्वास भर दिया था,गुड़िया की बुआ उसकी प्रतिभा जानती थी,और श्रीमती  मिश्रा के स्वभाव को भी इसीलिए जब उनकी तबीयत ठीक होने लगी और जब श्रीमती मिश्रा अपनी बेटी गुड़िया को वापस बुलाना चाह रही थी,तब उसकी बुआ ने उसे बहाने से रोक लिया,ताकि उसकी फड़ाई मे कोई ख़लल न पड़े और गुड़िया को पढ़ाई के लिए समय और बेहतर संसाधन उपलब्ध कराये, जिसकी वजह से गुड़िया अपनी 12 वी बोर्ड की परीक्षा में पूरे जिले में प्रथम स्थान पर आई।
और गुड़िया उसके इस परिणाम से आत्मविश्वास से भर गयी, उसके चेहरे पर वही  पुरानी खुशी लौट आई थी और उसने जीवन में कभी भी हार न मानने और खूब मेहनत करने की ठान ली,जिसके बलबूते वह आज एक सफल चार्टर्ड अकाउंटेंट है,और अब उसकी माँ श्रीमति मिश्रा उसे ये नहीं कह पाती कि “ससुराल जाएगी तो क्या नाक कटाएगी?” उल्टा परिवार और समाज के लोग ही श्रीमति मिश्रा को  बधाई भरे स्वर में कह जाते हैं कि गुड़िया जिस भी परिवार में जाएगी “मायके वालों का खूब मान बड़ाएगी
इस वाकिए ने श्रीमति मिश्रा को इस बात का एहसास कराया कि वो खुद एक महिला होते हुए भी अपनी बेटी गुड़िया के रूप में महिलाओं को बराबरी का दर्जा और मौका नहीं दे रही थी,और कहीं न कहीं उनके अरमानों और तमन्नाओं को दबा रही थी।इस एहसास के बाद अब वो गुड़िया के अरमानों को दबाती नहीं बल्कि उसके साथ उन्हें पूरा करने के लिए खुद भी खुशियों के पंख लगाकर उड़ने का मन रखती हैं।
और हमारी गुड़िया जो अब चार्टर्ड अकाउंटेंट बन गयी है,अपने जीवन के अकाउंट को दुरुस्त रखने के साथ साथ दूसरों के पैसों और बहीखातों का भी हिसाब रखने में मदद करती है।



                                                         

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