Wednesday 6 February 2019

"असर-आज नही तो कल ज़रूर होगा "

    "असर-आज नही तो कल ज़रूर होगा "
आज तक सिर्फ सुना था, कि "जैसी संगत तैसा असर",लेकिन पिछले दिनों मेरे आंखों के सामने एक वाक़िया घटित हुआ,जिसने इस कहावत को मेरे लिए प्रमाणित कर सही साबित किया,बात कुछ दिन पुरानी है, मेरा एक परिचित के कार्यक्रम में जाना हुआ,साथ में मेरे एक मित्र भी थे जिन्हें पान,तम्बाकू और गुटका जैसे उनके अनुसार जीवनदायीं, अमृत के समान लगने वाले पदार्थों का सेवन अतिप्रिय है।इस बात पर कई बार हम दोनों के बीच बाद विवाद भी हुआ कि इनका सेवन करना सही है,या नही,मैंने एक मित्र होने के नाते कई बार उन्हें इसे छोड़ने को कहा पर वो न माने।कई बार उन्हें सामाजिक स्थलों पर इसे न खाकर जाने या न खड़े होने को कहा,तो बहानों की लंबी लाइन सुना देते। मैंने उन्हें कई बार टोका की सामाजिक स्थलों पर गुटखा का सेवन कर जाना और वहीं कहीं पर भी थूक देना आपकी प्रतिष्ठा को शोभा नही देता,और सामान्य तौर पर अति अशोभनीय कृत्य लगता है।पर वो मुझे प्रवचन न देने का कहकर बात बदल देते थे,पर उस दिन जब हम दोनों साथ उस कार्यक्रम में शिरकत करने गए तो उन्होंने प्रवेश से पहले अपने चिर-परिचित अंदाज़ में अपना पसंदीदा गुटखा निकाला और काफी heroism के अंदाज में अपने मुँह में उसे प्रवेश कराया,मैंने अपने मित्र होने का फर्ज फिर अदा करते हुए उन्हें ऐसा करने से रोका की सार्वजनिक क्षेत्र में इस तरह गुटखा,तम्बाकू का सेवन गलत है,कानूनन भी और सामाजिक सरोकार से भी,और अशोभनीय लगता है।पर उन्होंने मेरी बात इस बार भी अनसुनी कर दी। मैं भी हार मान कार्यक्रम स्थल की ओर बढ़ने में ही भलाई समझी और उनके साथ में अंदर चला गया। अंदर जाने पर कार्यक्रम बहुत अच्छा और भव्य था जहां लगभग सभी लोग सभ्य ही दिख रहे थे,जो अपने परिवारजनों, या मित्रों के साथ वहां आये हुए थे। जिनके मुँह में न तो गुटका था,न वो किसी प्रकार की तम्बाकू या नशीले पदार्थों का सेवन कर रहे थे।जिन्हें देखकर मेरे मित्र थोड़ी ही देर में थोड़ा असहज होने लगे,कि अरे यहां तो मेरे जैसा तो कोई भी नही कर रहा।उनकी असहजता बेचैनी में तब बदल गई जब उन्हें कहीं भी कोई गंदा कोना अपने मुँह में भरी हुई  भारी भरकम अद्वितीय गुटके की पीक को थूकने को नही मिल रहा था।क्योंकि सभी ओर साफ सफाई थी,कार्यक्रम स्थलका फर्श और कोने भी साफ और चमक रहे थे,साथ ही वहां आये हुए लोगों के चेहरे भी। जिसे देख कर मेरे मित्र को अपने इस क्रिया पर शायद पहली बार आत्मगिलानी का अनुभव हुआ और अगले ही पल उन्होंने मुझसे कहा कि उनका यह कार्य वाकई गलत है,कि वो सार्वजनिक जगहों पर इस तरह गुटके का सेवन करते है,साथ ही पीक को थूक-थूक कर यहां वहां गंदगी फैलाते है।ये सुन मुझे एहसास हुआ कि वाकई आपके द्वारा किये जाने वाले कार्यों और मिलने वाली प्रेरणा में आपके आसपास के माहौल का एहम योगदान है।जैसा वातावरण हमारे आसपास होगा वैसा ही हमारे आचरण व्यवहार में प्रदर्शित होगा।और मेरा विश्वास इस बात पर और भी ज्यादा बड़ा दिया की अगर आप अपने सही सोच और कार्य पर अडिग हैं,तो परवाह मत करिये आगे बढ़िए,कभी न कभी कहीं न कहीं लोग अपने बुरे विचार छोड़,आपके साथ सही रास्ते पर आगे बढ़ने लगेंगे। 

2 comments:

  1. Bahot accha lekh hei. Kam shabdo me gahri baat kahi he sir aapne.

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    1. आपके इन शब्दों के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आपके शब्द निश्चित तौर पर ये प्रेरणा दयाक है मेरे लिए।

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