“पाती सांझ की”-
“कमर झुकी
कुछ इस तरह,कि उम्र हुई यारो,
फिर भी बाकी
है लौ,नहीं अभी बुझी यारो ,
कि इंतज़ार
करता हूँ,मै इसका ये पता नहीं ,
पर उम्मीद
है ,कि लेने आएगा कोई कभी मेरी खबर भी
सही,
कि इस सफर
मे हमने जमी को आसमा से मिलते देखा है यही,
पर पता न था कि जन्नत की चाह मे कमर भी झुक जाएगी यही,
आज देखता
हूँ तो लगता है चला आ रहा है मेरा अक्स मेरी ओर यही,
देख वही चाल,वही ढाल,वही रंग रूप सही”।
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