उम्र के एक पड़ाव पर जब बुढ़ापा दस्तक देता है,तो शरीर की ताक़त के साथ-साथ,कुछ रिश्ते जैसे कभी-कभी
अपनी संतान भी जिनके लिए उम्र भर सोचा,जिनके लिए सारा जीवन जिया और हर काम किया वो
भी दूर होने लगते है,कभी हमारे हर दिन की शुरुवात जिनसे और अंत भी जिनके लिए हुआ
करता था। जिनके लिए हमने समय दिया उनके पास आज हमारे लिए ही समय नहीं बचता और वो हमें
ज़िन्दगी में “चुका हुआ” जानकर किसी कोने में छोड़कर आगे बढने लगते हैं।
ऐसे में दो रास्ते बचते हैं या “तो मनमार कर और दुखी होकर बाकी की ज़िन्दगी
रो-रोकर बिताये” या दूसरा रास्ता “अपनी हिम्मत को बटोर कर दुबारा खड़े हो और ऊपर
वाले की दी हुई इस खूबसूरत नेमत “ज़िन्दगी” के बचे हुए पलों को बड़ी खूबसूरती के साथ
जियें और जो अरमान और सपने अपने बच्चों की जरूरतों को पूरा करने में आप नहीं जी
पाए उन सभी को जी भर कर जियें और पूरा करें”।
इस बात की जीती जागती मिसाल हमें मिली “आनंदाश्रम वृद्धाश्रम” में हमारे द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम “एक दिन दादा-दादी के साथ” में मिली
हालाँकि इसे “वृद्धाश्रम” कहना मुझे सही नहीं लगता इसका नाम “सेकंड इनिंग हाउस” होना
चाहिए क्योंकि यहाँ के सभी सदस्य भले ही अपनी उम्र से बुजुर्ग हो लेकिन अपनी सोच
और ऊर्जा से किसी भी युवा से कम नहीं है।इसका जीवंत उदाहरण यहाँ की एक महिला सदस्य है,जिनका आधा
चेहरा लकवे से पीड़ित है,उसके बाद भी हमारे साथ बेहद्द ख़ुशी और जोश के साथ भजन गा
रही थी। यहाँ सभी सदस्य एक दुसरे के साथ एक परिवार की तरह रहते हैं अगर कभी कोई एक गिरता
हैं तो उसे सँभालने के लिए दूसरा खड़ा हो जाता है,ये वही सहारा है जो कभी इन लोगों
ने अपने परिवार और बच्चों से चाहा था और उन्हें नहीं मिला। पर अब ये लोग इन सब बातों
से कहीं आगे निकल चुके हैं,और कमर कस कर जोश के साथ तैयार है अपनी जीवन की “सेकंड
इनिंग” को जीने के लिए जिसमे अब ये आज़ाद है,अपनी इक्षाओं को पूरा करने के लिए,आज़ाद
है फिर अपने सपनों के कैनवास पर नए रंग भरने के लिए।
“प्रभव वेलफेयर सोसाइटी” का हर सदस्य यही प्रार्थना करता है,“ आनंदाश्रम” का
हर सदस्य अपने घर वापस लौट जाये लेकिन सिर्फ तभी जब उनके अपने बच्चे उन्हें आदर और
सम्मान के साथ अपने साथ रखें। हम सभी ने कभी ईश्वर को नहीं देखा सभी लोग उसे ढूंढने जाते है देवालयों में जाते हैं,पर ये भूल जाते हैं
की ऊपर वाले ने हमें हमारे माता पिता के रूप में साक्षात् ईश्वर हमारे घर में दिए
है,ये बहुत अमूल्य संपत्ति हैं इन्हें बड़े सम्मान और प्यार से सहेज कर रखिये ये
दोबारा नहीं मिलने वाले।
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