Tuesday 31 January 2017

“अनरय-समाज के काएदे”

अनरय-समाज के काएदे
होली का त्यौहार नज़दीक था,सभी जगह होली की तैयारियां ज़ोरों पर थी,6 साल का विशु अपने घर पर बहुत उत्साह के साथ होली की तैयारियों में जुटा था,क्योंकि उसकी परीक्षा भी पूरी हो चुके थे,वो अपनी माँ के पास गया जो की इस समय रसोई में होली के त्यौहार पर आने वाले मेहमानों के लिए पकवान बना रही थी,उनके पास जाकर अपने लिए नयी पिचकारी और रंगों की फरमाइश करने लगा पर माँ ने ये कहकर उसका जोश ठंडा कर दिया की इस साल वो होली नहीं खेल सकता,इस साल की होली “अनरय” की होली है,क्योंकि कहीं किसी दूर की रिश्तेदारी में किन्ही बुजुर्ग का जिन्हें उन्होंने कभी देखा भी नहीं था 10 महीने पहले स्वर्गवास हो गया था,जब विशु नहीं समझा तो उन्होंने कहा की लोग क्या कहेंगे और समाज के नियम के अनुसार ये दुःख की होली है तो हम नहीं मना सकते,ये सुनकर उदास विशु ने अपने निश्छल मन से अपनी माँ की ओर  देखकर पुछा कि यदि ये दुःख की होली है तो आप रसोई में ये पकवान क्यों बना रही है?अपने बेटे के मुंह से ऐसा सवाल सुनकर वो भी निरुत्तर हो गयी ...........

1 comment:

  1. It is the sense of attentiveness. And a lot there is ......the better thing is that change your own self in lieu of making changes in people.

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