Wednesday 5 August 2020

“सुंदरकाण्ड-एकपथप्रदर्शक रस सरिता” ***रस प्रवाह क्र॰-15***

सुंदरकाण्ड-एकपथप्रदर्शक रस सरिता


    ***रस प्रवाह क्र॰-15***      

प्रसंग : श्री राम-हनुमान्‌ संवाद-

सुनु कपि तोहि समान उपकारी। नहिं कोउ सुर नर मुनि तनुधारी ॥

प्रति उपकार करौं का तोरा। सनमुख होइ न सकत मन मोरा॥3॥

भावार्थ:-

(भगवान्‌ कहने लगे-) हे हनुमान्‌! सुन, तेरे समान मेरा उपकारी देवता, मनुष्य अथवा मुनि कोई भी शरीरधारी नहीं है। मैं तेरा प्रत्युपकार (बदले में उपकार) तो क्या करूँ, मेरा मन भी तेरे सामने नहीं हो सकता॥3॥

सम्पूर्ण कार्य सम्पन्न करने के बाद भी कभी अपने को श्रेय न देना अगर सीखना है,तो हनुमान जी से सीखो जब लंका विध्वंस करके,माता सीता का पता लगा के वापस आए,तो श्रीराम के सामने जाकर खुद से अपने किए कार्य का बखान नही करने लगे।  सीखने वाली बात है की कभी कोई कार्य करें तो डिटेल्स तो पूरी रिकॉर्ड में रखे। लेकिन बिना किसी के पूछे उसको गाते न फिरें उससे आपके किए कार्य का महत्व कम हो जाता है,और आप में स्वयंभू होने का अभिमान भर जाता है।

जब कभी आपको आपके कार्यक्षेत्र में किए गए कार्य के लिए तारीफ मिले,तो अभिमानित न हो,कभी घमंड से न भर जाए,अक्सर ये देखा जाता है,कि हम लोग जरा सी तारीफ मिलने पर यह भाव मन में भर लेते हैं,की हम है,तो ये सब हो रहा है,नही तो हमारे बिना कोई और ये सब नही कर सकता है। बस यही विचार आपके बौद्धिक पतन का कारण बनता है,ऐसे समय क्या आचरण करना चाहिए अगर ये सीखना है तो सुंदरकाण्ड और हनुमानजी से सीखिये,जब श्री राम ने उनके द्वारा किए गए कार्य की सरहना की तब उन्होने अत्यंत ही कोमल वचन कहे-

सो सब तव प्रताप रघुराई। नाथ न कछू मोरि प्रभुताई॥5॥

भावार्थ:- यह सब तो हे श्री रघुनाथजी! आप ही का प्रताप है। हे नाथ! इसमें मेरी प्रभुता (बड़ाई) कुछ भी नहीं है॥5॥

जब भगवान राम उनके अनुकरणीय कार्यों के लिए श्री हनुमान की प्रशंसा करते हैं,तो श्री हनुमान बताते हैं कि वे सौंपे गए कार्य को पूरा कर सके,क्योंकि उन्होंने भगवान श्री राम को अपने दिमाग में रखा था,और यह उनकी कृपा के कारण था। कि वह अपने ध्येय में सफल रहे। प्रशंसा के वक़्त भी विनम्रता का भाव मन में रखिए,सफलता के शिखर पर आप और भी आगे बड़ते जाएंगे।

सीख:

v  सर्वशक्तिमान परम शक्ति में विश्वास रखो। कि वो आपके साथ है,ब्रह्मांड की सकारात्मक शक्ति आपके साथ है।

v  विनम्र रहे,यह "मैंने किया था" केंद्र बिन्दु नहीं होना चाहिए, यदि आप कुछ अच्छा कर रहे है या किसी कार्य में अच्छे है,तो अंततः लोग आपका महत्व महसूस करेंगे।

v  जब आप दूसरों का भला करते हैं,तो न ही खुद याद करें और ना ही उन्हे याद दिलाते रहे,कि मैंने आपके लिए ऐसा किया है।क्योंकि इससे उम्मीदें बढ़ती हैं, जो आपके लिए और दूसरों के लिए भी दुख का कारण बनती है

v  किसी व्यक्ति की अच्छाईयों और योग्यता को कभी भी छिपाया नहीं जा सकता है, यह देर सवेर सबक सामने आ ही जाती है। इनका डिंडोरा पीटने कि जरूरत नही होती है,मतलब इसे मार्केटिंग की जरूरत नहीं है।

 NOTE:

v  यहाँ लिखा गया हर एक शब्द सिर्फ एक सूक्ष्म वर्णन है “सुंदरकाण्ड” का सम्पूर्ण नही,यह एक कोशिश है,उस अनुभव को सांझा करने की जो “सुंदरकाण्ड” से मैंने महसूस करे।अगर कुछ त्रुटि हो गयी हो तो कृपया कमेंट बॉक्स के माध्यम से जरूर बताए।मैं फिर यह कहना चाहता हूँ,यह धर्म या संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए नहीं है,लेकिन यहां सांझा किया गए “सुंदरकाण्ड” के सबक और उनकी शिक्षा सभी मनुष्यों के लिए उपयोगी हो सकते हैं,चाहे वह किसी भी धर्मजाति या धर्म के हों।


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