Wednesday 5 August 2020

“सुंदरकाण्ड-एकपथप्रदर्शक रस सरिता” ***रस प्रवाह क्र॰-16***

सुंदरकाण्ड-एकपथप्रदर्शक रस सरिता


   ***रस प्रवाह क्र॰-16***     

प्रसंग : श्री राम का सेना संग समुद्र तट पहुँचना और रावण का अपने मंत्रियों से सलाह लेना-

सचिव बैद गुर तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस ।

राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास॥37॥

भावार्थ :- मंत्री, वैद्य और गुरु- ये तीन यदि (अप्रसन्नता के) भय या (लाभ की) आशा से (हित की बात न कहकर) प्रिय बोलते हैं (ठकुर सुहाती कहने लगते हैं), तो (क्रमशः) राज्य, शरीर और धर्म- इन तीन का शीघ्र ही नाश हो जाता है॥37॥

श्री हनुमान से संदेश प्राप्त करने के बाद,श्रीराम वानर सेना सहित समुद्र के दूसरी ओर पहुँच जाते हैं।इस समाचार को प्राप्त करते हुए रावण अपनी सभा बुलाता है और अपने सभासदों और मंत्रियों से सुझाव मांगता है,कि अब क्या किया जाना चाहिए। वे इस बात पर हंसते हैं और रावण की प्रशंसा करते हैं,कि आपको चिंता करने कि क्या जरूरत है और उसके अहंकार को संतुष्ट करते हैं।

सीख: यह प्रसंग मानव जीवन के लिए बहुत महत्व रखता है,जिसे हर व्यक्ति को ध्यान से समझ लेना चाहिए-

v  हमेशा अपने आसपास के लोगों से सलाह लेते वक़्त सतर्क रहें। अनुकूलन मतलब आपको प्रिय लगने वाली बातें आपको विकास के पथ पर नहीं ले जाएगीं। विशेष रूप से तीन लोग : चिकित्सक,शिक्षक और सहायक या सचिव, यदि ये तीनों आपको सच्ची जानकारी और प्रतिक्रिया नहीं देते हैं और केवल आपको खुश करने की कोशिश करते हैं,तो आपका पतन सुनिश्चित है।

v  हमेशा अपने आसपास उन लोगों को रखें जो आपको सच्ची प्रतिक्रिया दें,झूठी प्रशंसा कानों को खुश कर सकती हैं, लेकिन यह निश्चित रूप से आपके विकास में मदद नहीं करेगी।

 NOTE:

v  यहाँ लिखा गया हर एक शब्द सिर्फ एक सूक्ष्म वर्णन है “सुंदरकाण्ड” का सम्पूर्ण नही,यह एक कोशिश है,उस अनुभव को सांझा करने की जो “सुंदरकाण्ड” से मैंने महसूस करे।अगर कुछ त्रुटि हो गयी हो तो कृपया कमेंट बॉक्स के माध्यम से जरूर बताए।मैं फिर यह कहना चाहता हूँ,यह धर्म या संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए नहीं है,लेकिन यहां सांझा किया गए “सुंदरकाण्ड” के सबक और उनकी शिक्षा सभी मनुष्यों के लिए उपयोगी हो सकते हैं,चाहे वह किसी भी धर्मजाति या धर्म के हों।

 


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