Wednesday 5 August 2020

“सुंदरकाण्ड-एकपथप्रदर्शक रस सरिता” ***रस प्रवाह क्र॰-17***

सुंदरकाण्ड-एकपथप्रदर्शक रस सरिता


***रस प्रवाह क्र॰-17*** 

प्रसंग: विभीषण का भगवान्‌ श्री रामजी की शरण के लिए प्रस्थान और शरण प्राप्ति-

कह प्रभु सखा बूझिए काहा। कहइ कपीस सुनहु नरनाहा ॥

जानि न जाइ निसाचर माया। कामरूप केहि कारन आया॥3॥

भावार्थ:- प्रभु श्री रामजी ने कहा- हे मित्र! तुम क्या समझते हो (तुम्हारी क्या राय है)? वानरराज सुग्रीव ने कहा- हे महाराज! सुनिए, राक्षसों की माया जानी नहीं जाती। यह इच्छानुसार रूप बदलने वाला (छली) न जाने किस कारण आया है॥3॥

श्रीराम एक अच्छे नायक के सभी गुणों से परिपूर्ण व्यक्तित्व का सटीक उदाहरण पेश करते हैं,उन्होने सदा दल में सभी के द्वारा दिये गए विचारों को आदर,सम्मान के साथ प्राथमिकता दी,जोकि एक अच्छे टीम लीडर का गुण होना चाहिए। इसका उदाहरण हमें विशेष रूप से उस समय मिलता है,जब रावण का भाई विभीषण उनकी शरण में आता है,तो प्रथम द्रष्टि में राम खुद कोई फैसला न लेकर अपने साथियों से विचार विमर्श लेते है,की दुश्मन का भाई शरण मांगने आया है,क्या किया जाये?जो की अच्छी टीम मीटिंग का उदाहरण है,क्योंकि जब आप टीम के साथियों के साथ विचार विमर्श से लिए जाते है,तो फैसला सबसे सही विचार के आधार पर ही लिया जाता है,साथ ही टीम के सदस्यों को भी अपने महत्व का वोध होता है।

 कह प्रभु सखा बूझिए काहा। 

कहइ कपीस सुनहु नरनाहा॥

भावार्थ:- प्रभु श्री रामजी ने कहा- हे मित्र! तुम क्या समझते हो (तुम्हारी क्या राय है)?

सभी से विचार विमर्श करने के बाद एक अच्छा टीम लीडर सदा वही फैसला लेता है,जो नीतिगत हो और सभी के लिए कल्याणकारी हो,इसका उदाहरण हमें तब देखने मिलता है,जब सुग्रीव द्वारा यह सुझाव देने पर की दुश्मन का भाई है,क्या पता,किस बात का पता लगाने आया है?,क्यों न उसे बांधकर रखा जाए।राम ने उचित रूप से विचार कर कहा किसी सरनागत को,जो सब कुछ छोड़ उनके भरोसे आया हो,उसे सहर्ष शरण में लेना स्वीकार किया।

सरनागत कहुँ जे तजहिं निज अनहित अनुमानि ।

 ते नर पावँर पापमय तिन्हहि बिलोकत हानि ॥43॥

भावार्थ:- (श्री रामजी फिर बोले-) जो मनुष्य अपने अहित का अनुमान करके शरण में आए हुए का त्याग कर देते हैं, वे पामर (क्षुद्र) हैं, पापमय हैं, उन्हें देखने में भी हानि है (पाप लगता है)॥43॥

विभीषण को शरण देना नीतिगत भी था,और राजनैतिक रूप से उचित भी,क्योंकि अंत में वही विभीषण रावण की मृत्यु का राज़ बताने में मददगार साबित हुआ।

सीख:

v  टीम लीडर को सदा टीम के सदस्यों का सम्मान करना चाहिए और फैसले सदा विचार विमर्श करके,उन्हे भरोसे में लेकर ही लेना चाहिए।

v  कभी कोई आपसे उम्मीद लिए मदद या शरण लेने आए तो उस समय उसकी सहायता करनी चाहिए।

 

 NOTE:

v  यहाँ लिखा गया हर एक शब्द सिर्फ एक सूक्ष्म वर्णन है “सुंदरकाण्ड” का सम्पूर्ण नही,यह एक कोशिश है,उस अनुभव को सांझा करने की जो “सुंदरकाण्ड” से मैंने महसूस करे।अगर कुछ त्रुटि हो गयी हो तो कृपया कमेंट बॉक्स के माध्यम से जरूर बताए।मैं फिर यह कहना चाहता हूँ,यह धर्म या संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए नहीं है,लेकिन यहां सांझा किया गए “सुंदरकाण्ड” के सबक और उनकी शिक्षा सभी मनुष्यों के लिए उपयोगी हो सकते हैं,चाहे वह किसी भी धर्मजाति या धर्म के हों।

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