Wednesday 5 August 2020

“सुंदरकाण्ड-एकपथप्रदर्शक रस सरिता” ***रस प्रवाह क्र॰-18***

सुंदरकाण्ड-एक पथ प्रदर्शक रस सरिता

         


                                         ***रस प्रवाह क्र॰-18***       
   प्रसंग: समुद्र पर श्री रामजी का क्रोध और समुद्र की विनती-

काटेहिं पइ कदरी फरइ कोटि जतन कोउ सींच ।

बिनय न मान खगेस सुनु डाटेहिं पइ नव नीच॥58॥

भावार्थ:- (काकभुशुण्डिजी कहते हैं-) हे गरुड़जी! सुनिए, चाहे कोई करोड़ों उपाय करके सींचे, पर केला तो काटने पर ही फलता है। नीच विनय से नहीं मानता, वह डाँटने पर ही झुकता है (रास्ते पर आता है)॥58॥

जब श्री राम द्वारा विनय करने पर भी समुद्र नही माने और रास्ता नही दिया,तब उन्होने गुस्से में आकर अपना धनुष वाण उठाया और समुद्र पर प्रहार करने का निश्चय किया। ऐसा सुनते ही समुद्र तुरंत वहाँ आए  और अपनी इस गलती के लिए माफी मांगी।

सीख:

v  कभी कभी कुछ लोग विनय और मधुर भाषा नही समझते,तो ऐसे लोगों को समझाने के लिए कभी-कभी कठोर भाषा और रास्ता अपनाना पड़ता है,मतलब दुनिया का हर ताला एक ही चाबी से नही खुलता। ताले के अनुसार चाबियाँ बदलनी पड़ती है।

v  जैसे जब तक ढ़ोल को ज़ोर से न पीटा जाए तब तक वह मधुर स्वर उत्पन्न नही कर सकता। उसी प्रकार विनय,मधुरता और प्रार्थना तीनों चीजें व्यक्ति ,स्थान और परिस्थिति देखकर ही प्रयोग में लानी चाहिए।

 

 NOTE:

v  यहाँ लिखा गया हर एक शब्द सिर्फ एक सूक्ष्म वर्णन है “सुंदरकाण्ड” का सम्पूर्ण नही,यह एक कोशिश है,उस अनुभव को सांझा करने की जो “सुंदरकाण्ड” से मैंने महसूस करे।अगर कुछ त्रुटि हो गयी हो तो कृपया कमेंट बॉक्स के माध्यम से जरूर बताए।मैं फिर यह कहना चाहता हूँ,यह धर्म या संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए नहीं है,लेकिन यहां सांझा किया गए “सुंदरकाण्ड” के सबक और उनकी शिक्षा सभी मनुष्यों के लिए उपयोगी हो सकते हैं,चाहे वह किसी भी धर्मजाति या धर्म के हों।

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