Tuesday 28 April 2020

थका हूँ पर हारा नही........


थका हूँ पर हारा नही...

थका हूँ इस सफर में,पर हारा नही,
ठहरा हूँ ज़रा सा,ज़िंदगी की राह में पर थमा नही,
सपने है मेरे ये,और इन पर किसी का पहरा नही,
थका हूँ इस सफर में,पर हारा नही………………
चेहरे हज़ार लिए,इस बाज़ार में लोग बहुत फिरते है,
कीमत तय कर सके,तिजारत कर सके कोई,
मैं वो कोई आम और मामूली चेहरा नही,
थका हूँ इस सफर में,पर हारा नही………………
ठोकरे खाकर सीखीं है,रवायतें जहान की,
ये दिल की मंडी है जनाब,
यहाँ हम जैसा सौदागर,कोई दूजा नही,
थका हूँ इस सफर में,पर हारा नही………………
मैं वो नशा हूँ साक़ी,जिसे पीकर लोग बहक जाते हैं,
पर खुद लड़खड़ा जाऊँ,मैं वो सस्ती शराब नही,
थका हूँ इस सफर में,पर हारा नही………………
हालातों के बिस्तर पर,करबंटे लेता ये वक़्त,
बदलता रहा है,और फिर बदल जाएगा,
पर न बदला है न बदलेगा,
वो जो है,वो ख़्वाब है,और इरादे हैं मेरे,
जो बदल जाए,वो कोई इंसान जैसे तो नही,
थका हूँ इस सफर में,पर हारा नही………………
लहरों पर इठलाती-बलखाती,शर्माती-घबराती,
ये कश्ती-सी ज़िंदगी,
सोचते है लोग की बस,अब डूब जाएगी,
पर ये कश्ती,मेरे मज़बूत इरादों की है साहब,
जो आसानी से डूब जाये,ये कश्ती वो कागज़ की नही,
थका हूँ इस सफर में,पर हारा नही
ठहरा हूँ ज़रा सा,ज़िंदगी की राह में पर थमा नही।
A page from “Sanyog’s Diary”

4 comments:

  1. मगर मुझको लौटा दो बचपन का सागर,
    वो कागज की की कश्ती ,
    वो बारिश का पानी
    कागज की कश्ती बारिश का पानी

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    1. गुजरे हुये वक़्त पर क्या गिला रखना बाहें फैला कर आने वाले कल को गुलज़ार कीजिये।

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