“सुंदरकाण्ड-एक पथप्रदर्शक रस सरिता”
***रस प्रवाह क्र॰-3***
प्रसंग: सुरसा द्वारा
उनका रास्ता रोका जाना-
सीख:
हनुमान जी जब
लंका खोजे के लिए निकले,तो पहला सामना उनका सुरसा से हुआ,उन्होने कहा मुझे जाने दो तो
सुरसा ने कहा मैं तुम्हें खाऊँगी। उन्होने प्रार्थना की हे! माता अभी जाने दो,सीता माँ का
समाचार लाने दो,उसके बाद जरूर खा लेना। तो सुरसा ने कहा नही,तो कहा तो फिर
ठीक है जल्दी खाओ,समय नही है,बहुत काम करना है।सुरसा ने जैसे ही अपना मुंह खोला तो उन्होने अपना आकार
बड़ा कर लिया,जैसे-जैसे सुरसा
मुख का विस्तार बढ़ाती थी,हनुमान्जी उसका दूना रूप दिखलाते थे।ऐसा करते-करते उसने सौ योजन (चार सौ
कोस का) मुख किया। तब हनुमान्जी ने बहुत ही छोटा रूप धारण कर लिया। और उसके मुख
में घुसकर तुरंत फिर बाहर निकल आए,जिससे सुरसा की आन बनी रही और
हनुमानजी का भी काम बन गया। ये कथा सबको पता है,पर इससे सीखने
वाली बात है,की जब ताकत
दिखानी थी तो बड़े हो गए और जब बुद्धि दिखानी थी तो छोटे हो गए कहने का मतलब यह है-
v केवल शारीरिक शक्ति ही हर समय आपकी मदद नही कर सकती,बुद्धिमत्ता भी एहम आवश्यकता है,जो महत्वपूर्ण है। और हमें यह पता होना चाहिए कि ताकत और शक्ति का प्रभावी ढंग से उपयोग कब,कहाँ और कैसे करें।
v अनावश्यक शक्ति
प्रदर्शन नही करना चाहिए,जरूरत पड़ने
पर ही शक्तियों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
v अपने शब्दों का सम्मान करें और उनके प्रति
सच्चे और ईमानदार रहें।
NOTE:
v यहाँ लिखा गया हर एक शब्द सिर्फ एक सूक्ष्म वर्णन
है “सुंदरकाण्ड” का सम्पूर्ण नही,यह एक कोशिश है,उस अनुभव को सांझा करने की जो “सुंदरकाण्ड” से मैंने महसूस करे।अगर कुछ त्रुटि हो गयी हो तो कृपया कमेंट बॉक्स के
माध्यम से जरूर बताए।मैं फिर यह कहना चाहता हूँ,यह धर्म या
संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए नहीं है,लेकिन यहां सांझा
किया गए “सुंदरकाण्ड” के सबक
और उनकी शिक्षा सभी मनुष्यों के लिए उपयोगी हो सकते हैं,चाहे
वह किसी भी धर्म, जाति या धर्म के हों।
It gives us a good learning....
ReplyDeleteSir yese hi prasang aur layega thank u sir
बहुत बहुत धन्यवाद, बिलकुल कोशिश करूंगा ऐसे और प्रसंग लिखने की।
DeleteBhut bdhiya.....Sir...
ReplyDeletethank you very very much.
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