“सुंदरकाण्ड-एक पथप्रदर्शक रस सरिता”
***रस प्रवाह क्र॰-2***
प्रसंग: मैनाक पर्वत श्री हनुमान जी
को लंका की यात्रा के दौरान आराम करने के लिए मदद प्रदान करते है। लेकिन हनुमान जी
विनम्रता से मदद के लिए मना कर देते है।
जलनिधि रघुपति दूत बिचारी । तैं मैनाक होहि श्रम
हारी॥5।।
भावार्थ : समुद्र ने उन्हें श्री
रघुनाथजी का दूत समझकर मैनाक पर्वत से कहा कि हे मैनाक! तू इनकी थकावट दूर करने
वाला हो (अर्थात् अपने ऊपर इन्हें विश्राम दे)॥5॥
हनूमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम ।
राम काजु कीन्हें बिनु मोहि
कहाँ बिश्राम॥1॥
भावार्थ : हनुमान्जी
ने उसे हाथ से छू दिया, फिर प्रणाम करके कहा- भाई! श्री रामचंद्रजी का काम किए बिना मुझे विश्राम
कहाँ?॥1॥
सीख:
“सुंदरकाण्ड” एक भक्त हनुमान की स्वामी भक्ति को सार्थक सिद्ध करती हुई कथा है,जिसमें एक भक्त अपने स्वामी के कार्य सिद्धि की महत्वता को सर्वोपरि रखता
है,और यह मानकर लक्ष्य की ओर आगे बड़ता है,की जब तक लक्ष्य की प्राप्ति नही हो जाती,तब तक ना
वो आराम करेंगे,न कुछ खाएँगे,न
पियेंगे।यह उनका कार्य और अपने स्वामी के प्रति समर्पण और ईमानदारी को दर्शाता है।
v किसी भी क्षेत्र में जब भी आप कोई कार्य करें,उस कार्य को पूर्ण समर्पण के साथ करना चाहिए।तभी लक्ष्य की प्राप्ति हो पाती है,अगर आप अपने लक्ष्य को पाने के प्रति ईमानदार है,तो लक्ष्य आपको जरूर मिलता है,अपने लक्ष्य के प्रति ध्यान केंद्रित रखें,और यह निश्चय करें कि जब तक आप अपने लक्ष्य तक नहीं पहुँचते,तब तक हार नहीं मानेंगे। कभी-कभी अपने लक्ष्यों को छोड़ने और उनसे डिगाने के लिए सफलता की राह में कुछ प्रलोभन आ सकते है,लेकिन उन लोभों में नहीं पड़ना चाहिए।
v दूसरी सीख हमें यह मिलती है की हमेशा विनम्र रहें जब आपको किसी के द्वारा दी जाने वाली मदद को न कहना हो। आपको उनके प्रस्ताव को ठुकराते वक़्त या उन्हे न कहते वक़्त उनकी भवना को आहत नहीं करना चाहिए।
NOTE:
यहाँ लिखा गया हर एक शब्द सिर्फ एक सूक्ष्म वर्णन है “सुंदरकाण्ड” का सम्पूर्ण नही,यह एक कोशिश है,उस
अनुभव को सांझा करने की जो “सुंदरकाण्ड” से मैंने महसूस करे।अगर कुछ त्रुटि हो गयी हो तो
कृपया कमेंट बॉक्स के माध्यम से जरूर बताए।मैं फिर यह कहना चाहता हूँ,यह धर्म या संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए नहीं है,लेकिन यहां सांझा किया गए “सुंदरकाण्ड” के सबक और उनकी शिक्षा सभी मनुष्यों के लिए
उपयोगी हो सकते हैं,चाहे वह
किसी भी धर्म, जाति या धर्म के हों।
बहुत सुंदर शब्द हर विपदा का समाधान मिलता है
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आपके इन शब्दों के लिए; सही कहा सुंदरकाण्ड से हर समस्या का समाधान मिलता है
DeleteBahut accha laga sir padha kr jb bhi mujhe mere aim se thodha door hone lagti hu to esa koi na koi bat mere samne aa jati ke me fir taiyar ho jati hu ke mujhe krna kya hai thank you es ke mujhe bahut jarurat thi
ReplyDeletedhanywaad aapne pada,aur prayas karte rahiye nishchit hi apko safalta milegi.
DeleteJai shri ram aap ke shu vicharo ko padkar bahut accha laga.
ReplyDeleteMera manana hai ki jab aatma ka parmatma se milan ho jata hai to uske bad yah sansar tuchay lagne lagta hai.
Or parmatama kahi or nahi apni hi aatma me rahta hai bus hum use samajh nahi pate.use samjhne ki jarurat hai.jai shri ram
sahi kaha ishwaar hum sabke andar hai chahe wo kisi bhi naam se jana jaye.
Deleteबहुत ही बढ़िया गुरुजी यहां पर अपने सुंदरकांड के बारे में गहराई से सीख लेनी चाहिए वाह सि लाजवाब ����
ReplyDeletesundarkaand hai hi seekh lene layak.
Deleteबहुत ही बढ़िया गुरुजी यहां पर अपने सुंदरकांड के बारे में गहराई से सीख लेनी चाहिए वाह सि लाजवाब 🙏🙏
ReplyDeletesundarkaand hai hi seekh lene layak
Deleteअतिउत्तम गुरुदेव 👌
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आपके इन शब्दों के लिए मित्र।
DeleteBhut shandar sirji
ReplyDeletethanks a lot for your kind words
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