Monday 27 April 2020

“सुंदरकाण्ड-एक पथप्रदर्शक रस सरिता” ***रस प्रवाह क्र॰-4***


सुंदरकाण्ड-एक पथप्रदर्शक रस सरिता

***रस प्रवाह क्र॰-4***

प्रसंग: लंका पहुंचने के बाद श्री हनुमान एक पर्वत पर रुकते हैं। वह लंका को ध्यान से देखते है,और विश्लेषण करते है।और यह फैसला लेते है,की वह रात में और बहुत छोटे रूप में लंका में प्रवेश करेंगे।

गिरि पर चढ़ि लंका तेहिं देखी । कहि न जाइ अति दुर्ग बिसेषी॥5॥

भावार्थ : पर्वत पर चढ़कर उन्होंने लंका देखी। बहुत ही बड़ा किला है, कुछ कहा नहीं जाता॥5

पुर रखवारे देखि बहु कपि मन कीन्ह बिचार ।
अति लघु रूप धरों निसि नगर करौं पइसार॥3॥

भावार्थ : नगर के बहुसंख्यक रखवालों को देखकर हनुमान्‌जी ने मन में विचार किया कि अत्यंत छोटा रूप धरूँ और रात के समय नगर में प्रवेश करूँ॥3॥

सीख:
v  सुंदरकाण्ड का यह सारा प्रसंग हमें बहुत ही महत्वपूर्ण सीख देता है,की किसी भी समस्या को देखकर घबराएँ न बल्कि हमेशा अपनी समस्या को समझें और उसका अवलोकन करें। समस्या अपने साथ उसका हल भी लेकर आती है,उसका अच्छे से अवलोकन करें और फिर उसके निराकरण के लिए एक योजना बनाएं। निश्चिय ही उस समस्या का हल निकल ही जाएगा।
 NOTE:


  v  यहाँ लिखा गया हर एक शब्द सिर्फ एक सूक्ष्म वर्णन है “सुंदरकाण्ड” का सम्पूर्ण नही,यह एक कोशिश है,उस अनुभव को सांझा करने की जो “सुंदरकाण्ड” से मैंने महसूस करे।अगर कुछ त्रुटि हो गयी हो तो कृपया कमेंट बॉक्स के माध्यम से जरूर बताए।मैं फिर यह कहना चाहता हूँ,यह धर्म या संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए नहीं है,लेकिन यहां सांझा किया गए “सुंदरकाण्ड” के सबक और उनकी शिक्षा सभी मनुष्यों के लिए उपयोगी हो सकते हैं,चाहे वह किसी भी धर्मजाति या धर्म के हों।

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