“सुंदरकाण्ड-एक पथप्रदर्शक रस सरिता”
***रस प्रवाह क्र॰-13***
प्रसंग:
हनुमान
जी की पूंछ में आग लंका का दहन और हनुमानजी के लिए महोत्सव-
कपि कें ममता पूँछ पर सबहि कहउँ समुझाई। तेल बोरि पट
बाँधि पुनि पावक देहु लगाइ॥24॥
भावार्थ:- मैं सबको समझाकर कहता हूँ कि बंदर की ममता पूँछ पर होती है। अतः तेल में
कपड़ा डुबोकर उसे इसकी पूँछ में बाँधकर फिर आग लगा दो॥24॥
जब श्री हनुमानजी को सजा के
रूप में लंका में रावण के दरबार में ले जाया जाता है,और उनकी पूंछ में
आग लगाने की सज़ा सुनाई जाती है। तब भी वो उस विकट परिस्थिति में भी अपनी पूंछ
बढ़ाकर स्थिति का आनंद लेते हैं,और अपने आसपास के लोगों को
खुश करते हैं।
सीख:
इस पूरे प्रसंग से जो शिक्षा
मिलती हैं वो है-
v जीवन में मस्ती
भी जरूरी है। चाहे परिस्थिति कितनी भी प्रतिकूल हों।
v जीवन के कुछ पलों
का हास्य और मस्ती के साथ आनंद लें।
NOTE:
v यहाँ लिखा गया हर एक शब्द सिर्फ एक सूक्ष्म वर्णन है “सुंदरकाण्ड” का सम्पूर्ण नही,यह एक कोशिश है,उस अनुभव को सांझा करने की जो “सुंदरकाण्ड” से मैंने महसूस करे।अगर कुछ त्रुटि हो गयी हो तो कृपया कमेंट बॉक्स के माध्यम से जरूर बताए।मैं फिर यह कहना चाहता हूँ,यह धर्म या संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए नहीं है,लेकिन यहां सांझा किया गए “सुंदरकाण्ड” के सबक और उनकी शिक्षा सभी मनुष्यों के लिए उपयोगी हो सकते हैं,चाहे वह किसी भी धर्म, जाति या धर्म के हों।
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