Saturday 18 July 2020

“सुंदरकाण्ड-एक पथप्रदर्शक रस सरिता” ***रस प्रवाह क्र॰-11***


  “सुंदरकाण्ड-एक पथप्रदर्शक रस सरिता



 ***रस प्रवाह क्र॰-11***

प्रसंग: हनुमान-रावण संवाद-

जब हनुमान जी की अपने प्रभु श्रीराम का संदेश लेकर सीताजी की खोज में लंका गए,तब रावण से प्रथम मुलाक़ात से पहले अपने बाहुबल और मुलाक़ात के दौरान अपने बुद्धि कौशल का अद्भुत प्रदर्शन किया,क्योंकि वे जानते थे,की उनके द्वारा किए जाने वाले आचार,व्यवहार और कहे जाने वाले विचारों के आधार पर लंका में सभी उनके प्रभु श्रीराम की छवि का आंकलन करेंगे,इसीलिए यह आवश्यक था,की अपनी बौद्धिक ज्ञान का प्रयोग रावण के साथ होने वाले संवाद में सफलतापूर्वक किया जाए। जब रावण नें हनुमानजी  से उनका परिचय पूछा और अशोक वाटिका में राक्षसों को मारने का कारण पूछा तब उन्होने अपनी बुद्धिमत्ता का परिचय देते हुये सीधा अपना परीचय नही दिया,बल्कि अपने स्वामी को साक्षात स्वरूप में वहाँ उपस्थित मान उनका हवाला देकर सारी बात कही-
सुनु रावन ब्रह्मांड निकाया।पाइ जासु बल बिरचति माया ॥2

जाकें बल बिरंचि हरि ईसा । पालत सृजत हरत दससीसा ॥
जा बल सीस धरत सहसानन । अंडकोस समेत गिरि कानन ॥3

धरइ जो बिबिध देह सुरत्राता। तुम्ह से सठन्ह सिखावनु दाता ॥
हर कोदंड कठिन जेहिं भंजा । तेहि समेत नृप दल मद गंजा ॥4

खर दूषन त्रिसिरा अरु बाली । बधे सकल अतुलित बलसाली॥5
 जाके बल लवलेस तें जितेहु चराचर झारि । तास दूत मैं जा करि हरि आनेहु प्रिय नारि॥21॥

भावार्थ: “(हनुमान्‌जी ने कहा-) हे रावण! सुन, जिनका बल पाकर माया संपूर्ण ब्रह्मांडों के समूहों की रचना करती है, जिनके बल से हे दशशीश! ब्रह्मा, विष्णु, महेश (क्रमशः) सृष्टि का सृजन, पालन और संहार करते हैं,जिनके बल से सहस्रमुख (फणों) वाले शेषजी पर्वत और वनसहित समस्त ब्रह्मांड को सिर पर धारण करते हैं, जो देवताओं की रक्षा के लिए नाना प्रकार की देह धारण करते हैं और जो तुम्हारे जैसे मूर्खों को शिक्षा देने वाले हैं, जिन्होंने शिवजी के कठोर धनुष को तोड़ डाला और उसी के साथ राजाओं के समूह का गर्व चूर्ण कर दिया, जिन्होंने खर, दूषण, त्रिशिरा और बालि को मार डाला, जो सब के सब अतुलनीय बलवान्‌ थे, जिनके लेशमात्र बल से तुमने समस्त चराचर जगत्‌ को जीत लिया और जिनकी प्रिय पत्नी को तुम (चोरी से) हर लाए हो, मैं उन्हीं का दूत हूँ”।
हनुमान चाहते तो सीधे शब्दों में स्वयं का परिचय दे सकते थे,लेकिन लंका में उस समय उनकी उपस्थिति श्रीराम के काम की वजह से थी। जो भी वहाँ हो रहा था,या होने वाला था,वो प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से श्रीराम से ही जुड़ा हुआ था,इसीलिए उन्होने अपना नही अपनी कंपनी,ब्रांड या कहे तो अपने मालिक या प्रभु श्री राम के नाम का परिचय दिया,जिनके कार्य की वजह से वो वह गए थे, जो की हमें सिखाता है-

सीख:
v आपके वाक्यों का सामने वाले व्यक्ति पर प्रभाव कितना महत्वपूर्ण है।
v  जब आप कभी किसी कंपनी,संगठन या व्यक्ति की तरफ से कहीं जाते हैं,तो वहाँ आपका व्यक्तिगत परिचय मायने नही रखता,आप किसका प्रतिनिधित्व कर रहे हैं,वह मायने रखता है।इसीलिए अपने व्यक्तिगत परिचय को एहमियत देने के चक्कर में कभी अपने कंपनी,संगठन या व्यक्ति की एहमियत को न भूलें ।

NOTE:
v  यहाँ लिखा गया हर एक शब्द सिर्फ एक सूक्ष्म वर्णन है “सुंदरकाण्ड” का सम्पूर्ण नही,यह एक कोशिश है,उस अनुभव को सांझा करने की जो “सुंदरकाण्ड” से मैंने महसूस करे।अगर कुछ त्रुटि हो गयी हो तो कृपया कमेंट बॉक्स के माध्यम से जरूर बताए।मैं फिर यह कहना चाहता हूँ,यह धर्म या संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए नहीं है,लेकिन यहां सांझा किया गए “सुंदरकाण्ड” के सबक और उनकी शिक्षा सभी मनुष्यों के लिए उपयोगी हो सकते हैं,चाहे वह किसी भी धर्मजाति या धर्म के हों।


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