Saturday 18 July 2020

“सुंदरकाण्ड-एक पथप्रदर्शक रस सरिता” ***रस प्रवाह क्र॰-12***


 “सुंदरकाण्ड-एक पथप्रदर्शक रस सरिता



 ***रस प्रवाह क्र॰-12***
प्रसंग: हनुमान जी द्वारा लंका पर मानसिक विजय पाना-
कहते है! कि किसी खेल या जंग में आधी विजय तभी हो जाती है,जब आप दुश्मन के दिमाग पर हावी होकर,उस पर मानसिक विजय हासिल कर लेते है।यह बात भी हमें सुंदरकाण्ड में हनुमानजी के द्वारा क्रियान्वित करती हुई मिलती है,हनुमान एक सर्वगुण सम्पन्न स्वामिभक्त दूत है,उन्होने लंका विजय का आधार अपने द्वारा किए गए कार्यों से लंकाधिपति रावण के मन में अपने प्रभु श्रीराम की शक्तिशाली छवि प्रस्तुत कर बैठा दी और जब रावण ने उन्हे अपने बलशाली होने का दम भरा,तो तुरंत अपने बुद्धि चातुर्य का परिचय देते हुये उन्होने तर्क दिया-

जानउँ मैं तुम्हारि प्रभुताई। सहसबाहु सन परी लराई ॥
समर बालि सन करि जसु पावा। सुनि कपि बचन बिहसि बिहरावा॥1॥

मैं तुम्हारी प्रभुता को खूब जानता हूँ,सहस्रबाहु से तुम्हारी लड़ाई हुई थी,और बालि से युद्ध करके तुमने यश प्राप्त किया था। जो की वास्तव में हनुमान जी का रावण को उसके परक्राम पर दिया गया ताना था। क्योंकि सभी जानते थे,कि बाली ने रावण को बहुत बुरी तरह पराजित किया था। हनुमानजी की वाक्पटुता हमें ये सिखाती है,की सिर्फ बाहुबल से ही खेल या युद्ध नही जीते जाते।शत्रु पर मानसिक विजय प्राप्त कर लेना भी अतिआवश्यक होता है।  

सीख:
v शारीरिक विजय के साथ-साथ शत्रु और परिस्थितियों पर मानसिक विजय बहुत जरूरी है।

v मानसिक विजय आपको किसी खेल या युद्ध का आधा हिस्सा प्रारम्भ में जिता देती है। 

NOTE:


v  यहाँ लिखा गया हर एक शब्द सिर्फ एक सूक्ष्म वर्णन है “सुंदरकाण्ड” का सम्पूर्ण नही,यह एक कोशिश है,उस अनुभव को सांझा करने की जो “सुंदरकाण्ड” से मैंने महसूस करे।अगर कुछ त्रुटि हो गयी हो तो कृपया कमेंट बॉक्स के माध्यम से जरूर बताए।मैं फिर यह कहना चाहता हूँ,यह धर्म या संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए नहीं है,लेकिन यहां सांझा किया गए “सुंदरकाण्ड” के सबक और उनकी शिक्षा सभी मनुष्यों के लिए उपयोगी हो सकते हैं,चाहे वह किसी भी धर्मजाति या धर्म के हों।

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