Friday 10 July 2020

“सुंदरकाण्ड-एक पथप्रदर्शक रस सरिता” ***रस प्रवाह क्र॰-10***


सुंदरकाण्ड-एक पथप्रदर्शक रस सरिता




 ***रस प्रवाह क्र॰-10***
प्रसंग: हनुमान जी द्वारा ब्रहमास्त्र की मर्यादा रखना-

ब्रह्म अस्त्र तेहि साँधा कपि मन कीन्ह बिचार ।

जौं न ब्रह्मसर मानउँ महिमा मिटइ अपार॥19॥

भावार्थ:-अंत में उसने ब्रह्मास्त्र का संधान (प्रयोग) किया, तब हनुमान्‌जी ने मन में विचार किया कि  यदि ब्रह्मास्त्र को नहीं मानता हूँ तो उसकी अपार महिमा मिट जाएगी॥19॥

ये प्रसंग आज के परिद्र्श्य पर बहुत सटीक बैठता है क्योंकि व्यक्ति जरा भी यदि सामर्थ्यवान हो जाए या शक्तिशाली हो वो कई जगहों पर मर्यादाहीन होने लगता है,वह किसी व्यक्ति और स्थान की मर्यादा का हनन करना,अपने सामर्थ्य का प्रदर्शन मानता है, लेकिन इस चौपाई में वर्णित प्रसंग से सीखने वाली बात ये है,की हनुमानजी की सर्वशक्तिमान थे,सामर्थ्यवान थे,लेकिन जब उन पर ब्रह्मास्त्र से वार किया गया। तब उन्होने उसकी मर्यादा का ध्यान रखते हुये उसका विरोध या प्रतीकार नही किया,बल्कि उल्टा सम्मान सहित उसके वार को अपने ऊपर लिया। अगर वो ऐसा न करते तो उस दिन के बाद से ब्रह्मास्त्र की गरिमा का कोई मूल्य नही रहता।

सीख:-

इस घटना से हमें मूलतः तीन सीख मिलती है जो गौर करने लायक है-

v  हमेशा दूसरों की शक्तियों और ज्ञान का सम्मान करें।

v  आपके चाहे कितने भी ज्ञानवान,शक्तिवान,सामर्थ्यवान और उच्च पद पर आसीन हों उसके बावजूद भी सदा विनम्र रहें।

v  दूसरों को नीचा दिखाकर अपने ज्ञानवान,शक्तिवान,सामर्थ्यवान होने का प्रयास कभी न करें।


NOTE:


v  यहाँ लिखा गया हर एक शब्द सिर्फ एक सूक्ष्म वर्णन है “सुंदरकाण्ड” का सम्पूर्ण नही,यह एक कोशिश है,उस अनुभव को सांझा करने की जो “सुंदरकाण्ड” से मैंने महसूस करे।अगर कुछ त्रुटि हो गयी हो तो कृपया कमेंट बॉक्स के माध्यम से जरूर बताए।मैं फिर यह कहना चाहता हूँ,यह धर्म या संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए नहीं है,लेकिन यहां सांझा किया गए “सुंदरकाण्ड” के सबक और उनकी शिक्षा सभी मनुष्यों के लिए उपयोगी हो सकते हैं,चाहे वह किसी भी धर्मजाति या धर्म के हों।


1 comment:

  1. Sir नमस्कार, हमेशा की तरह ही आपकी पोस्ट बहुत ही ज्ञानवर्धक और मोटिवेशनल होती है। बहुत ही अच्छा लगा पढ़कर एवम मन को शांति देने वाली होती हैं। sir बहुत बहुत धन्यवाद।

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