“सुंदरकाण्ड-एक पथप्रदर्शक रस
सरिता”
***रस प्रवाह क्र॰-5***
प्रसंग: लंकिनी ने छोटे रूप में भी
श्री हनुमान को पहचान लिया और उन्हें लंका में जाने से रोक दिया। वह उसे मुट्ठी से मारते है और फिर
लंका में प्रवेश करते है।
मसक समान रूप कपि धरी। लंकहि चलेउ सुमिरि
नरहरी ॥
नाम लंकिनी एक निसिचरी। सो कह चलेसि मोहि
निंदरी॥1॥
भावार्थ: हनुमान्जी मच्छड़ के समान (छोटा सा) रूप धारण
कर नर रूप से लीला करने वाले भगवान् श्री रामचंद्रजी का स्मरण करके लंका को चले
(लंका के द्वार पर) लंकिनी नाम की एक राक्षसी रहती थी। वह बोली- मेरा निरादर करके
(बिना मुझसे पूछे) कहाँ चला जा रहा है?॥1॥
मुठिका एक महा कपि हनी । रुधिर बमत धरनीं
ढनमनी॥2॥
भावार्थ: महाकपि
हनुमान्जी ने उसे एक घूँसा मारा,
जिससे वह खून की उलटी करती हुई
पृथ्वी पर ल़ुढक पड़ी॥2॥
सीख:यह पूरा प्रसंग हमें तीन बातें सिखाता है-
v पहली की आपके कार्यों और उनके लिए किए जाने
वाले प्रयास को इस बात पर आधारित होना चाहिए,कि स्थिति के लिए क्या आवश्यक है। जो की हनुमान जी ने किया
की पहले मच्छर समान छोटा सा आकार करके प्रवेश करने कोशिश की,जो
की उस समय की मांग थी,की लंका में प्रवेश प्राथमिकता है।
v दूसरा अगर हालत की मांग हो तो शक्ति का उपयोग
जरूर करें। जो की हनुमान जी द्वारा किया गया,जब लंकिनी ने उन्हे लंका में प्रवेश करने से रोका।
v तीसरी यह की अपनी शक्ति का कभी दुरुपयोग न
करें।जब हनुमानजी ने एक प्रहार से अपना काम सिद्ध कर लिया तब उन्होने फालतू ही
लंकिनी के प्राण नही लिए।
v यहाँ लिखा गया हर एक शब्द सिर्फ एक सूक्ष्म वर्णन है “सुंदरकाण्ड” का सम्पूर्ण नही,यह एक कोशिश है,उस अनुभव को सांझा करने की जो “सुंदरकाण्ड” से मैंने महसूस करे।अगर कुछ त्रुटि हो गयी हो तो कृपया कमेंट बॉक्स के माध्यम से जरूर बताए।मैं फिर यह कहना चाहता हूँ,यह धर्म या संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए नहीं है,लेकिन यहां सांझा किया गए “सुंदरकाण्ड” के सबक और उनकी शिक्षा सभी मनुष्यों के लिए उपयोगी हो सकते हैं,चाहे वह किसी भी धर्म, जाति या धर्म के हों।
अति सुन्दर
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद,सुंदरकांड है ही सुंदर।
Deleteबहुत ही अदभुत वर्णन,ये ग्रंथ हमें जीवन जीने की कला सिखाते।
ReplyDeleteबहुत ही सटीक कहा आपने।
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