“सुंदरकाण्ड-एक
पथप्रदर्शक रस सरिता”
***रस प्रवाह क्र॰-9***
प्रसंग: हनुमानजी द्वारा
सीता जी से वटिका के फल खाने की आज्ञा मांगना-
सुनहु मातु मोहि अतिसय भूखा। लागि देखि
सुंदर फल रूखा॥
भावार्थ:- हे माता! सुनो, सुंदर फल वाले
वृक्षों को देखकर मुझे बड़ी ही भूख लग आई है।
सीताजी से मिलने और भगवान राम के संदेश सुनाने के
बाद,श्री हनुमान
सीताजी से अनुमति लेते हैं,की उन्हे भूंख लगी है और मन में
वाटिका के फल खाने की इच्छा है और फिर अशोक वाटिका में भोजन करने के लिए आगे बढ़ते
हैं।
सीख:-
हनुमान जी द्वारा फलों का खाना आमतौर पर एक
वानर का निर्मल स्वभाव और क्रत्य लगे,लेकिन यह हमें हमारे दैनिक क्रियाकलापों में एक महत्वपूर्ण कार्य को सदा
याद रखने की ओर इशारा करती है।जब आप बहुत व्यस्त होते हैं या आगे कुछ चुनौतीपूर्ण काम
और भी करने जा रहे हैं,तब भी जैसे आप अपने दैनिक कामों के
लिए समय निकालते हैं,वैसे ही भोजन के लिए भी समय निकालना
चाहिए।ये भोजन ही है,जो समय पर लेना एक स्वस्थ शरीर के लिए
बहुत ज़रूरी हैं और अन्य कार्यों को प्राथमिकता देने में कभी भी भोजन की अनदेखी
नहीं की जानी चाहिए।
NOTE:
*यहाँ लिखा गया हर एक शब्द सिर्फ एक सूक्ष्म वर्णन है “सुंदरकाण्ड” का सम्पूर्ण नही,यह एक कोशिश है,उस अनुभव को सांझा करने की जो “सुंदरकाण्ड” से मैंने महसूस करे।अगर कुछ त्रुटि हो गयी हो तो कृपया कमेंट बॉक्स के माध्यम से जरूर बताए।मैं फिर यह कहना चाहता हूँ,यह धर्म या संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए नहीं है,लेकिन यहां सांझा किया गए “सुंदरकाण्ड” के सबक और उनकी शिक्षा सभी मनुष्यों के लिए उपयोगी हो सकते हैं,चाहे वह किसी भी धर्म, जाति या धर्म के हों।
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