Thursday 7 May 2020

“सुंदरकाण्ड-एक पथप्रदर्शक रस सरिता”***रस प्रवाह क्र॰-6***

सुंदरकाण्ड-एक पथप्रदर्शक रस सरिता



***रस प्रवाह क्र॰-6***
प्रसंग: हनुमानजी का विभीषण से मिलना-

रामायुध अंकित गृह सोभा बरनि न जाइ ।

 नव तुलसिका बृंद तहँ देखि हरष कपिराई॥5॥

भावार्थ : वह महल श्री रामजी के आयुध (धनुष-बाण) के चिह्नों से अंकित था, उसकी शोभा वर्णन नहीं की जा सकती। वहाँ नवीन-नवीन तुलसी के वृक्ष-समूहों को देखकर कपिराज श्री हनुमान्‌जी हर्षित हुए॥5॥

जब लंका में हनुमान जी ने प्रवेश किया और सीता माता की खोज में इधर-उधर भटक रहे थे,तब श्री हनुमान ने एक महल में तुलसी का पवित्र पौधा और श्रीराम के धनुष और बाण के चिन्ह वाला एक छोटा सा मंदिर देखा। इस प्रकार वह विभीषण के घर पहुंचते है,जो बाद में श्री हनुमान की मदद करते है।

सीख: इस पूरे प्रसंग से हमें दो बातें यहाँ सीखने को मिलती है-

v  पहली यह की जब भी किसी कार्य को करने के लिए किसी स्थान पर जाएँ,तब हर एक छोटी से छोटी बात पर ध्यान जरूर दें,क्योंकि क्या पता कौन सी छोटी सी चीज में हमें मंज़िल का रास्ता बता दे।

v  दूसरी बात यह है की जब हनुमान जी विभीषण से पहली बार मिलने लगे,तब सीधे-सीधे नही मिले,पहले ब्राह्मण रूप लिया और जब हर तरीके से भरोसा हो गया,की यह व्यक्ति उपयुक्त है,तभी अपना असली परिचय दिया।कहने का अर्थ है कि कार्य के निष्पादन के दौरान आँख बंद कर भरोसा न करे,हर एक चीज को तर्क की कसौटी पर कसें। अर्थात हमेशा तार्किक द्रष्टिकोण अपनाएं।
       NOTE:
  v  यहाँ लिखा गया हर एक शब्द सिर्फ एक सूक्ष्म वर्णन है “सुंदरकाण्ड” का सम्पूर्ण नही,यह एक कोशिश है,उस अनुभव को सांझा करने की जो “सुंदरकाण्ड” से मैंने महसूस करे।अगर कुछ त्रुटि हो गयी हो तो कृपया कमेंट बॉक्स के माध्यम से जरूर बताए।मैं फिर यह कहना चाहता हूँ,यह धर्म या संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए नहीं है,लेकिन यहां सांझा किया गए “सुंदरकाण्ड” के सबक और उनकी शिक्षा सभी मनुष्यों के लिए उपयोगी हो सकते हैं,चाहे वह किसी भी धर्मजाति या धर्म के हों।

8 comments:

  1. *मानव सभ्यता को उसके उत्कर्ष तक पहुँचाने में तार्किक द्रष्टिकोण नितांत आवश्यक है।आपको सौंपा गया कार्य गुणवत्ता से पूर्ण करना है, तो सजग रहना आवश्यक है। रामायण का भारतीय जनमानस के ह्रदय में विशेष स्थान है, इसके पात्रों व प्रसंगों के माध्यम से जीवन प्रबंधन के गुर सिखाने का यह लेख सराहनीय है। नोट में लेखक ने उचित ही स्प्ष्ट किया है कि जीवन प्रबन्धन तकनीक हर कहीं से सीखी जा सकती हैं,धार्मिक पूर्वाग्रह से मुक्त रहें।

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    1. आपके इन शब्दों के लिए आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय।

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  2. आपका यह प्रयास अतुलनीय है । सराहनीय है
    वर्तमान युवा पीढी को रामचरितमानस और सुन्दरकाण्ड के प्रत्येक चौपाई से अपने कार्य क्षेत्र कुछ बेहतर करने का मार्ग प्रशस्त होगा ।
    मै हैरान हू आपकी हिन्दी लेखन कला को देखकर ।
    आप एक अभियंता है और आपकी हिन्दी किसी विश्वविद्यालय के हिन्दी के प्राध्यापक से कम नही ।
    सायद यह सुंदरकांड का प्रभाव ही है ।।

    आपका यह प्रयास अद्भुत है
    धन्यवाद ������

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    1. यह केवल एक प्रयास है ग्रंथ से अर्जित किए हुये निजी अनुभवों को आप सबके साथ सांझा करने का।

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  3. सहज और सरल सीख। अतिसुन्दर कृपया फेसबुक ले भी शेयर करें।

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद भैया। बिलकुल share करूंगा।

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  4. इस प्रसंग से एक और चीज़ पता चलती है की रावण राज्य मे भी, सारी परिस्थितियों के विपरीत, विभीषण जी राम स्तुति करते थे.
    दैनिक जीवन मे भी अगर मनुष्य अपनी कठिनाईओं से न डरते हुए सही काम करे तो सफलता जरूर प्राप्त होगी.

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    1. सही कहा आपने सही कर्म कठिन पारिस्थतियों में भी सफलता का रास्ता बना देते हैं।

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