“सुंदरकाण्ड-एक पथप्रदर्शक रस
सरिता”
***रस प्रवाह क्र॰-8***
प्रसंग: हनुमान जी का माता
सीता को अगूण्ठी देना और श्रीराम का गुणगान सुनाना-
रामचंद्र गुन बरनैं लागा। सुनतहिं सीता कर दुख भागा ॥
लागीं सुनैं
श्रवन मन लाई। आदिहु तें सब कथा सुनाई॥3॥
भावार्थ:-वे श्री
रामचंद्रजी के गुणों का वर्णन करने लगे, (जिनके) सुनते ही सीताजी का दुःख
भाग गया। वे कान और मन लगाकर उन्हें सुनने लगीं। हनुमान्जी ने आदि से लेकर अब तक
की सारी कथा कह सुनाई॥3॥
जब श्री हनुमान अशोकवाटिका
पहुँचते हैं,और सीता जी को
देखते हैं। वह एक पेड़ पर छिपकर बैठ जाते है,और विचार करते हैं की माता
सीता से कैसे मिला जाए है,फिर भगवान राम की स्तुति करते है और सीता जी के सामने भगवान राम की अंगूठी
गिरा देते है। हनुमान जी द्वारा माता सीता से मिलने के लिए अपनाए गए इस रास्ते पर
कई प्रश्न उठ सकते हैं,की वे सर्वशक्तिमान थे,सीधे भी तो माता सीता से मिल
सकते थे,फिर यह परोक्ष
रूप से क्यों किया। पर चीजों और समस्याओं को सदा एक ही या अपने ही द्रष्टिकोण से
नही देखना चाहिए,जब कोई व्यक्ति समस्या में हो,तो किसी भी कार्रवाई को करने
के लिए और निष्कर्ष निकालने पर न जाएं। दूसरे व्यक्ति के दृष्टिकोण से भी सोचना
चाहिए। सीता जी राक्षसों के बीच इतने लंबे समय तक रह रही थी,अगर श्री हनुमान
अचानक सीता जी के सामने प्रकट हो जाते,तो वे शायद उन्हें भी उनमें
से एक मानते या भयभीत हो सकती थी और नतीजतन उनकी बात भी ना सुनती शायद।इसीलिए पहले
उन्होंने भगवान राम की स्तुति गाकर और शान्ति का वातावरण बनाया। प्रमाण के रूप में
भगवान की अंगूठी देकर उनका विश्वास हासिल किया।
सीख- परिस्थितियों का अध्ययन
अपने ही नही बल्कि दूसरों के द्रष्टिकोण से भी करना चाहिए और उसके बाद ही किसी
कार्यवाही या निष्कर्ष पर आगे बड़ना चाहिए।
NOTE:
v यहाँ लिखा गया हर एक शब्द सिर्फ एक सूक्ष्म वर्णन है “सुंदरकाण्ड” का सम्पूर्ण नही,यह एक कोशिश है,उस अनुभव को सांझा करने की जो “सुंदरकाण्ड” से मैंने महसूस करे।अगर कुछ त्रुटि हो गयी हो तो कृपया कमेंट बॉक्स के माध्यम से जरूर बताए।मैं फिर यह कहना चाहता हूँ,यह धर्म या संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए नहीं है,लेकिन यहां सांझा किया गए “सुंदरकाण्ड” के सबक और उनकी शिक्षा सभी मनुष्यों के लिए उपयोगी हो सकते हैं,चाहे वह किसी भी धर्म, जाति या धर्म के हों।
No comments:
Post a Comment